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Friday, April 26, 2024

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सदन से सड़क तक

केन्द्र सरकार की कार्यशैली के खिलाफ आक्रोशित जनता को सरकार के खिलाफ सड़को पर उतारने में नाकाम विपक्ष मीडिया मैनेजमेन्ट के जरिये सत्तापक्ष ने दी एक और कड़ी चुनौती।

लोकसभा के चालू सत्र के दौरान सदन में अविश्वास प्रस्ताव के भारी बहुमत के साथ गिर जाने के बावजूद यह कहना सही नही होगा कि कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों को इससे कोई फायदा नही हुआ और अब आगामी लोकसभा चुनावों के परिपेक्ष्य में एकजुट होते दिख रहे विपक्ष के गठबन्धन को इस सारी जद्दोज़हद से कोई मदद नही मिलेगी। हाॅलाकि भाजपा के समर्थको एवं संघ के कार्यकर्ताओं ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदन में उठे मुद्दो से आम जनता का ध्यान हटाने के लिऐ राहुल गाॅधी द्वारा देश के प्रधानमन्त्री को आलिगंनबद्ध करने अथवा इस दौरान आॅख मारने को मुद्दा बनाने का पूरा प्रयास किया और इस विषय पर चर्चाओ का दौर अभी लम्बा चलेगा कि राहुल द्वारा अप्रत्याशित तौर पर की गयी यह हरकत सदन की मर्यादाओं के अनुकूल थी भी अथवा नही लेकिन इस सम्पूर्ण कार्यवाही के बाद यह लगभग तय हो गया है कि आगामी लोकसभा चुनावों में अगर नरेन्द्र मोदी भाजपा का मुख्य चुनावी चेहरा होते है तो संयुक्त विपक्ष का महागठबन्धन राहुल गाॅधी को आगे रखकर चुनाव के मैदान में उतरेगा। यह माना कि राहुल अभी परिपक्व नेता नही है और उन्होने सदन में जों कुछ भी किया उसके पीछे कोई छिपी रणनीति या दूरगामी ऐजेण्डा नही दिखाई देता लेकिन अपने सम्बोधन के दौरान उन्होने सत्तापक्ष पर जो भी आरोप लगाये उनको हॅसकर टालना या फिर पिछले तमाम चुनावों की तरह इस बार भी पूर्ववर्ती सरकारों के कामकाज व मंशा पर सवाल उठाते हुऐ चुनावी मंच को मजमें में तब्दील कर पाना अब भाजपा के लिऐ आसान नही होगा क्योंकि सदन में दिखी विपक्ष की एकता अब सड़क पर भी सामने आयेगी और सरकार को उसके कामकाज व फैसलो के आधार पर घेरने के प्रयास अब ज्यादा तेज़ होंगे। उपरोक्त के साथ ही साथ सदन में बहुमत साबित करने के लिऐ सरकार के साथ खड़े दिखे सहयोगी दलो व सरकार को इस अवसर का लाभ देने के लिए सदन से बर्हिगमन कर गये क्षेत्रीय दलो को अपने प्रभाव क्षेत्र वाले राज्यों में जनता को यह जबाव भी देना होगा कि उन्होने सत्तापक्ष के कामकाज अथवा कार्यशैली में ऐसी क्या खूबी देखी कि उन्हे सत्तापक्ष को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष समर्थन देने के लिऐं मजबूर होना पड़ा। हम यह देख और महसूस कर सकते है कि सत्ता पर अपनी कब्जेदारी बनाये रखने के लिऐ कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा ने अपने तमाम प्रयासों व कार्यकर्ताओं के सहयोग से कांग्रेस के वरीष्ठ नेता राहुल गाॅधी को मंदबुद्धि साबित करने की पूरी कोशिश की और एक नियोजित साजि़श के तहत उन्हे पप्पू के उपनाम से भी नवाज़ा गया लेकिन अपनी आक्रामक कार्यशैली व सदन में दिये गये धारा प्रवाह भाषण के दम पर राहुल ने इस बार यह साबित किया है कि उन्हे न सिर्फ राजनीति की बारीकियों व सरकार की कमियों की पूरी जानकारी है बल्कि वह अपना सामूहिक मजाक बनाये जाने अथवा सत्ता पक्ष द्वारा किये जाने वाले व्यंग्यो से घबराने वाले नही है। यह हो सकता है कि हाल-फिलहाल पूर्ण बहुमत की आड़ में अपनी खामियों को छुपाने में सफल दिख रहा सत्तापक्ष विपक्ष के सामूहिक प्रयास से सदन में लाये गये व चर्चा के विषय बने अविश्वास प्रस्ताव को एक गम्भीर प्रयास मानने से इनकार करता हुआ अपनी मनमर्जी करता दिखाई दे तथा उसे जनता के बीच कुछ मुद्दो को लेकर स्पष्ट दिख रही नाराजी व जनान्दोलनों की सुगबुगाहट से भी कोई फर्क पड़ता न