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Friday, May 03, 2024

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साईकिल पर सरकार

सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के बहाने अपना राजनैतिक कद बड़ा करने में जुटी राज्य की एकमात्र महिला मंत्री रेखा आर्या।
उत्तराखंड की जनता के लिऐ आश्चर्य एवं कौतुहल का विषय बना राज्य की एक मात्र महिला मंत्री का साईकिल प्रेम इन दिनों खूब चर्चाओं मे है और यह माना जा रहा है कि कुछ अलग हटकर करने की धुन में प्रदेश की माननीया मंत्री द्वारा अंजाम दी जाने वाले साईकिल रैली सत्ता के गलियारों में काफी लम्बे समय तक चर्चा का विषय बनी रहेगी। हांलाकि अभी हाल-फिलहाल जनता यह समझ पाने में असमर्थ है कि एक पहाड़ी राज्य के मैदानी इलाके में पचपन-साठ कि.मी तक साईकिल चला पांच सौ युवाओं, महिलाओं व स्वंय सेवियों की टोली किस प्रकार महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करेगी लेकिन इस साईकिल रैली को लेकर जनता की उत्सुकता यह है कि इसकी अगुवाई स्वंय माननीया मंत्री ने करनी है और वह इसके लिऐ नियमित रूप से प्रयास भी कर रही है। यह ठीक है कि मंत्री जी की इस योजना से हक्का-बक्का प्रशासन दबी जुबान से इस साईकिल रैली को व्यवहारिक नही बता रहा है और एक व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग में सड़क यातायात को पांच-छह घंटे के लिऐ पूरी तरह बाधित करने को बड़ा मुश्किल कदम बताया जा रहा है लेकिन पुलिस प्रशासन ने यह ध्यान रखना चाहिऐं कि इस तरह की सफल कोशिशें कावड़ यात्रा अथवा अन्य आयोजनों के दौरान करते रहने की उत्तराखंड पुलिस महकमें की आदत है और अगर इस साईकिल रैली में किसी भी तरह का व्यवधान आया अथवा दुघर्टना घटी तो उसकी पूर्ण जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन व पुलिस महकमें की ही होगी। लिहाजा यह तय है कि अगले कुछ दिनों राजधानी देहरादून व उसके आस-पास वाले क्षेेत्र में सड़क यातायात पूर्णरूप से या फिर अंशकालिक रूप से बाधित दिख सकता है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के देहरादून आगमन के अलावा अन्य तमाम छोटे-बड़े कार्यक्रमों व इस बहुचर्चित रैली को मद्देनजर रखते हुऐ यहाँ की स्थानीय जनता व आंगतुकों ने कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं के सरकारी नारे को आगे बढ़ाने तथा प्रदेश की महिलाओं को सशक्तिकरण का संदेश देने के उद्देश्यों से निकाली जाने वाली इस साईकिल रैली के और क्या-क्या निहितार्थ है यह तो पता नही लेकिन पांच सौ के लगभग साईकिलों व उनके चालकों की व्यवस्था करना तथा फिर इन्हें एक सुरक्षित काफिले के रूप हरिद्वार तक ले जाने के लिऐ तमाम छोटी-बड़ी सड़कों की घेराबंदी करना एक बड़ा काम है और उसके बाद इन तमाम साईकिल सवारों की देहरादून वापसी के लिऐ बसों व इनकी साईकिलों के लिऐ ट्रकों की व्यवस्था करना एक मुश्किल व खर्चीला काम है किन्तु महिला हठ के आगे प्रशासन नतमस्तक है और सारी तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही है। क्या यह अच्छा नही होता कि सरकार इस तरह की वाहियात योजनाओं व प्रचार कार्यक्रमों को आगे लाने की जगह निर्बल वर्ग की घरेलू महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाने का प्रयास करती या फिर सरकारी फाइलों की धूल झाड़कर यह देखने की कोशिश की जाती कि महिला उत्पीड़न व महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध के लगातार बढ़ रहे आंकड़े किस दिशा की ओर इशारा कर रहे है और किस प्रावधानों के जरिये हम राज्य अथवा राष्ट्र के हित में इन आंकड़ो में कमी लाने का प्रयास कर सकते है लेकिन सिर्फ प्रचार तंत्र के जरिये चल रही भाजपा की राष्ट्रीय व अन्य राज्यों की सरकार की