देहरादून। सूबे में मछलियों के खूबसूरत संसार पर अनिजोजित खनन से ग्रहण लग गया है। राज्य की नदियों में लगातार बढ़ते खनन क्षेत्र की वजह से मछलियों का संसार खतरे में हैं। मछलियों पर रिसर्च कर रहे देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि खनन से उत्तराखंड की 258 मछलियों के संसार पर खतरा मंडरा रहा है। परेशान करने वाली बात तो यह है कि खनन से प्रभावित मछलियां अंडे तक नहीं दे पा रही हैं।
उत्तराखंड की कल-कल करती नदियों में एक नया संकट मंडरा रहा है और वह खतरा है इन नदियों को हमेशा जीवंत रखने वाली इन मछलियों के संसार पर जो अवैध खनन के कारण उजड़ने की ओर है। प्रदेश की छोटी-बड़ी नदियों में कुल मिलाकर 258 तरह की मछलियां पाई जाती हैं। हिमालयी नदियों में मछलियों पर रिसर्च के लिए बने भारत सरकार के संस्थान डायरक्टरेट ऑफ कोल्ड वाटर फिशरीज रिसर्च के वैज्ञानिकों ने इन मछलियों पर खतरा जताया है। डीसीएफआर के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर आरएस पतियाल बताते हैं कि भूस्खलन की वजह से मछलियों के प्राकृतिक निवास तो कम हुए ही हैं। उनकी फूड चेन भी गड़बड़ा गई है। इसकी वजह से इन मछलियों के अस्तित्व पर ही संकट आ गया है।
संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर देबाजीत सर्मा भी नदियों में लगातार हो रहे खनन के कारण पैदा हुए इस खतरे की तस्दीक करते हैं। वह कहते हैं कि पहले से ही खतरे के साए में आ चुकी हिमालयी नदियों की शान गोल्डन महाशीर के लिए यह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि अकेला खनन ही मचलती मछलियों के संसार को खतरे में डालने का जिम्मेदार नहीं बल्कि इसके साथ ही प्रदूषण, मछलियों का अवैध तरीके से शिकार और विस्फोटकों का इस्तेमाल भी इसकी बड़ी वजह हो सकता है। इस सबसे अगर जल्द नहीं संभले तो वह दिन दूर नहीं जब मछलियां केवल एक्वेरियम में ही नजर आएंगी।