यह एक बड़ा सवाल है कि क्या तीरथ सिह रावत को राष्ट्रीय सचिव बनाने मात्र से भाजपा के वरीष्ठ नेता व मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे सतपाल महाराज का चुनावी संकट टल जायेगा और वह भाजपा के तमाम जमीनी कार्यकर्ताओं को एकजुट कर काॅग्रेस व अन्य विपक्षी प्रत्याशियों को मात देने में कामयाब होंगे। पौड़ी जिले की राजनीति इतनी आसान नही है तथा गढ़वाल क्षेत्र के दो प्रमुख नेता व पूर्व मुख्यमन्त्रियों की कर्मभूमि होने के अलावा यह क्षेत्र हरक सिह रावत समेत अनेक दिग्गज नेताओ का राजनैतिक गढ़ रहा है लेकिन आश्चर्यजनक है कि सतपाल महाराज के पक्ष में इनमें से कोई भी दिग्गज या समीकरण काम नही कर रहा है और भाजपा संगठन के नीति निर्माताओं के साथ मजबूत सम्बन्ध होने के बावजूद भी सतपाल महाराज अपनी विधानसभा तक ही सीमित बताये जा रहे है। हाॅलाकि पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी अपनी पुत्री की चुनावी कमान सम्भालने के बहाने पौड़ी जिले की दूसरी विधानसभा सीट यमकेश्वर में मौजूद है और ‘खंडूरी है जरूरी’ नारे के साथ एक पूरा चुनाव लड़ चुकी भाजपा इस तथ्य से भी अच्छी तरह परिचित है कि एक स्वच्छ छवि के नेता के रूप में खंडूरी का सिर्फ यमकेश्वर या चैबट्टाखाल क्षेत्र में ही नही बल्कि पूरे पौड़ी जिले व गढ़वाल क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है लेकिन खंडूरी को उनकी उम्र का हवाला देकर सक्रिय राजनीति की मुख्यधारा से हटाने की रणनीति पर काम कर ही भाजपा उन्हें इस पूरे क्षेत्र के चुनाव प्रचार की कमान देने के हक में नही है या फिर खुद खंडूरी ही अपनी बीमारी का बहाना लेकर अपनी नाराजी जाहिर कर रहे है। ठीक इसी तरह भाजपा के दूसरे दमदार नेता व पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी पौड़ी या गढ़वाल के किसी भी विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में विशेष रूचि लेते नही दिख रहे और भाजपा में अपना एक मजबूत गुट रखने वाले हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के इस सांसद ने अभी तक राजधानी देहरादून के अन्र्तगत् आने वाले अपने संसदीय क्षेत्र में भी कोई जनसभा या रोड शो नही किया है। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और काॅग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुऐ पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा चुनाव प्रचार को लेकर कुछ सक्रिय जरूर नजर आ रहे है लेकिन सतपाल महाराज के चुनाव क्षेत्र में अभी तक इनका भी कोई उपयोग नही किया गया है और ऐसा मालुम होता है कि भाजपा के रणनीतिकार किसी बड़ी बगावत की डर से या फिर किसी खास रणनीति के तहत इन तमाम दिग्गज नेताओ का खुलकर प्रचार के लिऐ इस्तेमाल नही कर रहे है जबकि इसके ठीक विपरीत काॅग्रेस के नेता व वर्तमान मुख्यमंत्री प्रदेश की लगभग हर विधानसभा तक पहुॅचने के लक्ष्य के साथ न सिर्फ ताबड़तोड़ अन्दाज में नुक्कड़ सभाओ को अंजाम दे रहे है बल्कि उनके रोड शो के दौरान उमड़ने वाला कार्यकर्ताओ का रेला कमजोर प्रत्याशी की हौसलाफजाई में कामयाब दिख रहा है। चुनाव प्रचार के अन्तिम दौर में मोदी की चुनावी सभाओं से माहौल बदलने की उम्मीद कर रहे भाजपा के नेता यह मानकर चल रहे है कि दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हरीश रावत की हरिद्वार व उधमसिंह नगर में की गयी घेराबन्दी भाजपा को चुनावी बढ़त दिलाने में कामयाब होगी लेकिन हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र में मुख्यमंत्री की बेटी अनुपमा रावत ने जिस तरह से अपनी छावनी बना रखी है उसे देखकर तो यह नही लगता कि हरीश रावत को चुनावी जीत के लिऐ इस क्षेत्र में किसी भी तरह के विशेष प्रयासो की जरूरत है। ठीक इसी तरह किच्छा विधानसभा सीट पर हरीश रावत ने अपने पुत्रो के अलावा प्रयाग भट्ट जैसे निकटस्थ सहयोगी को चुनाव संचालन का दायित्व सौंप रखा है तथा हरीश रावत द्वारा इस क्षेत्र में नियुक्त किये गये अपने कुछ खासमखास लोगो के अलावा हरीश रावत को शक्ल दिखाकर अपने राजनैतिक नम्बर बढ़ाने के लिऐ इस क्षेत्र में लगभग रोजाना ही हो रही कुमाॅऊ के विभिन्न क्षेत्रो व हरिद्वार के काॅग्रेसियों की आमद किच्छा विधानसभा क्षेत्र के आसपास के अन्य क्षेत्रो में भी भाजपा के समीकरण बिगाड़ रही है। गौरेतलब है कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद पहाड़ो में तेजी से हुऐ पलायन के चलते उधमसिंह नगर के तराई वाले हिस्से में पहाड़ी बिरादरी की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है और पूर्व में हुऐ लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा नेता भगत सिह कोश्यारी भी इसी आबादी के चलते इस क्षेत्र से संासद निर्वाचित होने में कामयाब हुऐ है। इस हालत में हरीश रावत के क्षेत्र में हाजिरी लगा अपने नम्बर बढ़ाने की कोशिश कर रहे पहाड़ के नेता जब किच्छा पहुॅच रहे है तो लगभग रोजाना के हिसाब से आसपास के क्षेत्रो में लग रहेे हरीश रावत के एक-आध कार्यक्रम में वह अपनी हाजिरी लगाना तथा रात्रि विश्राम के लिऐ इन क्षेत्रो में रह रहे अपने निकटवर्ती रिश्तेदारों के यहाॅ जाना मुफीद मान रहे है जिसके चलते न सिर्फ किच्छा बल्कि सितारगंज, गदरपुर, काशीपुर, रूद्रपुर, बाजपुर, रामनगर, लालकुॅआ आदि क्षेत्रो में काॅग्रेस को स्वाभाविक मजबूती मिलती प्रतीत हो रही है। हो सकता है कि भाजपा की चुनाव कमान सम्भाल रही अज्ञात दिग्गजों की टोली के पस अमोघ अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने के लिऐ कोई ऐसा दाॅव बचा हो जिसे इस निर्णायक लड़ाई के अन्तिम दौर में इस्तेमाल करके पासा पलट देने की उम्मीद ने उसे निश्चिन्त कर रखा हो लेकिन हाल-फिलहाल हालात यहीं इशारा कर रहे है कि उत्तराखण्ड चुनावों में हरीश रावत के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खड़ा करने की भाजपाई रणनीति पूरी तरह असफल साबित हुई है और भाजपा के स्थानीय नेताओ व तमाम जाने-पहचाने चेहरो को दरकिनार कर सतपाल महाराज को आगे कर चुनाव मैदान में उतरने की भाजपा हाईकमान की मंशा पर भाजपा के दिग्गज ही पानी फेर रहे है।