महंगाई के इस दौर में | Jokhim Samachar Network

Friday, April 26, 2024

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महंगाई के इस दौर में

 

ठप पड़े रियल स्टेट के कारोबार से, सर्किल रेटों में वृद्धि कर राजस्व बढ़ाने की जुगत में जुटी उत्तराखंड सरकार

उत्तराखंड की तथाकथित रूप से जनहितकारी एवं पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने अपने मंत्रीमंडल के हालिया फैसलों के माध्यम से जनभावनाओं को छूने का प्रयास किया है और ऐसा प्रतीत होता है कि गैरसैण को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित किए जाने के मुद्दे पर गोलबंद हो रही आंदोलनकारी ताकतों एवं आल वेदर रोड अथवा पंचेश्वर बांध जैसे मामलों में प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण के विरोध में उठते सुरों से घबराई सरकार ने कुछ क्षेत्र विशेष के सर्किल रेटों में अप्रत्याशित वृद्धि कर आम आदमी को राहत देने का मन बनाया है। हालांकि ट्रांसपोर्ट व्यवसायी प्रकाश पाण्डेय की आत्महत्या के बाद उठ खड़े हुए सवालों और विपक्ष द्वारा आन्दोलन की शक्ल में सरकार पर किए जा रहे हमलों को लेकर सरकार मौन है तथा देहरादून व हरिद्वार समेत ऊधमसिंहनगर व नैनीताल के भी कुछ नगरीय क्षेत्रों के सर्किल रेटों में बेतहाशा वृद्धि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अपनी आय के संसाधन बढ़ाने के नये विकल्प तलाश रही है लेकिन सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों व ग्रामीण इलाकों में सरकार द्वारा की गयी सर्किल दरों की वृद्धि यह इशारा कर रही है कि सरकार आम आदमी को उसकी जमीनों के अधिग्रहण पर बेहतर मुआवजा देने के विकल्पों पर भी विचार कर रही है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसने माननीय मंत्रियों की एक उपसमिति का भी गठन किया है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि पंचेश्वर बांध राज्य ही नहीं वरन् भारत सरकार की भी एक महत्वाकांक्षी परियोजना है और इस परियोजना के धरातल पर उतरने के बाद पड़ोसी देश नेपाल के साथ कई मोर्चों पर मजबूत सम्बंध स्थापित होने की सम्भावना के साथ ही साथ देश के एक बड़े हिस्से को सिंचाई योग्य पानी व अनावरत् रूप से विद्युत मिलना भी सम्भावित है लेकिन पहाड़ी जनता के बीच काम कर रहे अनेक सामाजिक संगठन पलायन को मुद्दा बनाकर स्थानीय जनता को इस बांध के निर्माण के लिए किए जाने वाले भूमि अधिग्रहण के विरोध में एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं और पहाड़ की अस्मिता एवं जीवन्त संस्कृति को चर्चाओं की विषय वस्तु बनाकर जनभावनाओं को सरकार के विरोध में एकजुट करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। ऐसी हालत में सरकार की मजबूरी है कि वह जनपक्ष के एक हिस्से को अपनी तरफ खड़ा करने के लिए उनकी जमीनों के एवज में उचित मुआवजा निर्धारित कर प्रभावित जनता के पुनर्वास के विकल्पों पर विचार करे और सरकार के मौजूदा फैसले को देखते हुए यह लगता है कि उसने खामोशी के साथ इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। यह ठीक है कि सरकार द्वारा प्रभावित क्षेत्रों के मूल्य दरों में अप्रत्याशित वृद्धि नहीं की गयी है और न ही सरकार द्वारा की गयी इस सर्किल दरों में वृद्धि से आल वेदर रोड व पंचेश्वर बांध के निर्माण के चलते प्रभावित होने वाली जनता को कोई बहुत बड़ा आर्थिक फायदा ही होने वाला है लेकिन सरकार का उद्देश्य आम आदमी को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी खजाने की बंदरबांट भी नहीं है बल्कि अपने इस कदम से वह आम जनता के हितों को लेकर चिंतित दिखने के साथ ही उन चर्चाओं पर लगाम चाहती है जो सरकार विरोधी सुरों को हवा दे रहे हैं। शायद यही वजह है कि सरकार ने अपने पक्ष से सभी विकल्पों को खुला छोड़ते हुए पंचेश्वर बांध के मुद्दे पर सिंचाई मंत्री की अध्यक्षता में एक उपसमिति गठित करने की घोषणा भी की है और अब सरकार का प्रयास होगा कि वह अधिग्रहण सम्बन्धी दावों को आगे बढ़ाते हुए अपनी गतिविधियों में तेजी लाये जिससे केन्द्र सरकार द्वारा तेजी के साथ उन विषयों पर आगे बढ़ा जा सके जिन्हें लेकर अब तक स्थिरता बनी हुई है। कुल मिलाकर देखा जाय तो सरकार ने अपनी इस मंत्रीमंडल की बैठक के माध्यम से न सिर्फ जनचर्चाओं की विषय वस्तु को बदलने का प्रयास किया है बल्कि वह केन्द्र सरकार द्वारा की गयी घोषणाओं के अनुपालन में तेजी लाकर खुद पर लग रहे अकर्मण्यता अथवा ढीली-ढाली सरकार होने के आरोपों से बचने का भी प्रयास कर रही है लेकिन अपने इन चालाकी भरे फैसलों के बीच सरकार यह भूल रही है कि आल वेदर रोड अथवा पंचेश्वर बांध के मुद्दे पर जनपक्ष की ओर से उठाये जा रहे रोजी-रोटी के सवालों का जवाब देने में वह पूरी तरह असफल है और सरकार द्वारा अब तक किए गए विकास कार्यों के परिपेक्ष्य में भी उसके पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं है। यह