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Saturday, May 04, 2024

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राजधानी के सवाल पर

त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा सदन में सर्वसम्मति के पारित प्रस्ताव के अनुरूप गैरसंण के स्थान पर देहरादून में बजट सत्र आहूत कर दिया विपक्ष को हमलावर होने का मौका । उत्तराखंड की नवगठित भाजपा सरकार ने अपना पहला बजट सत्र जनता की अदालत में रखने का मन बना लिया है और इसके लिऐ विधानसभा सत्र आहूत करने समेत तमाम कवायदें शुरू हो गयी है लेकिन सरकार के इस आवहन पर विपक्ष के तेवर शुरूवाती दौर से ही कड़े नजर आ रहे है और इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि अगर सरकार के मद व दो तिहाई से भी अधिक बहुमत प्राप्त होने की गलतफहमी में वह इस तरह के कोई कदम उठाती है तो कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल उसे सदन के भीतर व बाहर घेरने का पूरा प्रयास कर सकते है। यह ठीक है कि सत्तापक्ष इससे पूर्व में भी दो बार सदन आहूत कर चुका है और सरकार गठन के तुरन्त बाद विधानसभा के माध्यम से लेखानुदान पारित कर तीन माह का संक्षिप्त बजट जनता की अदालत में प्रस्तुत किया जा चुका है लेकिन यह ध्यान देने योग्य विषय है कि पिछली सरकार ने विधानसभा के माध्यम से अगल बजट सत्र गैरसेण में आहूत किये जाने सम्बन्धी प्रस्ताव सर्वसहमति के साथ पारित किया था और अगर वर्तमान सरकार ऐसा नही करती तो यह सिर्फ सदन की अवमानना होगी बल्कि जनता के बीच भी यह संदेश जायेगा कि वर्तमान सरकार पहाड़ विरोधी है। काबिलेगौर है कि पूरे प्रदेश में चल रहे महिलाओं के शराब विरोधी आन्दोलन के कारण प्रदेश की हालत बहुत अच्छी नही कहीं जा सकती तथा कुछ पहाड़ी जिलों में देशी शराब की बिक्री पहली बार खोले जाने व शराब की दुकानों के खुलने बंद होने के समय में एकाएक ही बदलाव किये जाने के चलते पहाड़ की महिलाऐं यह मानकर चल रही है कि मौजूदा सरकार पहाड़ों पर शराब के वैध कारोबार से कहीं ज्यादा इसके अवैध कारोबार को बढ़ावा देने के फेर में है और इसके लिऐ उसे पहाड़ी जनसमुदाय को हो रहे आर्थिक नुकसान या उसके सामाजिक पतन की कोई चिन्ता नही है। इन हालातों में अगर विपक्ष गैरसेंण के मुद्दे को आगे कर पहाड़ी अस्मिता की पैरोकारी के नाम पर सरकार का विरोध करता है तो यह तय है कि जनता की संवेदनाऐं विपक्ष के साथ होंगी ओर चुनावी मोर्चे पर बुरी तरह असफल रहने वाले उत्तराखंड क्रान्ति दल समेत तमाम क्षेत्रीय दलों की मजबूरी होगी कि वह अपने खोये वजूद को वापस पाने के लिऐ इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश करें। लिहाजा त्रिवेन्द्र सिंह रावत की मुश्किलें बढ़ सकती है और आगामी माह में सरकार को शराब विरोधी महिलाओं के अलावा उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारी संगठनों व जनवादी विचारधारा के नजदीक माने जाने वाले तमाम सामाजिक संगठनों से भी जूझना पड़ सकता है क्योंकि गैरसेण इन तमाम संगठनों की पहली पंसद है और उत्तराखंड को पहाड़ी राज्य के रूप मेें स्थापित करने की चाह रखने वाली तमाम विचारधाराऐं यह मानती है कि इस राज्य के सूदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों व पर्वतीय अंचल के विकास के लिऐ इसकी राजधानी गैरसेण स्थानांतरित किया जाना जरूरी है। हांलाकि इन तमाम जनसंगठनों व जनाधिकारों के लिऐ संघर्ष का दावा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का उत्तराखंड की राजनीति में कोई राजनैतिक वजूद नही है और उत्तराखंड क्रान्ति दल समेत तमाम छोटे-बड़े राजनैतिक दल विधानसभा में अपना वजूद खोने के कारण सिर्फ कागजों तक सिमटे दिखाई देते