पत्थरबाजी के सिलसिले के बाद | Jokhim Samachar Network

Friday, April 26, 2024

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पत्थरबाजी के सिलसिले के बाद

नकारात्मक राजनीति कर रही भाजपा को चुकानी पड़ सकती है इसकी कीमत बाढ़ पीड़ित गुजारातियों की थाह लेने पहुँवे कांग्रेस के आला नेता राहुल गांधी पर हुई पत्थरबाजी की घटना को देखकर लग रहा है कि गर्त की ओर जाती कांग्रेस अभी खत्म नही हुई है और न ही लगातार हो रहे चारित्रिक हमलों, आयकर के छापों व अन्य कानूनी कार्यवाहियों के बावजूद कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने अपना हौंसला खोया है। अगर पिछले कुछ वर्षो के दौरान राजनीति के तौर-तरीकों में आये परिवर्तनों पर गौर करें तो हम पाते है कि विपक्ष में रहकर जनमुद्दों पर मुखर रहने वाली भाजपा ने केन्द्र की सत्ता पर काबिज होते ही अपना रूख एवं आक्रमकता को बदला है तथा वैचारिक रूप से भाजपा का समर्थन करने का दावा करने वाली तथाकथित हिन्दूवादी विचारधारा ने बड़ी ही सुनियोजित रणनीति के तहत न सिर्फ कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के तमाम छोटे-बड़े नेताओं को अपने पाले में खींचना शुरू कर दिया है बल्कि इन दोनों ही पार्टियों समेत तमाम विपक्षी दलों के बड़े नेताओं व नामचीन शख्सियतों पर एक खास अंदाज में हमला करते हुऐ इन्हें भ्रष्ट व मुस्लिमों के असल पैरोकार या मुस्लिमों का वंशज साबित करते हुऐ गद्दार, देशद्रोही और आंतकवादियों से मिलीभगत रखने वाला साबित करने की दिशा में काम तेजी से चल रहा है। भाजपा व संघ की रणनीति को देखकर लग रहा है कि वह अपने सामने खड़े हर प्रतिद्वन्दी को मिटाकर देश की सत्ता पर एकाधिकार चाहती है और इसके लिऐ कोई भी पेंतरा आजमाने से इनके नीतिनिर्धारकों को कोई ऐतराज नही है। यह ठीक है कि राजनीति में सब जायज है वाली तर्ज में हर मोर्चे पर जीत हासिल कर रही अमित शाह व मोदी की जोड़ी को देखकर भाजपा के समर्थक खुद को आनन्दित महसूस कर रहे है और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति जैसे शीर्ष व गैराराजनैतिक पदो हुऐ चुनावों के बाद तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो भाजपा व संघ ने हर वह मुकाम हासिल कर लिया हो जो उसका लक्ष्य है लेकिन लक्ष्य को पाना आसान किन्तु उस मुकाम पर बने रहना एक मुश्किल खेल है और इस तथ्य को सत्ता के शीर्ष पर काबिज नरेन्द्र मोदी अच्छी तरह समझ रहे है। शायद यहीं वजह है कि वह अपने राजनैतिक दुश्मनों को खत्म करने का कोई भी मौका गंवाना नही चाहते और उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार बैठा मीडिया का एक हिस्सा इस प्रकार के घटनाक्रमों से जुड़े तथ्यों व आंकड़ों को कुछ इस तरह जारी कर रहा है कि विपक्ष पर हो रहे तमाम नियोजित व गैरनियोजित हमले जनता के बीच विपक्ष की नकारात्मक छवि बना रहे है जबकि हकीकत यह है कि अगर बिहार में नितीश कुमार, लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव एवं प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमें दर्ज होने के चलते उसके द्वारा इस्तीफा न दिये जाने पर लालू व उनकी पार्टी का साथ छोड़ भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाते है तो इस सरकार में भी उपमुख्यमंत्री का पद किसी पाक-साफ छवि वाले नेता को नही दिया जाता बल्कि अगर मुकदमें की संख्या और अपराध की गंभीरता को विषय बनाकर गौर किया जाय तो भाजपाई उपमुख्यमंत्री पर पूर्व में लगे आरोंप व दर्ज मुकदमें ज्यादा स्पष्ट रूप से उनके आपराधिक इतिहास को उजागर करते है लेकिन ‘समरथ को नहिं दोष गुँसाई‘ वाले अंदाज में इन तमाम तथ्यों को जनता के सामने रखने की जगह मीडिया का यह हिस्सा लालू यादव के बच्चों की संख्या और उनकी कुल प्रापर्टी जैसे सवाल जनता के सामने प्रस्तुत कर रहा है। हांलाकि लालू व उनके परिवार के अपराध अक्षम्य है और हम उनके भ्रष्ट आचरण का समर्थन भी नही करते लेकिन लालू या मीडिया द्वारा उछाले जाने वाले इसी तरह के तमाम अन्य मामलों में हम पाते है कि इन तमाम नेताओं पर लगे आरोंपों पर कानूनी कार्यवाही जारी है या फिर कुछ मामलों में कानून अपना फैसला सुना चुका है जबकि नितीश द्वारा किये गये कृत्य को लेकर न तो कोई वाद दायर है और न ही इसपर कोई चर्चा हो रही हैं। ठीक इसी क्रम में यह जिक्र किया जाना भी आवश्यक है कि नरेन्द्र मोदी को देश का एकमात्र लोकप्रिय नेता मानने वाली विचारधारा से जुड़े लोग व