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Thursday, May 02, 2024

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आतंक के खिलाफ

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की गयी मोर्चाबंदी के बावजूद हाफिज सईद की पुनः गिरफ्तारी के मामले में मनवांछित परिणाम आने की संभावना नहीं।
मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की पाकिस्तान जेल से रिहाई के बाद यह तय हो गया है कि आतंकवाद के विरूद्ध एकजुटता के संदेश का पाकिस्तान पर कोई फर्क नहीं पड़ा है और न ही पाकिस्तान के नेता भारत में होने वाली हिंसात्मक आतंकी साजिशों से खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि जमात-उल-दावा के प्रमुख नेता हाफिज सईद को दस माह की नजरबंदी के बाद रिहा करने के पाकिस्तान न्यायालय के फैसले व सरकार द्वारा इस संदर्भ में प्रस्तुत की गयी लचर दलीलों के खिलाफ भारत सरकार द्वारा कड़ा विरोध जताते हुए इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के तहत सईद के खिलाफ कठोर कार्यवाही करने की मांग की गई है और अमेरिका की ओर से भी बयान जारी कर यह कहा गया है कि पाकिस्तान सरकार द्वारा हाफिज सईद की रिहाई किए जाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक खराब संदेश गया है लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह की निंदा या अंतर्राष्ट्रीय दबाव मात्र से पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आएगा और अपनी रिहाई के बाद भारत के खिलाफ आग उगल रहे हाफिज सईद व अन्य तमाम आतंकी एक बार फिर पाकिस्तानी कानून की जद में आ पाएंगे। यह माना कि अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति नजरिया अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुकाबले सख्त है और वह आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत भी महसूस करते हैं लेकिन सवाल यह है कि अगर पाकिस्तान शीघ्र ही हाफिज सईद को दोबारा गिरफ्तार नहीं करता है तो क्या अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाएगा या फिर अंतर्राष्ट्रीय अदालतों व संगठनों द्वारा इस गंभीर मुद्दे को संज्ञान में लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। निश्चित रूप से यह सब इतना आसान नहीं है और न ही आतंकवाद से पीड़ित भारत इस तरह की कोई मुहिम चलाता दिख रहा है जिससे आतंकवाद को संरक्षण देने वाले पाकिस्तान जैसे मुल्क वैश्विक बिरादरी में अलग-थलग हो जाएं। हमने देखा कि वर्तमान में पाकिस्तान को लेकर दुनिया भर के तमाम देशों में रोष है और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ने की पाक की प्रतिबद्धता को लेकर सवाल उठने लगे हैं लेकिन भारत चाहकर भी इन परिस्थितियों का फायदा नहीं उठा पा रहा क्योंकि यहां के राजनैतिक दलों व नेताओं के अपने-अपने स्वार्थ हैं और हाफिज सईद की रिहाई या आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की घेराबंदी को यहां के नेता व राजनैतिक दल अपने-अपने नजरिये से देखते हैं। अमेरिका सरकार द्वारा जारी बयानों के क्रम पर अगर गौर करें तो हम पाते हैं कि ट्रंप एवं उनकी सरकार हाफिज सईद को एक खतरनाक आतंकवादी मानती है और उसने इस मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार को अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी है लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत, पाकिस्तान सरकार के इस फैसले के विरोध में ठीक अमेरिका की तर्ज पर पाकिस्तान पर हमलावार होकर अपने दुश्मन को निपटाने की हिम्मत रखता है। अगर राजनैतिक हालातों पर गौर करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत का कोई भी बड़ा नेता या राजनैतिक दल अपने पड़ोसी मुल्क पर ऐसा हमला नहीं चाहता क्योंकि इस हमले के बाद छिड़ी निर्णायक जंग में भविष्य के चुनावों के लिए एक अहम् मुद्दा समाप्त होने का खतरा है। कुछ लोगों को यह गलतफहमी हो सकती है कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के सपने के साथ केन्द्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा व उसका नीति निर्धारक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मौका मिलते ही वैश्विक नक्शे से पाकिस्तान का नाम मिटा देने की हिम्मत रखता है लेकिन अगर नरेन्द्र मोदी सरकार के पिछले चार वर्षों के कार्यकाल पर गौर करें तो हम पाते हैं कि भारत सरकार को ऐसे मौका सिर्फ हाफिज सईद की वर्तमान रिहाई के बाद ही नहीं बल्कि इससे पहले भी कई बार मिला है लेकिन हमारे नीति-निर्धारकों व केन्द्र की सत्ता पर काबिज नेताओं ने इस मौके का फायदा उठा पाकिस्तान की कमर तोड़ने की जगह इन अवसरों का राजनैतिक उपयोग करना ज्यादा अक्लमंदी समझा है। लिहाजा कम ताकतवर होने के बावजूद भी पाकिस्तान का हौसला बढ़ना लाजमी है और यहां पर यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि भारत सरकार की इसी कमजोरी की वजह से वहां के नेताओं या सेना में हमारे मुल्क को लेकर कोई खौफ नहीं है। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि भारत की कुल जनसंख्या में एक ठीक-ठाक हिस्सा मुसलमानों का है और पाकिस्तान सरकार की मदद से तमाम तरह की आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले हाफिज सईद जैसे आतंकी अधिकांशतः इसी कौम के गुमराह युवाओं का इस्तेमाल करके अपने कृत्यों को अंजाम देते रहे हैं लेकिन सूचना व संचार का एक बड़ा तंत्र होने का दावा करने वाली हमारी सरकारी व्यवस्था अधिकांश मामलों में इन मोहरों को पहचानने में असफल हो जाती है या फिर भ्रष्टाचार का दानव व्यवस्था पर इस कदर हावी दिखता है कि संदिग्ध दिखने वाले मामलों में हर जगह मौन ही मौन नजर आता है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह हाफिज सईद से निपटने का कोई दावा प्रस्तुत करने से पहले देश की सीमाओं के भीतर छिपे दुश्मनों को अलग-थलग करने व उनका चिन्हीकरण करने का काम शुरू करे लेकिन इसके लिए एक कौम विशेष को गद्दार घोषित करने या फिर सभी मुस्लिमों को संदिग्ध मान लेने से काम नहीं चलेगा बल्कि अपनी राजनैतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसा करके हम उन अदृश्य ताकतों की मदद ही करेंगे जो हमारे मुल्क में आतंकी कार्यवाहियों को अंजाम देने के लिए सहयोगी हाथों को तलाश रहे हैं। यह एक बड़ा सवाल है कि हम अमेरिका को ज्यादा भरोसेमंद मान सकते हैं या फिर अपने देश में रहने वाली उस कौम को जिसका इस मुल्क की सरजमी से न सिर्फ रोटी-बेटी का रिश्ता जुड़ा है बल्कि जिसकी कई पुश्ते यहां जमींदरोज हो गयी हैं। अफसोस का विषय है कि हमारा भरोसा अपने हमवतन भाईयों से कहीं ज्यादा उन पड़ोसी मुल्कों पर हैं जो सिर्फ व्यवसायिक कारणों से भारत से संबंध बनाए रखना चाहते हैं। यह ठीक है कि भारत एक बड़ा बाजार है और इस बाजार में अपने उत्पादों को उतारने के लिए अमेरिका व चीन समेत कई मुल्क विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारे साथ खड़े दिखते हैं लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की सेना पूरी तरह से अमेरिका सरकार द्वारा दी गयी वित्तीय मदद पर चलती है और अगर अमेरिका की सरकार चाहे तो वह एक झटके में ही पाकिस्तान के कसबल ढीले कर सकती है किंतु अमेरिका की दिलचस्पी हाफिज सईद से कहीं ज्यादा हक्कानी नेटवर्क को समाप्त करने में है और मजे की बात यह है कि हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी सेना के पर्याप्त समर्थन के कई सबूत होने के बावजूद भी अमेरिका इस मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने के पक्ष में नहीं दिखता। इस हालत में यह तथ्य स्वयं में ही विचार योग्य है कि भारत सरकार द्वारा आतंक के खिलाफ लड़ी जा रही किसी भी लड़ाई में अमेरिका भारत की कितनी मदद कर सकता है और भारत सरकार हाफिज सईद की रिहाई को एक राजनैतिक मुद्दा बनाने की जगह इस समस्या से किस तरह निपट सकती है।

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