तरह उत्तराखंड की नवगठित त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली पूर्ण बहुमत सरकार को भी व्यापक जनहित व सरकारी धन के ठीक तरह से इस्तेमाल को लेकर कतई चिन्ता नही है और न ही सरकार के मंत्रियों के बीच कोई तालमेल नजर आ रहा है। उत्तराखंड में सरकार की हालत को कुछ इस तरह बँया किया जा सकता है कि मानो राज्य सरकार के आधीन माना जाने वाले तमाम मंत्रीमण्डल के सदस्य किसी एक व्यवस्था का अंग होने के स्थान पर अलग-अलग सूबो के सूबेदार हो और उनकी प्राथमिक जवाबदेही या जिम्मेदारी राज्य की जनता या सरकार के प्रति न होकर उस हाईकमान के प्रति हो जिसने उसे यह जिम्मेदारी सौंपी है। शायद यहीं वजह है कि राज्य सरकार के तमाम मंत्री अपना फर्ज अदा करने के स्थान पर करिश्माई अंदाज में ऐसा कुछ करने की जुगाड़ भिड़ा रहे है कि हाईकमान की नजर उनपर पड़े और उनकी आगे की राह आसान हो लेकिन जोड़-जुगाड़ के इस चक्कर में माईनस प्लस माईनस का सब गुड़गोबर होता जा रहा है और इसका खामियाजा राज्य की जनता भुगतने वाली है। राज्य में सरकारी आयोजनों, कार्यक्रमों व मेला की धूम मची हुई है लेकिन जनता उदास है क्योंकि उसे अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिऐ आय के साधन नजर ही नही आ रहे है जबकि सरकारी तंत्र पूर्व से चल रही तमाम योजनाओं में कटौती कर अपने कंधे थपथपाने के प्रयास कर रहा है। महिला सशक्तिकरण मंत्रालय का हाल भी इससे कुछ जुदा नही है और राज्य में चल रही तमाम पुरानी योजनाओ का नाम बदलने के साथ ही साथ इनके जरिये दी जाने वाली प्रोत्सहान राशि में भारी कमी कर दी गयी है लेकिन विभागीय मंत्री अपना दम-खम दिखाने के लिऐ साईकिल रैली के जरिये सरकारी धन की बर्बादी को कोई मौका नही चूकना चाहती। स्थानीय स्तर पर चर्चा है कि इस साईकिल रैली के बहाने उत्तराखंड की एक मात्र महिला मंत्री रेखा आर्या पार्टी हाईकमान व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना दम-खम दिखाकर आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी दावेदारी सुनिश्चित करने की जुगत भिड़ा रही है और अल्मोड़ा -पिथौरागढ़ क्षेत्र के सांसद व वर्तमान में केन्द्र सरकार के राज्य मंत्री अजय टम्टा के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा देखते हुऐ इन चर्चाओं में दम भी नजर आता है लेकिन सवाल यह है कि नेताओं की इस अपनी सल्तनत व प्रभुसत्ता की लड़ाई में आम आदमी के हक व जनकल्याण के लिऐ रखे धन को फुकना का क्या औचित्य। खबर यह भी है कि इस साईकिल रैली के सफल आयोजन के बाद माननीया मंत्री जी ने इसी तरह के तमाम मिलते-जुलते आयोजनों को अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ व चम्पावत क्षेत्रों में अंजाम देने की पूरी रूपरेखा तैयार कर रखी है और यह जगजाहिर है कि अगर पर्वतीय क्षेत्रों मेें इस प्रकार की किसी जागरूकता रैली या अन्य कार्यक्रम को अंजाम दिया जाता है तो सरकारी मशीनरी अपने सबसे आसान शिकार के रूप में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली बच्चियों को ही अपना प्रचार माध्यम बनायेगी लेकिन ठीक परीक्षा सत्र के नजदीक आते-आते और पढ़ाई के इस चरम् मौसम में बच्चों को स्कूल व किताबों से विमुख कर उन्हें सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार का काम सौंप हम महिलाओं या प्रदेश को किस हद तक सशक्त बना पायेंगे। यह एक विचारणीय प्रश्न है किन्तु प्रश्न जब राज्य के किसी मंत्री की मर्जी से जुड़ा हो तो इस तरह के सभी प्रश्न गौण हो जाते है ओर विकास सम्बन्धी नारो व डबल इंजन के फेर में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के पक्ष में मतदान करने वाला मतदाता स्वयं को ठगा महसूस करता है।

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