सोशल मीडिया पर सक्रिय इनके भक्त यह मानते है कि 2019 में मोदी की पूरे दल-बल के साथ वापसी तय है लेकिन कांग्रेस के वरीष्ठ नेता राहुल गांधी और जनान्दोलनों से निकले अरविंद केजरीवाल पर किसी भी तरह से हमलावर होने के लोभ को वह छोड़ नही पाते। हद तो यह है कि अपने नेताओं पर किसी भी तरह के आरोंप लगने की स्थिति में खुद को असहज महसूस करने वाले भाजपा के यह तथाकथित जमीनी कार्यकर्ता मोदी सरकार में घट रही घटनाओं का बचाव करने के लिऐ ‘क्या पहले ऐसा नही हुआ है‘ जैसे तर्क देने लगते है। अब इन गरीबों को कैसे समझाया जाय कि पहले ऐसा हुआ तभी देश की जनता ने मोदी के भाषणों व नारों पर भरोसा करके उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया लेकिन अब सत्ता पर काबिज होने के बाद मोदी ही नही बल्कि उनकी पार्टी के तमाम नेताओं का भी रंग बदला हुआ नजर आ रहा है और वह अगले चुनाव में जनता को भरमाने वाले मुद्दों की तलाश कर रहे है। हमने देखा कि भाजपा ने पूरे नियोजित तरीके से अभियान चलाकर न सिर्फ राहुल, केजरीवाल समेत विपक्ष के तमाम नेताओं को बदनाम करने की साजिशें रची और राहुल के पप्पू साबित करने की कोशिशें की गयी बल्कि केजरीवाल के इर्द-गिर्द रहने वाले उनके तमाम सहयोगियों व स्वंय उनपर विभिन्न मनगणन्त आरोंप लगाकर उन्हें बदनाम करने की कोशिशें की गयी लेकिन राहुल व केजरीवाल ने अपनी बची-खुची ताकत को समेटकर केन्द्र सरकार व भाजपा पर हमले करना जारी रखा। इस बीच जेएनयू समेत तमाम विश्व्विद्यालयों में होने वाले आन्दोलनों और देश के तमाम हिस्सों में हो रही आंतकवादी घटनाओं के साथ भी कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलो की सांठगांठ के किस्सों को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रचारित किया गया लेकिन विपक्ष ने पूरी मुस्तैदी के साथ अपना फर्ज निभाते हुऐ सरकार की कमजोरियों व कमियों को जनता के सामने लाने का सिलसिला बनाये रखा और एक के बाद एक कर मिलने वाली हार को स्वीकार करते हुऐ जनता व जनता से जुड़े मुद्दों के साथ ताल-मेल बनाये रखा जिससें सत्ता कहीं न कहीं स्वंय को असहज महसूस कर रही है। नतीजतन सत्तापक्ष की तमाम कोशिशें के बाद राहुल और केजरीवाल आज भी देश की जनता के एक हिस्सें की पंसद बने हुऐ है और अगर विपक्ष के तमाम नेता एकजुटता के साथ किसी एक चेंहरे को आगे कर मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरते है तो चुनाव के नतीजों में थोड़ा़ बहुत फेरबदल किसी भी क्षण हो सकता है। आंकड़े यह भी इशारा करते है कि अगर आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्व में मिले मत प्रतिशत् का सिर्फ दो प्रतिशत् इधर से उधर होता है तो चुनावी नतीजें आश्चर्यचकित करने वाले हो सकते है और अगर नियोजित खबरों व प्रचार तंत्र द्वारा बनाये गये माहौल को दरकिनार कर वास्तविकता पर गौर करें तो हम पाते है कि मोदी सरकार द्वारा लागू की गयी नीतियों से नाराज व्यापारी वर्ग, किसान समुदाय, बेरोजगार तबके व अलग-अलग कारणों के चलते अपनी नौकरी से हाथ धो चुके कुशल व अकुशल श्रमिकों के आक्रोश को वोट की ताकत में तब्दील किया जा सका तो लगातार किये जा रहे मोदी सरकार के महिमामण्डन के बावजूद अगला चुनाव मोदी सरकार व भाजपा के लिऐ आसान नही होगा। शायद यहीं वजह है कि मोदी के रणनीतिकार पत्थरबाजी जैसे हथकण्डों को अपनाकर विपक्षी खेमे में हड़कम्प की स्थितियाँ पैदा करना चाहते है और पूरी तैयारी को साथ किये जा रहे इन हमलों को सही साबित करने के लिऐ इन हमलों की तुलना कश्मीर की जनता व आंतकियों के समर्थकों द्वारा सेना व सुरक्षा बलों पर किये जा रहे हमलों से की जा रही है लेकिन इस तरह के तर्क प्रस्तुत करने वाले भाजपा के प्रचारक यह भूल जाते है कि अब भाजपा विपक्ष में नही है बल्कि कश्मीर में सत्तापक्ष के सहयोगी दल और गुजरात व केन्द्र सरकार में पूरी तरह सत्ता पर काबिज होने के कारण इन हमलों को रोकने में असफल होने के पीछे उनकी साजिशें व रणनीति स्पष्ट रूप से जनता के सामने आ रही है। लिहाजा अगर सत्ता पक्ष व उसके समर्थक यह मानकर चलते है कि इस तरह विपक्ष पर हमलावर होकर विपक्षी नेताओं के दौरे बीच मे ही रोकने की उनकी रणनीति कामयाब भी होती है तो इसका कोई सकारात्मक असर गुजरात, हिमाचल व अन्य राज्यों के चुनावों के अलावा आगामी लोकसभा चुनावों में भी भाजपा के पक्ष में ही जायेगा, यह जरूरी नहीं है।

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