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Friday, May 03, 2024

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एग्जिट पोल की पारदर्शिता की जवाबदेही तय करने की जरूरत

भारत में सात चरण के लंबे मतदान के बाद अब चारों तरफ एग्जिट पोल का शोर है। टीवी चैनलों के लंबे-चैड़े दावों के बीच उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा है कि एग्जिट पोल को एग्जैक्ट पोल नहीं मानना चाहिए।
कांग्रेसी नेता शशि थरूर जिन्होंने देश में ट्विटर और सोशल मीडिया के राजनीतिक इस्तेमाल की शुरुआत की, उनके अनुसार भारत में अभी तक 56 बार एग्जिट पोल गलत साबित हो चुके हैं। 2004 के एग्जिट पोल की नाकामी को तो सभी स्वीकार करते हैं.। पुरानी कहानी भूल भी जाएँ तो इस बार के एग्जिट पोल में अनेक विरोधाभास हैं, जो पूरी प्रक्रिया में कई सवाल उठाते हैं। इस बार के आम चुनावों में न्यूज एक्स ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को 242 सीटें दी हैं तो आजतक ने 352 सीटें दे दीं। दोनों आकलनों में 110 सीटों का फर्क है जो 45 फीसदी से ज्यादा है।
दूसरी ओर, न्यूज-18 ने कांग्रेस के यूपीए गठबंधन को 82 सीटें दी हैं जबकि न्यूज एक्स ने 164 सीटें दी हैं। इन दोनों के आकलनों में दोगुने का फर्क है। एग्जिट पोल में विसंगतियों की कुछ और बानगी. पश्चिम बंगाल में भाजपा को 4 से लेकर 22 सीटों तक का आकलन, जिसमें 5 गुने का फर्क है। तमिलनाडु में एनडीए को 2 से 15 सीटें दी जा रही हैं जिसमें 7 गुने का फर्क है, एक वोट और छोटे मार्जिन के विश्लेषण के दौर में इतने बड़े फर्क को कैसे तर्कसंगत ठहराया जा सकता है।
चुनाव के पहले प्री-पोल और चुनावों के बाद पोस्ट पोल सर्वे किए जाते हैं, जिनके बारे में भारत में फिलहाल स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं हैं। देश में एग्जिट पोल की शुरुआत 1957 में सीएसडीएस ने की थी, जिसे एनडीटीवी के प्रणय रॉय और योगेंद्र यादव ने 90 के दशक में ठोस आधार दिया। एग्जिट पोल के प्रकाशन और प्रसारण के लिए सन 2007 में पंजाब में प्रणय रॉय के खिलाफ चुनावी कानून के तहत और उसके बाद एक समाचार पत्र के सीईओ के खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत चुनाव आयोग ने एफआईआर भी दर्ज कराई.इसके बावजूद एग्जिट पोल की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के बारे में अभी तक पर्याप्त नियम नहीं बने। चुनाव आयोग ने इस बारे में 1997 में नियम बनाने की पहल की. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में जनहित याचिका दायर होने के बाद सभी दलों के सहमति से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में 126-। को जोड़ा गया, जिसे फरवरी 2010 से लागू किया गया। इस कघनून के अनुसार वोटिंग खत्म होने के पहले एग्जिट पोल के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक लगा दी गई और उल्लंघन पर जेल और जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
चुनाव आयोग ने ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध के लिए कई वर्ष पूर्व प्रस्ताव भेजा है, जिसे केंद्र सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है। अंतिम परिणाम के साथ एग्जिट पोल के आकलन का भी प्रसारण हो ताकि जनता को पता चल सके कि एग्जिट पोल कितने सही रहे और इस तरह एग्जिट पोल करने वाले और उन्हें दिखाने वाले चैनल को जवाबदेह बनाया जा सकेगा।
23 मई को अंतिम नतीजे आने तक आचार संहिता के माध्यम से चुनाव आयोग पूरी व्यवस्था का नियमन करता है। एग्जिट पोल जारी करने वाले सभी टीवी चैनलों को चुनाव आयोग यह निर्देश क्यों नहीं दे सकता कि हर सीट में एग्जिट पोल के आकलन को अंतिम नतीजों के साथ प्रसारित किया जाए। यह जनता का लोकतांत्रिक अधिकार है कि उसे जो सूचना दी गई है, उसकी सत्यता की जांच हो सके।
भारत में लगभग 90 करोड़ वोटरों में लगभग 68.8 फीसदी यानी 62 करोड़ लोगों ने वोट डाले हैं। पिछले आम चुनावों में 36000 लोगों के सैंपल डाटा की तुलना में इस बार एग्जिट पोल कर रही अनेक कंपनियों ने 20 गुना यानी लगभग 8 लाख लोगों के डाटा विश्लेषण का दावा किया है। इसका मतलब यह हुआ कि एग्जिट पोल करने वाली कंपनियों ने लगभग 0.1 फीसदी वोटरों के ही जवाब इकट्ठा किए हैं।
इस छोटे सैम्पल साइज के बाद एग्जिट पोल के आकलन में कई गुने का फर्क समझ से परे है। एग्जिट पोल में वोटों की संख्या का आकलन तो हो सकता है लेकिन उन्हें सीटों में बदलने के लिए सांख्यिकी ट्रेनिंग के साथ अन्य प्रकार की विशेषज्ञता और विश्लेषण की जरूरत है जिस बारे में एग्जिट पोल करने वाली कंपनियां पारदर्शिता नहीं बरतती हैं।
स्टेशन पर कुली को और सड़क पर ऑटो वालों को सरकारी लाइसेंस चाहिए तो फिर चुनाव आयोग एग्जिट पोल करने वाली कंपनियों का भी रजिस्ट्रेशन और नियमन क्यों नहीं करता।
म्युचुअल फंड की तर्ज पर एग्जिट पोल के सैम्पल साइज के खुलासे के लिए भी चुनाव आयोग का नियमन होना ही चाहिए। इसके अलावा एग्जिट पोल करने वाली कंपनी के स्वामित्व संगठन का ट्रैक रिकॉर्ड, सर्वे की तकनीक, स्पॉन्सर्स का विवरण, वोटरों का सामाजिक प्रोफाइल, प्रश्नों का स्वरुप और प्रकार, सैम्पल वोट शेयर को सीटों में बदलने की प्रक्रिया के डिस्क्लोजर से एग्जिट पोल की व्यवस्था स्वस्थ और पारदर्शी होगी।

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