एक बार फिर जागा उत्तराखंड एनआरएचएम घोटाले का जिन्न। एनआरएचएम घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चैहान सरकार ही संदेह के घेरे में नहीं है बल्कि उत्तराखंड के तथाकथित रूप से ईमानदार मुख्यमंत्री भुवनचंद खण्डूरी के पहले कार्यकाल में उत्तराखंड में भी एनआरएचएम में खूब खेल हुआ है। जैसा कि विदित है तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक‘ इसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे है और उनके कार्यकाल में दवाओं के खरीद-वितरण की प्रक्रिया में हुई उच्च स्तरीय अनिमितताऐं तथा लाखों रूपये मूल्य एक्सपायरी दवाओं को रातोंरात रूड़की के ड्रगवेयर हाऊस से नालियों में फीकवायें जाने का प्रकरण ज्यादा पुराना नहीं है। इस पूरे मामले में नौकरशाही की संलिप्तता तथा दवा सप्लायर के रूप मेें उत्तराखंड में तैनात एक वरीष्ठ आईएस अफसर के निकटवर्ती परिजन को दिया गया दवा सप्लाई का ठेका भ्रष्टाचार के किस्से को कई तरह से बयान भी करता है। शायद यहीं वजह है कि इस पूरे मामले में पूर्व में विभागीय जाँच के माध्यम से लीपापोती का प्रयास किया गया और सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा जाँच में सहयोग न किये जाने व तथ्य न उपलब्ध कराये जाने के कारण तत्कालीन महानिदेशक स्वास्थ्य द्वारा इस मामले की जाँच करने से हाथ खड़े कर दिये गये। लिहाजा सूचना आयुक्त उत्तराखंड अनिल कुमार शर्मा की संस्तुति पर इस पूरे घोटाले की सीबीआई जाँच कराने के आदेश अप्रैल 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा दिये गये तथा गृह मंत्रालय के नोटिफिकेकशन के बाद सीबीआई ने सारा मामला दर्ज कर उत्तराखंड शाखा के सीबीआई प्रमुख को इसकी जाँच के लिऐ अधिकृत किया गया था। उपरोक्त घटनाक्रम को तीन वर्ष से भी अधिक का समय गुजर गया किन्तु सीबीआई इस संदर्भ में एक कदम भी आगे बढ़ी प्रतीत नही होती ओर अब उत्तराखंड में एक बार फिर भाजपा की ही सरकार है तो इन परिस्थितियों में यह तथ्य काबिलेगौर है कि सत्तापक्ष अपनी पार्टी के वरीष्ठ नेताओं व अपने ही दल की पूर्ववर्ती सरकार के खिलाफ होने वाली जाँच में किस हद तक सहयोग करेगा ? पिछले तीन वर्षो से केन्द्र की सत्ता पर भी भाजपा काबिज है और केन्द्र सरकार के नियन्त्रण में मानी जाने वाली सीबीआई का उत्तराखंड के एनआरएचएम घोटाले को लेकर दिख रहा रूझान यह साबित करता है कि तथाकथित रूप से ईमानदारी का ढ़ोल पीटने वाले भाजपा नेताओं को जन-धन में हुई इस खुली लूट से कोई हमदर्दी नही है और न ही वह इस किस्म के किसी घोटाले को उजागर करने के पक्षधर दिखते है। इसके ठीक-विपरीत भाजपा के नेता तथा कार्यकर्ता प्रदेश के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा कैंमरे के समक्ष कहे गये कुछ तथ्यों के आधार पर सीबीआई के समक्ष दर्ज मुकदमें में न सिर्फ हरीश रावत की गिरफ्तारी व उन्हें सजा दिलाना चाहते है बल्कि अरविंद केजरीवाल पर उनकी ही पार्टी से निष्कासित एक विधायक व मंत्री द्वारा बिना तथ्यों और सबूतों के लगाये जाने वाले भ्रष्टाचार के आरोंपो में तो वह केजरीवाल को फाँसी ही दे देना न्यायोचित समझते है लेकिन सवाल यह है कि इस तरह की दोहरी मानसिकता रखने वाले मोदी भक्त व तथाकथित रूप से भाजपा के समर्थक क्या वाकई इस देश को भ्रष्टाचार से मुक्त देखना चाहते है या फिर भाजपा से इतर राजनैतिक दलों द्वारा किये गये भ्रष्टाचार पर ही हो-हल्ला मचाना उनकी मजबूरी है। हमें याद है कि कांग्रेस शासनकाल के अन्तिम वर्षों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनलोकपाल के गठन को लेकर आमरण अनशन पर बैठने वाले अन्ना हजारें व उनके आन्दोलन का संघ से जुड़े लोगों ने भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से