लखनऊ यात्रा के दौरान एकाएक हुई समाजवादी नेता राजेन्द्र चैधरी से मुलाकात
उत्तराखंड राज्य स्थापना के सत्रह वर्षों बाद एक बार फिर लखनऊ जाने का मौका मिला तो कई पुरानी यादें ताजा हो गई और वह टीस भी जाग उठी जो उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान तत्कालीन सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों को दी थी। दर्द के इसी अहसास ने कदमों को खुद-ब-खुद समाजवादी पार्टी के कार्यालय की ओर मोड़ दिया और दिल में यह कसक जाग उठी कि उत्तराखंड की जनता के बीच खलनायक माने जाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अर्थात् नेताजी के दुर्ग में जाकर वर्तमान उत्तराखंड राज्य के संदर्भ में समाजवादियों के विचार जाने जाएं। अपने पहले प्रयास में हमारी मुलाकात हुई समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता एवं प्रवक्ता राजेन्द्र चैधरी से, जिन्होंने बिना किसी औपचारिकता के न सिर्फ मिलना स्वीकार किया बल्कि उत्तराखंड का जिक्र आते ही तपाक से कहा कि उनका उत्तराखंड विशेषकर ऋषिकेश से विशेष लगाव है। बातों का सिलसिला जब आगे बढ़ा तो उन्होंने हर कटाक्ष व आरोप का बड़ी ही सहजता से जवाब दिया और कहा कि उत्तराखंड राज्य निर्माण का पूरा श्रेय नेताजी अर्थात् मुलायम सिंह यादव को जाता है क्योंकि अगर वह जनभावनाओं का सम्मान करते हुए तत्कालीन उ.प्र. की विधानसभा में राज्य निर्माण का प्रस्ताव नहीं करते तो इसका गठन संभव नहीं था। उन्होंने पूरी बेबाकी के साथ यह स्वीकारा कि नेताजी और तत्कालीन सरकार इतनी जल्दबाजी और विकल्प के आभाव में एक पर्वतीय राज्य का गठन करने के पक्ष में नहीं थे लेकिन कुछ राजनैतिक दलों की जल्दबाजी व राजनेताओं की महत्वाकांक्षा ने हालातों का गलत फायदा उठाया जिसके नतीजे राजनैतिक अस्थिरता एवं जनाक्रोश के रूप में आज भी स्पष्ट परिलक्षित हो रहे हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान आंदोलनकारी नेताओं से हुई ज्यातियों व दमन का जिक्र होने पर उन्होंने स्वीकारा कि गलतियां हुई हैं लेकिन कुछ लोगों ने पूरी राजनैतिक चालाकी के साथ इन गलतियों का ठीकरा समाजवादी पार्टी के सर फोड़ दिया और अपनी लाश पर ही उत्तराखंड राज्य का निर्माण होने देने की बात कहने वाले लोग राज्य के मुख्यमंत्री तक बन गए। उत्तराखंड में अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों के दौरान अपने प्रदर्शन पर उन्होंने इसे जनता का फैसला बता शिरोधार्य करने की बात तो कही लेकिन साथ ही वह यह कहने से नहीं चूके कि राज्य की सीमा निर्धारण से लेकर राजधानी चयन तक हर मामले में राजनैतिक खेल करने वाली एक साम्प्रदायिक पार्टी ने इस राज्य का बंटाधार कर दिया किंतु राज्य की जनता इसे समझने को तैयार ही नहीं है और न ही वह उन कारणों को तलाशना चाहती है जिनके चलते एक अलग राज्य की आवश्यकता को बल मिला। एक समाजवादी चिंतक वाले अंदाज में राजेन्द्र चैधरी ने यह स्वीकार किया कि कुछ गलतियां हमारी सरकार से हुई जिनके कारण जनता को समाजवादी पार्टी व मुलायम सिंह के प्रति अपना विरोध जाहिर करने का मौका मिला लेकिन एक कुशल