संबंधित विभाग उदासीनता पड़ रही गौवंश सुरक्षा पर भारी
देहरादून। उत्तराखण्ड में गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने का संकल्प विधानसभा से पारित किया गया। लेकिन गाय के संरक्षण के लिए काम करने वाले विभाग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं. शहरी विकास विभाग और पंचायती राज विभाग को पशुपालन विभाग उनकी जिम्मेदारी पत्र लिख कर याद दिला रहा है। मगर विभाग जवाब देने की जहमत तक नहीं उठा रहे।
हां, गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने को लेकर विधानसभा में लिए गए संकल्प के बाद गौ वंश के संरक्षण की जिम्मेदारी जिन विभागों की है वो इस पर उदासीन बने हुए हैं। सूबे का पशुपालन विभाग फिलहाल सड़कों पर आवारा घूम रहे गौ वंश को गौ सदनों के जरिए संरक्षण देने का काम कर रहा है। लेकिन ये व्यवस्था नाकाफी है। इस काम में दो और विभाग जिनको अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी होती है वो शहरी विकास विभाग और पंचायती राज विभाग हैं। ऐसा लगता है कि यह विभाग इस काम की जिम्मेदारी ही लेने को तैयार नहीं हैं। पशुपालन विभाग कई दफे पंचायती राज विभाग और शहरी विकास विभाग को गौशाला शरणालय के निर्माण के लिए पत्र लिख चुका है। लेकिन विभागों की तरफ से पत्रों का जवाब तक दिया नहीं जा रहा है।
शहरी विकास विभाग को निगम और पालिका स्तर पर कांजी हाउस बनाने हैं। इसके लिए 10 करोड़ रुपए की व्यवस्था शहरी विकास विभाग की तरफ से की गई है। लेकिन अभी तक महज 4 पालिकाओं और निगमों ने ही अपनी डीपीआर शरणालयों के निर्माण के लिए दी है। पंचायती राज विभाग तो अभी यह मानने को ही तैयार नहीं है कि गौ वंश का संरक्षण उनकी जिम्मेदारी है। राज्य बनने से पहले उत्तराखंड में 66 गौवंश शरणालय थे. अब एक भी नहीं है। विभाग के मंत्री तो अपनी जिम्मेदारी दूसरे विभाग पर टाल रहे हैं।
प्रदेश के तीन पशुपालन विभाग, शहरी विकास विभाग और पंचायती राज विभाग के बीच गौ वंश संरक्षण का मामला लगातार घूम रहा है। पत्राचार किया जा रहा है। इसके बावजूद अभी तक कोई नतीजा निकलता नहीं दिखाई दे रहा है। इस मामले में राष्ट्रीय गौरक्षा वाहिनी के उत्तराखण्ड प्रभारी सादाब अली का कहना है कि उत्तराखण्ड में गौवंश की लगातार बेकद्री हो रही है। वर्तमान समय में बछड़ों से लिया जाने वाला काम अब खेती बाड़ी ट्रैक्टरों ने ले लिया है। जिसके चलते पैदा होने के बाद या तो बछड़ो को आवारा छोड दिया जा रहा है या फिर उन्हे बेच दिया जाता है।