माना कि सत्ता पक्ष को सदन में पूर्ण बहुमत हासिल है और सदन में मौजूद कमजोर विपक्ष के चलते जनता की ओर से उठाये जा रहे कई प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार अपने मंत्रीमंडल की बैठकों के माध्यम से लायी गयी तमाम व्यवस्थाओं के जरिए वाकई में जनहित करना चाहती है या फिर स्थानीय निकायों के सीमा विस्तार को लेकर उठाए गए उसके कदमों के बाद सर्किल रेटों में की गयी यह बेतहाशा वृद्धि सिर्फ और सिर्फ भूमाफिया व जमीनी की दलाली में लगे एक वर्ग विशेष को फायदा देने वाली है। जहां तक सर्किल रेटों में की गयी वृद्धि के जरिए सरकार की आय बढ़ने का सवाल है तो दामों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि इस जरिये से होने वाली आय के माध्यम से सरकार राज्य में स्पष्ट रूप से दिख रही तंगहाली पर लगाम लगाने में सफल रहेगी और सरकारी आय में इस हद तक बढ़ोत्तरी होगी कि राज्य में प्रस्तावित विकास कार्यों को गति दी जा सकेगी लेकिन यह तय है कि सरकार के इस फैसले के बाद आम आदमी के लिए मकान बनाना और ज्यादा महंगा हो जाएगा तथा पहले से ही मंदी के दौर से जूझ रहे रियल स्टेट के कारोबार में और ज्यादा मंदी का असर देखने को मिलेगा। इन हालातों में आम आदमी के कारोबारों का प्रभावित होना लाजमी है और इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इसका सीधा असर निर्माण कार्यों में लगे मजदूर वर्ग व उससे जुड़े अन्य व्यवसायों पर पड़ेगा। लिहाजा यह मानने के कोई कारण नहीं हैं कि उत्तराखंड सरकार द्वारा अपनी हालिया मंत्रीमंडल की बैठक के जरिए लिए गए तमाम फैसले आम आदमी को राहत देने वाले हैं या फिर इनसे जन सामान्य का जीवन किसी भी तरह प्रभावित होने की सम्भावना है। हां इतना जरूर है कि सरकार ने अपने मंत्रीमंडल की इस बैठक के जरिए आम आदमी का ध्यान उन तमाम सवालों व समस्याओं से हटाने की कोशिश की है जो पिछले कुछ महिनों में भाजपा की इस सरकार के कार्यकाल के दौरान आम आदमी के सामने आयी है। हालांकि इन समस्याओं में कुछ भी नया नहीं है और न ही यह तमाम समस्यायें व जनाक्रोश भाजपा सरकार के इन नौ माह के कार्यकाल की उपज है लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत व जनसमर्थन के बाद भाजपा के नेता व सत्ता के शीर्ष पर काबिज चेहरे यह कह पाने की स्थिति में नहीं हैं कि जनता के समक्ष आ रही इन तमाम दुश्वारियों के लिए वह जिम्मेदार नहीं है। वैसे भी बाजार में छायी मंदी व बेरोजगारी के लिए केन्द्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार माना जाना जायज है और उत्तराखंड में भाजपा के सत्ता पर कब्जेदारी के दौरान शराब नीति में फेरबदल व गैरसैण में दो दिवसीय सत्र आयोजित करने जैसे फैसले लेकर भाजपा के नेताओं ने खुद-ब-खुद सरकार विरोधी आंदोलनों के लिए माहौल बनाया है। ठीक इसी प्रकार पंचेश्वर बांध के मामले में सत्ता पक्ष द्वारा जानबूझकर की जा रही मुआवजा राशि के निर्धारण एवं विस्थापन व पुनर्वास जैसे कार्यों में देरी इस क्षेत्र की शांत वादियों में सरकार विरोधी माहौल बनाने में मददगार साबित हो रही है वरना यह एक कटु सत्य है कि पंचेश्वर बांध बनाये जाने के नफे-नुकसान को लेकर तकनीकी पहलू भले ही जो चाहे हो लेकिन स्थानीय जनता के नजरिये से यह उनके लिए पहाड़ से पलायन करने का एक अच्छा अवसर मात्र है और यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि वर्तमान में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में वही आबादी निवास कर रही है जो अपने आर्थिक कारणों के चलते पहाड़ से विस्थापित होने में असफल रही है। खैर इस तरह की वजहों व समस्याओं पर चर्चा के लिए तमाम तरह के अवसर हमारे सामने आते रहते हैं लेकिन अगर फिलहाल मंत्रीमंडल के हालिया फैसलों की बात करें तो उसमें ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता जिसेे व्यापक जनहित में सरकार द्वारा उठाया बड़ा कदम कहा जाये। हां इतना जरूर है कि मंत्रीमंडल ने इस बार अपने द्वारा पूर्व में बनाये गए नियम की ही अवहेलना करते हुुए एक सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय के निर्माण हेतु निशुल्क भूमि देने का फैसला जरूर लिया है लेकिन संघ की विचारधारा से उत्प्रेरित एक सरकार द्वारा इस तरह का फैसला लेना कोई बड़ी बात नहीं है और वैसे भी अगर सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालयों के पढ़ाई के स्तर व छात्रों को दिए जाने वाले भारतीय संस्कार के नजरिये से बात करें तो यह फैसला गलत भी प्रतीत नहीं होता। ठीक इसी प्रकार सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों को सुविधा केन्द्रों की तरह उपयोग किए जाने का मंत्रीमंडल का फैसला बड़ा ही लोक-लुभावन प्रतीत होता है लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार अपने इन तमाम फैसलों को अमलीजामा पहनाने में किस हद तक कामयाब रहती है।

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