देहरादून। अहिंसावादी मुद्दे पर गांधी जी की विचारधारा को हमेशा से गलत ढंग से पेश किया गया। अक्सर अहिंसा पर गांधी के
कथन को झुठलाया गया है। यह कहना था राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी का। राजमोहन गांधी रविवार को प्रीतम रोड स्थित ठौर द दून हाट परिसर में आयोजित गांधी पर आधारित एक कार्यक्रम में अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे। वह ‘आज के समय में गांधी जी की प्रासंगिकता विषय पर बोल रहे थे। कार्यक्रम दून लाईब्रेरी व रिसर्च सेंटर सर्वोदय मंडल दून की ओर से आयोजित किया गया। प्रो. राजमोहन ने कहा कि गांधी जी ने यह कभी नहीं कहा कि अगर कोई निर्बल, कमजोर, बेबस या फिर महिलाओं पर अत्याचार कर रहा हो या फिर उन्हें बेवजह सता रहा हो तो उसका जवाब चुप रह कर अहिंसा से दो। गांधी ने हमेशा ऐसी घटनाओं का विरोध किया। साथ ही कहा कि ऐसे लोगों की सहायता के लिए यदि लाठी भी उठानी पड़े तो उठाओ। एक अन्य संबोधन में प्रो. राजमोहन गांधी ने कहा कि भारत की आजादी के आंदोलन में गांधी का प्रमुख शस्त्र अहिंसा था। लेकिन इसे लेकर गांधी का अलग मत था। वह अक्सर कहते थे कि भारत की आधी से अधिक आबादी निर्बल, कमजोर और गरीब है। यदि शारीरिक और आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों के हाथ में हथियार दे दिए जाएं तो यह उन्हीं के लिए परेशानी देने वाला होगा। राजमोहन गांधी ने कहा कि इसीलिए गांधी ने अहिंसा को अपना प्रमुख रास्ता बनाया। इससे पूर्व उन्होंने गांधी के वर्ष 1915 में अफ्रीका से भारत लौटने, 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग कांड से पूर्व 10 अप्रैल को अहमदाबाद और अमृतसर में हुए दंगों का भी उल्लेख किया। कार्यक्रम के दौरान कई लोगों ने प्रो. राजमोहन गांधी से महात्मा गांधी के आदर्श, आंदोलन और प्रासंगिकता से जुड़े कई सवाल भी पूछे जिनका उन्होंने मौके पर जवाब दिया। इस अवसर पर उषा गांधी, पीएसआई के पूर्व निदेशक डा. रवि चौपड़ा, दून पुस्कालय के निदेशक डा. वीके जोशी, बीजू नेगी, बिनीता शाह, अमन सिंधवानी, रश्मि पैनुली, विजय शंकर शुक्ल, उग्येन जिग्मे, धीरेंद्रनाथ तिवाड़ी आदि मौजूद रहे।