समर्थन किया था और उस वक्त यह माना गया था कि भारतीय राजनीति पर दशकों से काबिज कांग्रेस के सत्ता से हटते ही देश में ईमानदारी का राज हो जायेगा। यह ठीक है कि अन्ना के आन्दोलन से जुड़े कुछ लोगों ने इस अनशन के बाद राजनैतिक दल का गठन कर सक्रिय रूप से चुनाव में भागीदारी करने व भ्रष्टाचार के खिलाफ इस संघर्ष को सतत् रूप से जारी रखने का वादा किया लेकिन देश की जनता ने आम आदमी पार्टी समेत तमाम छोटे-बड़े दलों को नकारकर लोकसभा चुनावों में भाजपा को भारी बहुमत दिया और यह माना गया कि भाजपा के चुनावी नारों व वादों से उत्साहित जनता ने भाजपा की रामराज्य व भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना अंगीकार करने के लिये भाजपा के नेताओं को यह मौका प्रदान किया। चुनावी मौसम में भाजपा के नारों व प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी के भाषणों के आधार पर यह माना गया कि केन्द्र में बनने वाली भाजपा समर्पित सरकार अपना पदभार संभालते ही कांग्रेस हाईकमान समेत तमाम छोटे-बड़े नेताओं व कांग्रेस सरकार से जुड़े सभी पूर्व मन्त्रियों को जेल में डाल देगी और इनके द्वारा विदेश में जमा किये गये समस्त धन को वापस लाकर देशवासियों में बांट दिया जायेगा लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। सरकार ने बैंको के कर्जदार विजय माल्या जैसी हस्ती को विदेश जाने की अनुमति देकर न सिर्फ जनता को अंगूठा दिखाने की कोशिश की बल्कि नोटबंदी के नाम पर आम आदमी द्वारा घर परिवार में जोड़-जमाकर रखी गयी छोटी- छोटी पूंजी को बैंको में जमा करवा दिया गया और अब सरकार बड़ी ही चालाकी के साथ न्यूनतम बैंक बेलेन्स्, बैंक में पैसे जमा करने अथवा निकालने के लिऐ दिनों का निर्धारण आदि कर जनता के पैसे को लूटने की योजनाओं पर काम कर रही है लेकिन जनता को अब भी पूरा विश्वास है कि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने की पहल मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा ही की जायेगी। शायद यहीं वजह है कि भाजपा का चुनावी कारंवा लगातार बढ़ता जा रहा है और राज्य दर राज्य हर चुनाव में जीत दर्ज कराती जा रही भाजपा नगर निगम व जिला पंचायतों समेत हर छोटे-बड़े चुनाव में अपना परचम् लहरा रहीहै। हर चुनावी जीत के साथ बढ़ने वाले इस भाजपाई कुनबे में भ्रष्टाचार व कदाचार के आरोंप वाले तमाम छोटे-बड़े नेता तो है और इन नेताओं को नवगठित राज्य सरकारों अथवा केन्द्र सरकारों में महत्वपूर्ण दायित्वों व ओहदों से नवाजने में भाजपा के नीतिनिर्धारकों ने कोई कोताई भी नही की है लेकिन अपने ईमानदारी का ढ़ोल मोदी व उनके सहयोगी लगातार पीटे जा रहे है और इस सतकर्म के लिये पूँजीपति के आधीन काम करने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से को अपने कब्जे में लेकर छोटे पत्रकारों व समाचारपत्रों को समाप्त करने की मुहिम शुरू हो चुकी है। केन्द्र सरकार की इस मुहिम को पलीता लगाने के लिऐ आरटीआई एक्टविस्ट रमेश चन्द्र शर्मा जैसे लोग लगातार दिन रात एक कर सरकार की घेराबंदी का प्रयास तो कर रहे है लेकिन सूचना के अधिकार के हथियार को भी भोंथरा करने की कोशिश लगातार केन्द्र सरकार द्वारा जारी है। एक लंबी लड़ाई के बाद अगर रमेश चन्द्र शर्मा जैसे लोग किसी निष्कर्ष या फैसले तक पहुँचते भी है तो मामले की गंभीरता को देखते हुऐ इससे जुड़ी पूरी खबर आम आदमी तक पहुंचने ही नही दी जाती या फिर भक्तों का माया जंजाल इसमें कोई न कोई टंटा खड़ा कर देता है लेकिन इस सबके बावजूद कुछ लोग है जो आज भी पूरी तरह सजग होकर आम आदमी के अधिकारो के लिये संघर्ष कर रहे है। इसलिऐं रमेश चंद्र शर्मा जैसे लोगों की मेहनत व कर्मशीलता को नमन करने का मन करता है।