है लेकिन इन तमाम सामाजिक व राजनैतिक संगठनों की जमीनी ताकत व समाज के सबसे निचले क्रम में इनके कार्यकर्ताओं की उपस्थिति को नकारा नही जा सकता और अगर यह तमाम शक्तियाँ पूरी एकजुटता के साथ अपना वजूद बचाने के लिऐ गैरसैण को मुद्दा बना सड़कों पर आती है तो सरकार की मुश्किलें निश्चित रूप से बढ़ती हुई दिखाई देगी। इन हालातों में राज्य का एकमात्र विपक्षी दल कांग्रेस भी चाहेगा कि वह सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिऐ गैरसेंण के मुद्दे को जोर-शोर से उठाये और कांग्रेस शासन के दौरान गैरसेंण में विधानसभा भवन बनाये जाने संबधी फैसला लेने का श्रेय लेने वाली विजय बहुगुणा व सतपाल महाराज की जोड़ी को अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास करें लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के बड़े नेता व जमीनी कार्यकर्ता वर्तमान में एक बड़े आन्दोलन के लिऐ तैयार है और गैरसैण के मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी करने के लिऐ उन्हें उक्रांद समेत अन्य तमाम छोटे क्षेत्रीय राजनैतिक दलो व सामाजिक संगठनों से सहयोग लेने में कोई झिझक तो नही है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने अपने तीन वर्षो के शासनकाल में पहाड़ी अस्मिता एवं गैरसेंण के सवाल को हमेशा प्राथमिकता पर रखा और पहाड़ ही नही बल्कि पहाड़ों से पलायन कर देश-विदेश के मैदानी इलाकों में बस चुके इस पहाड़ी राज्य के मूल निवासियों को इन तीन वर्षो के दौरान कुछ मामलों में अपनी जन्मभूमि से नजदीकियों का अहसास भी हुआ लेकिन सरकार सिवाय घोषणाओं के माध्यम से प्रवासी व पलायने कर चुके उत्तराखण्डी मूल के निवासियों को पहाड़ की ओर आकर्षित करने से आगे नही बढ़ सकी क्योंकि राज्य की नौकरशाही के ऐजेण्डे में कभी राज्य का विकास या फिर राज्य की जनता की मूलभूत समस्याओं से जुड़े प्रश्न रहे ही नहीं। डबल इंजन के माध्यम से राज्य का तेजी से विकास करने के दावे के साथ सत्ता के शीर्ष पर काबिज हुई भाजपा से जनता को उम्मीदें थी कि इस बार अल्पमत या बहुमत की डगमग से दूर एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार सत्ता में आने के बाद सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों में बदलाव आयेगा और सरकार को बचाये रखने की मजबूरी अथवा उपचुनावों में जीत हासिल करने के रणकौशल के लिऐ नौकरशाहों की कुटिल नीतियों के सामने घुटने टेकती रही पूर्ववर्ती सरकारों से हटकर वर्तमान सरकार विकास के नये कीर्तिमान स्थापित करेगी लेकिन अफसोसजनक है कि अस्तित्व में आने के साथ ही खनन और शराब बिक्री के फेर में उलझी सरकार इस हद तक दयनीय हालत मंे दिखाई दे रही है। कि प्रदेश की जनता को उसके वजूद पर ही सन्देह होने लगा है। इन हालातों मे अगर सरकार गैरसेंण के मुद्दे पर उठने वाली किसी भी आवाज से उलझती है तो यकीन मानियें कि आने वाला वक्त सरकार के अस्तित्व ही नही बल्कि सरकारी कामकाज के लिहाज से भी बुरा कहा जा सकता है क्योंकि सरकार द्वारा समय से फैसला न लिये जाने अथवा मामलों को लटकायें जाने की नीति के कारण शिक्षा मित्र समेत कई अन्य कर्मचारियों के संगठन भी सरकार के विरूद्ध मोर्चा खोलने का इंतजार कर रहे है। इसलिऐ त्रिवेन्द्र सिंह रावत को चाहिऐ कि वह प्रस्तावित बजट सत्र को गैरसेंण की जगह देहरादून में आहूत किये जाने सम्बंन्धी अपने प्रस्ताव पर पुर्नविचार करते हुऐ इस असायमिक संकट को टालने का प्रयास करें और कांग्रेस समेत समुचे विपक्ष के नेताओं को अपने विश्वास में लेते हुऐ शराब व खनन जैसे तमाम विवादास्पद मुद्दों पर आगे बढ़ने की कोशिशंे पुनः शुरू की जाय ।

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