चुनावी जंग का हुआ ऐलान | Jokhim Samachar Network

Tuesday, March 19, 2024

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चुनावी जंग का हुआ ऐलान

पांच राज्यों के चुनाव कार्यक्रम जारी होते ही इन राज्यों में लगी आदर्श चुनाव संहिता।
आखिरकार चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों के चुनावों को लेकर चुनावी बिगुल फूँक ही दिया और उम्मीदों के अनुरूप पंजाब, गोवा एवं उत्तराखंड में एक चरण में जबकि मणिपुर में दो चरणों में मतदान कराये जाने का निर्णय लिया गया है। उत्तर प्रदेश में मतदान सात चरणों में होगा तथा इन तमाम चुनावों में हुऐ मतदान की मतगणना की कार्यवाही ग्यारह मार्च को निपटायी जायेगी। लिहाजा यह माना जा सकता है कि मार्च के दूसरे पखवाड़े में इन तमाम राज्यों में नई सरकारें अपने अस्तित्व में आ जायेंगी और राष्ट्रीय राजनीति को लेकर एक नये अध्याय की शुरूवात होगी। यूँ तो चुनाव आयोग ने चुनाव लड़ने के लिऐ अधिकतम खर्च की सीमा तय करते हुऐ चुनावी चंदे को नकद अथवा बैंक के माध्यम से लिये जाने जैसे कई नियमों की घोषणा की है और चुनाव प्रचार के लिऐ प्लास्टिक में छपी चुनावी सामग्री के प्रयोग पर रोक व जाति व धर्म के आधार पर वोट मांगने को भी प्रतिबन्धित किये जाने की बाते सामने आ रही है लेकिन इन तमाम नियमों का अनुपालन कराने वाली ऐजेन्सियाँ इतनी सुस्त है कि इन तमाम परिपेक्ष्यों में कुछ भी नया सामने आने की उम्मीद नही की जा सकती। वैसे भी भारत की कानून प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग द्वारा दिये गये निर्देशों की अवहेलना करने के संदर्भ में किसी प्रत्याशी की शिकायत की जाय तो उसकी जाँच होने व उसके खिलाफ कोई कार्यवाही किये जाने तक इस कार्यवाही का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। हालातों के मद्देनजर यह मान लेना कि पाँच राज्यों के इन विधानसभा चुनावों में आयोग के दिशा निर्देशों का कोई असर पड़ेगा, एक अहमकाना ख्याल मालुम देता है लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कुछ ही समय पूर्व की गयी नोटबंदी का असर इन चुनावों पर दिख सकता है और यह देखना महत्वपूर्ण भी होगा नोटबंदी के साथ कालेधन के खिलाफ जंग का ऐलान करने वाली केन्द्र की भाजपा सरकार अपने संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं व विभिन्न राज्यों में चुनाव लड़ने वाले भाजपा प्रत्याशियों को एक सीमित खर्च के साथ चुनाव लड़ने के लिए उत्प्रेरित कर भी पाती है अथवा नहीं। उपरोक्त के अलावा चुनावों के लिऐ तैयार पाँचों की प्रदेश की जनता का एक वर्ग आगामी चुनावों को मद्देनजर रखते हुऐ चुनाव के दौरान चुनाव वाले राज्यों में पूर्ण शराबबंदी की मांग भी कर रहा है और अगर निष्पक्षता व लोकतंत्र की मजबूती के मद्देनजर देखा जाय तो यह एक जरूरी कदम भी माना जा सकता है क्योंकि चुनाव के इस दौर में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों व उनके खास समर्थकों द्वारा कुछ क्षेत्र विशेष के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिऐ निरतंर रूप से शराब बंाटे जाने का घटनाक्रम नया नहीं है। देखने में आया है कि