जातिय व क्षेत्रीय संतुलन बनाना बड़ी चुनौती
देहरादून। उत्तराखण्ड में लंबे इंतजार के बाद दायित्व बांटने की प्रक्रिया भले ही शुरू हो गई हो लेकिन अब भी मंत्रिमंडल के दो पदों को भरना चुनौती बना हुआ है। ऐसे में 2 कैबिनेट सीटों के लिए मंत्री पद के लिए दौड़ शुरू हो गई है और कुछ बड़े नाम चर्चाओं में हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए मंत्री पद को भरना एक पेचीदा सवाल है क्योंकि देर होने के साथ ही आकांक्षाएं भी बढ़ गई हैं। राजनीति जानकार मानते हैं कि जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को साधना मुख्यमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
दरअसल मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के अलावा 4 मंत्री गढ़वाल से हैं। कुमाऊं के हिस्से में सिर्फ चार मंत्री पद आए हैं। दोनों ही मंडलों में कई वरिष्ठ विधायक कतार में हैं, जिनको कद के मुताबिक तवज्जो नहीं मिली है ऐसे में कुछ बड़े नाम हैं जो एक बार फिर मंत्री पद के लिए चर्चाओं में हैं। यह सभी बड़े नाम हैं और मंत्री पद के लिए मजबूती से दावेदारी कर रहे हैं. इस बारे में बात करने पर प्रदेश भाजपा प्रवक्ता और देहरादून के विकास नगर से विधायक मुन्ना सिंह चैहान कहते हैं कि मंत्रिमंडल का विस्तार मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है। लेकिन इसके साथ ही यह भी कहते हैं पार्टी कोई जिम्मेदारी देगी तो वह पूरी निष्ठा के साथ उसे निबाहेंगे।
मंत्रिमंडल के इन दो पदों पर पार्टी को जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण भी साधने होंगे। जातीय गणित के हिसाब से गढ़वाल से ब्राह्मण तो कुमाऊं से ठाकुर नेता को मंत्री पद सौंपे जाने की ज्यादा संभावनाएं हैं।ं कुमाऊं में पूर्व कैबिनेट मंत्री बलवंत सिंह भौर्याल और बंशीधर भगत प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं जबकि चुफाल रेस में पिछड़ते दिख रहे हैं।
रेस में चुफाल के पिछड़ने की वजह पिथौरागढ़ जिला है। यहां से पहले ही प्रकाश पंत कैबिनेट मंत्री हैं और दो लोगों को दायित्व भी मिल गए हैं। लिहाजा चैथा पद पिथौरागढ़ जाए इसकी संभावना न के बराबर है। गढ़वाल से आठवीं बार के विधायक हरबंश कपूर स्वास्थ्य कारणों से मात खा सकते हैं। इसलिए मुन्ना सिंह चैहान, गणेश जोशी और महेंद्र भट्ट तीन नाम प्रमुखता से उभरते हैं। गढ़वाल में पौड़ी चमोली से महेंद्र भटट को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। भट्ट जहां एबीवीपी के जमाने से त्रिवेंद्र रावत के नजदीकी रहे हैं वहीं संगठन में भी उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। मुन्ना सिंह चैहान को जनजातीय क्षेत्र का फायदा मिल सकता है क्योंकि पूरी कैबिनेट में जनजातीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं है।
इस सबके बावजूद 2019 को साधना सरकार की पहली प्राथमिकता होगी। सरकार या संगठन नहीं चाहेगा कि 2019 से ठीक पहले कम से कम विधायकों के बीच कोई मतभेद पैदा हों। इसलिए एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि इस सारी कवायद को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए और 2019 के चुनाव के बाद ही पार्टी मंत्रिमंडल का विस्तार करे।