देहरादून। उत्तराखण्ड की पांच सीटों पर नतीजों के लिए लगभग डेढ़ महीने इंतजार करना होगा. तब तक इसकी समीक्षा चलती रहेगी कि किस पार्टी ने कैसा चुनाव लड़ा और कौन सी सीट किसकी झोली में जा सकती है। कांग्रेस और भाजपा के चुनाव लड़ने की शैली और नतीजों की समीक्षा कर रहा ह।. यह उन संवाददाताओं के फीडबैक पर आधारित है जिन्होंने सुबह से शाम तक चुनावी अभियान को देखा है। समीक्षा से नतीजा ये निकला है कि भले ही भाजपा की प्रचार शैली बेहद आक्रामक और नई है फिर भी उसका 2014 का प्रदर्शन दोहरा पाने में कांग्रेस बाधाएं खड़ी कर रही है। लोकसभा चुनाव 2019 रू राहुल गांधी ने स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने का वादा किया।
चुनाव प्रचार की सरगर्मी से बहुत हद तक इस बात का पता चल जाता है कि हवा किस ओर बह रही है। इस बार हवा का अंदाजा लगाना तो मुश्किल रहा है लेकिन, भाजपा की आक्रामक चुनावी शैली ने पत्रकारों से लेकर बुद्धीजीवियों और जनता को भी चैंका दिया है। इस चुनाव वोटरों को कनेक्ट करने के लिए भाजपा ने वो काम किए जो अब से पहले किसी राजनीतिक दल ने नहीं किए थे। हथियार बना सोशल मीडिया और फोन. इसके अलावा बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को जोड़कर भाजपा ने गांव गांव में अपने सैनिक खड़े कर दिए।
उत्तराखंड में भाजपा को कवर करने वाले संवाददाता कैलाश जोशी अकेला बताते हैं कि पार्टी ने अलग-अलग एज-ग्रुप के वोटरों को जोड़ने के लिए इतने कार्यक्रम चलाए जितना किसी पार्टी ने नहीं किए. मसलन प्रबुद्ध सम्मेलन, युवाओं से कॉलेजों में संवाद, मेरा परिवार-भाजपा परिवार, रैलियां, स्कूटर रैली इसका हिस्सा रहे. इसके अतिरिक्त अलग-अलग क्षेत्रों की जनता से सोशल मीडिया पर भी विशेष संपर्क रखा गया। भाजपा की दिल्ली में बैठी टीम सब-कुछ नियंत्रित कर रही थी. हर बूथ पर भाजपा ने 3 बाइक सवारों और पांच स्मार्ट फोन वाले कार्यकर्ताओं की टीम बनाई थी. स्मार्ट फोन वाले कार्यकर्ताओं को सीधे दिल्ली मुख्यालय से निर्देश मिलते रहे और उनसे फीडबैक भी लिया जाता रहा। भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने बताया कि इसके पीछे नेतृत्व की बड़ी मेहनत लगी है। इसके अलावा नरेन्द्र मोदी के ऊपर लोगों का भरोसा भी भाजपा से जुड़ने में सहयोग करता है. उन्होंने लोगों को जोड़ने के लिए दो साल पहले शुरु किए गए मिस्ड कॉल की प्रक्रिया को भी बहुत सहयोगी माना. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि दिल्ली में कितने प्रोफेशनल्स इस काम में लगे हैं।
राज्य के अलग अलग इलाकों में होने वाली रैलियों को भी बहुत तरीके से प्लान किया गया था। किस नेता की कब रैली होने वाली है।यह मीडिया को कई दिन पहले ही बता दिया जाता था। गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक भाजपा ने सुनियोजित तरीके से चुनाव लड़ा है। दूसरी तरफ कांग्रेस खड़ी है. शायद सबसे पुरानी पार्टी होने के कारण ही कांग्रेस अपने आप को बदले परिवेश में नहीं ढाल पा रही है। ऊपर से नेताओं की कमी अलग से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाती दिखी। प्रदेश के दो अहम नेता हरीश रावत और प्रीतम सिंह खुद चुनाव मैदान में होने से दूसरी सीटों पर कोई सरगर्मी पैदा नहीं कर पाए। और तो और नेताओं के बीच की आपसी खाई भी इतने अहम चुनाव में पाटी नहीं जा सकी।
कुमाऊं में तैनात संवाददाताओं के अनुसार कुमाऊं में कांग्रेस के नेता तो भरपूर हैं लेकिन, हरीश रावत के नैनीताल से लड़ने के कारण मामला खराब सा होता गया। अंदरखाने खफा रहने वाली इन्दिरा हृदयेश ने हलद्वानी में कोई बड़ी सभा नहीं की। हालांकि हरीश रावत खेमे के अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ के कांग्रेसी नेताओं ने उनका साथ दिया लेकिन, इससे अल्मोड़ा में प्रदीप टम्टा की लड़ाई कमजोर पड़ती दिखी।