चुनाव वाले राज्यों में चुनाव के दौरान एक नंबर की शराब की बिक्री तो तेजी से बढ़ती ही है और उपरोक्त के अलावा चोरी-छुपे बिकने वाली दो नम्बर की शराब की तस्करी में भी तेजी आ जाती है लेकिन चुनाव आयोग अपने सीमित दायरें के चलते मतदान से एक-दो ही पूर्व ही शराब की सरकारी दुकानों को बंद कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेता है और नशे के दम पर बहुमत पाने व खेल बिगाड़ने का सिलसिला नामांकन की तिथि से लेकर मतदान की तिथि तक निर्बाध गति से चलता रहता है। यह ठीक है कि चुनाव आयोग के पास भी सीमित अधिकार है और चुनावी दंगल में जीत दर्ज कराने के बाद सरकार बनाने वाला सत्तापक्ष अथवा जनसामान्य की लड़ाई लड़ने की बात करने वाला विपक्ष यह कदापि नहीं चाहता कि आयोग चुनावों के दौरान अपने इन अधिकारों का खुलकर प्रयोग करें लेकिन एक जागरूक मतदाता होने के नाते हमारी भी यह कोशिश होनी चाहिऐं कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अधिसंख्य मामलों में आयोग द्वारा जारी की गयी आचार संहिता के दायरें में काम करें और सत्ता के उच्च सदनों में पहुँचने वाले प्रत्याशी अपनी लोकप्रियता के आधार पर ही चुने जाये। हांलाकि देश में लागू संविधान के क्रम में चुनाव लड़ने के लिऐ निर्धारित की गयी आसान शर्तो व राजनैतिक दलों के गठन को लेकर बनायी गयी सरल नियमावली को देखते हुऐ यह कहना आसान नहीं है कि चुनावी जीत हासिल करने वाला प्रत्याशी निश्चित रूप से लोकप्रिय भी होगा और चुनावों के बाद बनने वाली सरकार वास्तव में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली सरकार ही होगी लेकिन पूर्व में चली आ रही परम्पराओं के क्रम में हम सभी की मजबूरी है कि हम चुनाव जीतकर आने वाले प्रत्याशी के लिऐ माननीय और इन माननीयों द्वारा लिये गये निर्णय के आधार पर बनने वाली सरकार के लिये पूर्ण बहुमत वाली सरकार जैसे शब्दों का प्रयोग करें और किसी भी प्रत्याशी के संदर्भ में एक बार अपनी राय व्यक्त करने के बाद अगले पांच वर्षो तक अपने ही फैसले को लेकर हताश व निराश रहे। खैर इन तमाम विषयों व मुद्दों पर चर्चा करने के लिऐ हमें अभी आगे भी बहुत वक्त मिलेगा और हम अपने जागरूक पाठकों के माध्यम से चुनाव आयोग तक यह सवाल पहुंचाने की कोशिश करेंगे कि अल्पमत सरकार वाली स्थिति में दल-बदल व समर्थन को लेकर व नियमों को और भी कठोर बनाये लेकिन इस सबसे पहली जरूरत यह है कि हम अपने क्षेत्र के हर अन्तिम व्यक्ति को मतदाता सूची से जुड़ने व मतदान करने के लिये उत्प्रेरित करें। परिवर्तन की इच्छाशक्ति के साथ लम्बा कानूनी संघर्ष करने वाली जागरूक बुद्धिजीवियों की मेहनत के कारण आज यह संभव है कि चुनाव मैदान में कोई भी प्रत्याशी पसंद न आने की स्थिति में हम ‘नोटा‘ का बटन दबा कर सभी प्रत्याशियों को खारिज कर सकते है लेकिन यह तभी संभव होगा जबकि हम मतदान के लिये मतदान केन्द्रों की ओर रूख करेंगे तथा हमारी मतदान की संयुक्त ताकत ही राज्य अथवा केन्द्र में बनने वाली तथाकथित जनहितकारी सरकारों को व्यापक जनहित में फैसले लेने के लिऐ मजबूर करने में सक्षम होगी।

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