दिखे लेकिन इस तथ्य को नकारा नही जा सकता कि सदन में आधा सैकड़ा से भी कम सासंदो के समूह के रूप में उपस्थित कांग्रेस ने अपने अनुभवहीन व पप्पू नेता के दम पर हारी हुई बाजी के पक्ष में खड़े होने के लिऐ सासंदो की एक ठीक-ठाक जमात जुटाई है और विपक्ष की यह एकजुट ताकत आने वाले भविष्य में सत्ता पक्ष के लिऐ एक बड़ा खतरा हो सकती है। अगर तथ्यों व तर्को की गम्भीरता पर ध्यान दे तो हम पाते है कि सत्ता पक्ष के पास विपक्ष द्वारा उठाये गये तमाम सवालों का कोई भी तार्किक जबाव नही है और न ही नेता सदन द्वारा सबूतो व आॅकड़ो का हवाला देकर विपक्ष द्वारा उठाये गये सवालातो का कोई समाधान अथवा वाज़िब जवाब जनता की अदालत में रखने की कोई कोशिश ही की गयी है लेकिन इस सबके बावजूद प्रायोजित मीडिया के माध्यम से यह माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि मानो हताश और निराश कांग्रेस सदन में कुछ भी न कर पाने के साथ ही साथ सरकार की घेराबन्दी करने में पूरी तरह असफल रही हो। यह माना कि पिछले लोकसभा चुनावों के साथ ही साथ विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी बुरी तरह मात खायी कांग्रेस के पास सदन में पर्याप्त संख्या में बल न होने के कारण इस अविश्वास प्रस्ताव का बहुमत के साथ गिर जाना निश्चित माना जा रहा था और कांग्रेस ने यह सबकुछ जानने व समझने के बाद भी सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा किये जाने पर ज़ोर दिया लेकिन अगर दूसरे अर्थो में देखा जाये तो क्या विपक्ष का यह तरीका अमर्यादित अथवा नीतियों के विरूद्ध कहा जा सकता है और मौजूदा दौर में जब सत्ता पक्ष अपने कार्यकाल में चलायी गयी योजनाओं व विकास से सम्बन्धित अन्य आकड़ो को जनता के समक्ष रखने से भी परहेज कर रहा हो तो विपक्ष के पास सच को सामने लाने का इससे बेहतर तरीका दूसरा क्या हो सकता है? इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी सरकार अथवा सत्ता पक्ष के समर्थक अपनी उपलब्धियों व सरकार द्वारा इस पूरे कार्यकाल के दौरान चलायी गयी योजनाओ को जनता के बीच लाने की जगह सदन के भीतर नेता विपक्ष द्वारा की गयी एक सामान्य सी हरकत को चर्चा का विषय बनाते हुऐ राजनीति की दशा व दिशा बदलने की बात करते है तो इससे ज्यादा र्दुभाग्यपूर्ण इस देश व भारतीय लोकतन्त्र के लिऐ कुछ भी नही हो सकता। हम यह देख व महसूस कर रहे है कि पिछले चार-पाॅच सालों में भाजपा ने लगातार कांग्रेस की खामियों व कमियों पर निशाना लगाकर जनसमर्थन हासिल किया है और यह कहने में कोई हर्ज नही है कि पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली में जाति, धर्म व क्षेत्रवाद में बॅट चुकी भारतीय जनता भी हाल फिलहाल विकास अथवा व्यापक जनहित से जुड़े मुद्दो को अपनी प्राथमिकता में रखतें हुऐ मतदान करने के पक्ष में नही दिखाई देती लेकिन इन चार सालों में जनपक्ष के एक हिस्से ने यह भी महसूस किया है कि सत्ता पक्ष एक लम्बे इन्तज़ार के बाद मिले सरकार बनाने के इस मौके का उपयोग अपनी छवि बनाने अथवा विपक्ष के समक्ष चुनौतियों के नये लक्ष्य खड़े करने के लिये करने के स्थान पर विपक्ष के राजनैतिक जनाधार को समाप्त कर सत्ता पर स्थायी कब्जेदारी के लिये किया है और इन कोशिशों के तहत मीडिया के एक बड़े हिस्से को खामोश करने अथवा अपने हिसाब से समाचारों का सम्पादन व निष्पादन करने के लिऐ साम-दाम-दण्ड-भेद की नीतियों का सहारा लेना किसी भी प्रकार से अनुचित नही माना गया है। लिहाजा़ यह तय है कि आगामी चुनावों में भाजपा के लिये सिर्फ कांग्रेस अथवा विपक्ष को गाली देकर चुनाव जीतना आसान नही होगा और अगर कांग्रेस के नेताओ ने ऐसी ही दो-चार कोशिशों के तहत सरकार से पूछने का क्रम जारी रखा कि इन चार-पाॅच वर्षों।

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