देहरादून। नगर निगम आखिर किस नियमावली के तहत काम कर रहा है। यह आज तक दूनवासियो की समझ में नहीं आया है। कोई उपकरण खरीदने हों तो कोई नियम नहीं देखे जाते हैं जबकि कर्मचारी हितों की बात हो तो उत्तर प्रदेश म्यूनिसिपल एक्ट और अन्य नियमों का हवाला दिया जाता है। मृतक सफाई कर्मचारियों के आश्रितों को नियुक्ति देने के मामले को भी नगर निगम के अधिकारियों ने इन्हीं कथित नियमों के जाल में फंसा कर रखा हुआ है।
वर्तमान में निगम के इस कथित नियम के तहत यदि किसी सफाई कर्मचारी के घर में दो नौकरी है तो एक की मृत्यु होने पर उसके आश्रित नौकरी नहीं मिलेगी, जबकि सूचना के अधिकार के तहत मांगी जानकारी में खुलासा हुआ है कि इस तरह के मामलों में सन् 2014 आश्रितों को नौकरी मिलती आई है तो सवाल यह उठ रहा है कि आखिर चार साल में ही निगम के नियम कैसे बदल गए या फिर इसके पीछे अन्य कोई कारण है। वहीं जानकारो का कहना है कि मृतक सफाई कर्मचारियों के आश्रितो को नौकरी देने का नगर पालिका एक्ट में ऐसा कोई नियम नहीं है, वो नियम लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के द्वारा भरे गए पदों के लिए है।
सफाई कर्मचारियों के पद इन दोनों ही आयोगों से नहीं भरे जाते हैं, इसलिए इन पर यह नियम लागू ही नहीं हो सकता है। उत्तर प्रदेश नगर पालिका एक्ट में भी ऐसा कोई स्पष्ट नहीं है। तो सवाल यह उठ रहा है कि आखिर निगम प्रशासन मृतक सफाई कर्मचारियों के आश्रितो के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया क्यों अपना रहा है। एक ओर तो 60 वार्डों में तैनात सफाई कर्मचारियों को नए वार्डों में सफाई के लिए भेजा जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर मृतक सफाई कर्मचारियों के आश्रितो को सिर्फ इसलिए नौकरी नहीं दी जा रही है कि उनके घर में दो नौकरी हो जाएगी। इससे न केवल सफाई कर्मचारियों के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया कहा जाएगा बल्कि दोहरी नीति की मार भी कहा जा सकता है।
वहीं नगर निगम के अधिकारी जिस उत्तर प्रदेश नगर पालिका एक्ट के नियमों का हवाला देकर मृतक सफाई कर्मचारियों के आश्रितो को नियुत्तिफ देने से इनकार कर रहे हैं वे इस बात पर क्यों आँऽें बंद किए हुए हैं कि वहां की भौगोलिक परिस्थितियाँ यहां की भौगोलिक परिस्थितियों से काफी अलग है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने निकाय चुनाव से पूर्व एक बयान में कहा था कि उत्तराखंड में जल्द ही निकाय एक्ट बनाया जाएगा, लेकिन चुनाव संपन्न हुए ढाई माह बाद भी प्रदेश के निकायों को अपना एक्ट अभी तक नहीं मिल पाया है। सिर्फ वित्तीय अधिकार से क्या होगा।