देहरादून। आगामी लोकसभा चुनाव सिर पर है। किन्तु कांग्रेस संगठन अब तक पूरी तरह से तैयार नही है। जहां भाजपा बूथ स्तर तक अपनी समितियों का गठन कर सुचारू रूप से काम करी है,वहीं उत्तराखंड कांग्रेस में संगठन में कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन समितियों का गठन किया गया था लेकिन यह समितियां प्रदेश में निष्क्रिय पड़ी हुई हैं। यहां तक कि इनके अध्यक्ष की नियुक्ति तक नहीं हो पाई है।
उत्तराखंड कांग्रेस में समन्वय समिति, अनुशासन समिति और संसदीय बोर्ड बेहद महत्तवपूर्ण समितियां हैं जिनके पास पार्टी के कामकाज को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी और अधिकार दोनों हैं। डेढ़ साल पहले पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद प्रीतम सिंह ने इन तीनों समितियों का गठन किया था लेकिन ये कभी काम करना शुरू ही नहीं कर पाईं क्योंकि इनके अध्यक्ष नियुक्त ही नहीं किए गए।
समन्वय समिति का काम संगठन में समन्वय स्थापित करना है। संगठन के कार्यक्रमों को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी भी इसी समिति की है. पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल इसमें शामिल प्रमुख नेता थे लेकिन इस समिति में चेयरमैन नियुक्त नही किया गया।
अनुशासन समिति है का काम संगठन के अंदर अनुशासन कायम रखना और दण्डात्मक कार्रवाई करना है लेकिन इस समिति की भी अभी तक कोई बैठक नहीं हुई जबकि कांग्रेस के अंदर अनुशासन भंग होने की कई घटनाएं हो चुकी हैं।
तीसरी बेहद महत्वपूर्ण समिति संसदीय बोर्ड का काम स्थानीय चुनावों में प्रत्याक्षियों के नामों पर मंथन करना और लोकसभा और विधानसभा चुनावों में प्रत्याक्षियों के नामों की संस्तुति करना है। इसका भी चेयरमैन नहीं है फिर भी इसकी दो बार बैठक हुई। लेकिन इसके सदस्य पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को बैठक में बुलाया ही नहीं गया। वह कहते हैं कि जिस तरह से इस बोर्ड को काम करना चाहिए था वैसे नहीं कर रहा।
निकाय चुनाव में बमुश्किल इज्जत बचाने वाली कांग्रेस को अब सबसे बड़ी जंग 2019 के आम चुनाव की तैयारी करनी है। लेकिन जिस पार्टी के सिपहसालार ही तैयार नहीं वह कैसे जंग के मैदान में उतरेगी और क्या हासिल करेगी यह सवाल पार्टी के शुभचिंतकों को जरूर सता रहे होंगे।