प्रशासक व अनुभवी राजनेता के रूप में हमने यह भी अनुभव किया कि उन गलतियों को कैसे सुधारा जा सकता है और लखनऊ वाले राज में पहाड़ों से दूर रहे विकास को पहाड़ पर ही राजधानी बनाकर किस तरह सुदूरवर्ती ग्रामीण अंचलों में पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जनता को एक दिन अपनी भूल का अहसास होगा और वह हमारे कार्यों व राजनैतिक अनुभव का आंकलन करते हुए हमें उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका देगी। एक अनुभवी राजनेता के रूप में राजेन्द्र चैधरी का मानना था कि उ.प्र. जैसे बड़े राज्यों की बेहतरी के लिए ही नहीं बल्कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों की बेहतरी को भी मद्देनजर रखते हुए यहां क्षेत्रीय राजनैतिक ताकतों व विचारधाराओं की मजबूती व एकता जरूरी है लेकिन कतिपय राष्ट्रीय राजनैतिक दल अपना राजनैतिक हित साधने के लिए ऐसा नहीं होने देते और ठीक यही उत्तराखंड के साथ भी हो रहा है। उन्होंने यह स्वीकारा कि उत्तराख्ंाड के आम मतदाता में समाजवादी पार्टी को लेकर पनपा आक्रोश अभी कम नहीं हुआ है लेकिन उन्होंने यह भी दोहराया कि एक क्षेत्रीय राजनैतिक ताकत के रूप में समाजवादी पार्टी ही उत्तराखंड की छिन्न-भिन्न हो चुकी आंदोलनकारी ताकतों को एकता के सूत्र में बांध सकती है और इस तरह उत्तराखंड राज्य के राजनैतिक परिपेक्ष्य में एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत किया जा सकता है। हालांकि हम उत्तराखंड राज्य के संदर्भ में राजेन्द्र चैधरी द्वारा प्रस्तुत किए गए तमाम तर्कों से सहमत नहीं हैं और उत्तराखंड राज्य आंदोलन से एक भावनात्मक लगाव होने के चलते समाजवादी पार्टी व उसके नेता मुलायम सिंह को लेकर एक टीस हमारे मन में भी है लेकिन अगर सवाल तार्किकता एवं विचारों का है तो राजेन्द्र चैधरी का यह तर्क दमदार लगता है कि अगर समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सरकार कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने के क्रम में हुए किसी भी तरह के जोर-जुर्म के लिए जिम्मेदार है तो जुर्म उनका भी कम नहीं है जिन्होंने आंदोलनकारियों के साथ अपराधियों की तरह व्यवहार करने वाले पुलिस अधिकारियों व नौकरशाहों से रिश्तेदारियां निभाई हैं, तो फिर दोष का ठीकरा और सजा सिर्फ समाजवादी पार्टी के ही सर क्यों। मूल रूप से आध्यात्मिक विचारधारा के नजदीक लगने वाले राजेन्द्र चैधरी ने स्वीकार किया कि उन्हें उत्तराखंड से व्यक्तिगत लगाव है और वह अपनी राजनैतिक व्यस्तताओं से इतर भी हरिद्वार व ऋषिकेश आना पसंद करते हैं। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि एक बेहद सद्भावना एवं सादगीपूर्ण माहौल में हुई इस अख्खड़ समाजवादी नेता से मुलाकात ने दिल के किसी कोने में छिपी हुई भ्रांतियों व शंकाओं को दूर किया और विषय वस्तु व तार्किकता के आधार पर विचार करने पर हमको भी यह अहसास हुआ कि अगर 1994 में उ.प्र. में समाजवादी पार्टी की नेताजी के नेतृत्व वाली सरकार नहीं होती तो शायद उत्तराखंड राज्य आंदोलन को लेकर सघन माहौल बनना और राज्य का गठन होना इतना आसान नहीं था।