देहरादून। हालांकि यह एक इत्तेफाक हो सकता है कि एक ही पखवाड़े के भीतर दो बार शिव को आगे कर उनके समर्थकों अथवा सहयोगियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है लेकिन यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि अगर शिव समर्थकों व सहयोगियों की नाराजगी इसी प्रकार बनी रही तो आगे आने वाले समय में सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं ।
पूरे मामले में अगर गौर करें तो हम पाते हैं की वेब मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष व बेबाक पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी के विरोध में सड़कों पर उतरने को आतुर पत्रकार संगठनों का आक्रोश अभी थमा ही नहीं था कि सरकार द्वारा मंत्रिमंडल की एक बैठक के माध्यम से लिए गए फैसले के विरोध में सरकार के ही एक दर्जा धारी राज्यमंत्री को आगे कर पंडा -पुजारियों का समूह सरकार की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतरने को आतुर दिखाई दे रहा है।
जी हां यह मौजूदा वक्त की एक बड़ी खबर है कि उत्तराखंड के चारधाम समेत तमाम मंदिरों को एक साथ लेकर वैष्णो देवी की तर्ज पर साइन बोर्ड बनाने के उत्तराखंड सरकार के फैसले के बाद राज्य का पंडा पुरोहित समाज सरकार से नाराज दिखाई दे रहा है । हालांकि चार धाम परिषद के उपाध्यक्ष व गढ़वाल क्षेत्र के लोकप्रिय कथावाचक शिवप्रसाद मंमगाई जी द्वारा उत्तराखंड के तमाम पंडा -पुरोहित व मंदिर के के हक- हकूकधारियों को पूरा समर्थन देते हुए उनका अहित ना होने देने की बात कही है और उनका मानना है की सरकार के इस निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे जिससे चार धाम यात्रा व्यवस्था में सुधार होगा व यात्रियों को बेहतर व्यवस्थाएं प्राप्त होंगी लेकिन शिवप्रसाद मंमगाई पर आस्था रखने वाला ब्राह्मण समाज सरकार के खिलाफ अपने हकों की लड़ाई को शिवप्रसाद ममगाईं के नेतृत्व में ही लड़ने को आतुर दिखाई दे रहा है और विभिन्न समाचार पत्रों समेत मीडिया के तमाम हिस्सों में शिवप्रसाद मंमगाई के चार धाम परिषद उपाध्यक्ष पद से इस्तीफे की खबर प्रमुखता से छाई हुई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अपनी घोषित रणनीति के क्रम में उत्तराखंड का ब्राह्मण समाज व पंडा पुरोहित विधानसभा के घेराव के लिए कितना समर्थक जुटा पाते हैं और केदारनाथ क्षेत्र के विधायक मनोज रावत इस पूरे मुद्दे को कितनी मजबूती के साथ विधानसभा में रख पाते हैं ।यह भी दिलचस्प है कि केदारनाथ के विधायक मनोज रावत पूर्व में पत्रकारिता के पेशे से जुड़े रहे हैं, इस नाते पुलिस द्वारा अनैतिक रूप से गिरफ्तार किए गए शिव प्रसाद सेमवाल के विषय को विधानसभा में रखना उनकी नैतिक जिम्मेदारी व मजबूरी दोनों ही है। इन हालातों में सरकार द्वारा जाने अनजाने में किया जा रहा यह शिव विरोध सरकार को कितना भारी पड़ता है, यह कहा नहीं जा सकता और इस सबसे ऊपर यह एक अटल सत्य है कि बाबा केदार समेत चारों ही धाम व राज्य के तमाम मंदिरों से जुड़ा होने के कारण वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर चार धाम श्राइन बोर्ड बनाने का मुद्दा राज्य की सियासत को एक अलग रंग दे सकता है क्योंकि इससे पूर्व भी भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं ने उत्तराखंड के ब्राह्मण समाज के खिलाफ अनगर्ल बयानबाजी की है और अब एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को सीईओ नियुक्त कर राज्य के तमाम मंदिरों समेत चार धाम को लेकर साइन बोर्ड बनाने की सरकारी घोषणा इस राज्य के ब्राह्मण समुदाय पर निजी एवं आर्थिक हमले की तरह देखी जा रही है। इन हालातों में राजनीतिक रूप से नेतृत्व विहीन दिख रहा ब्राह्मण पुरोहित समाज इस लड़ाई को इतना लंबा व कैसे लड़ पाएगा कहा नहीं जा सकता लेकिन हालात यह इशारा कर रहे हैं कि फिलहाल तो शिव की नाराजी सरकार के विपक्ष में ही है।