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Saturday, May 04, 2024

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बड़ा सवालः राहुल गांधी की न्याय स्कीम कामयाब होगी या नहीं

देहरादून। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीती 25 मार्च को ऐलान किया है कि अगर कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव जीतकर अपनी सरकार बनाती है तो सरकार भारत के पांच करोड़ सबसे गरीब परिवारों को सालाना 72,000 रुपये देगी।
उन्होंने कहा कि इस तक पहुंचने के लिए कांग्रेस पार्टी सरकार में आने पर देश की 20 फीसदी निर्धन परिवारों को 72 हजार रुपये सालाना की मदद करेगी। यानी छह हजार रुपये प्रति माह की मदद की जाएगी।
सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने कहा है कि ये एक चुनावी योजना है जिसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत नहीं है।
लेकिन कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि ये एक ऐसा प्रस्ताव है कि जिससे भारत में गरीबी खत्म की जा सकती है। वहीं, कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस योजना के क्रियान्वन को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में आर्थिक असमानता पर शोध करने वाली संस्था वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब के सह-निदेशक और वरिष्ठ अर्थशास्त्री लूकस चांसेल ने इस योजना को सराहते हुए इसे एक परिवर्तनकारी कदम बताया है।
भारत की एक समाचार एजेंसी के अनुसार लूकस चांसेल ने कहा है कि भारत में बीते तीन दशकों से असमानता तेजी से बढ़ रही है. ये एक स्वागत योग्य कदम है कि एक पार्टी ऐसी योजना लेकर आई है जिससे पंक्ति में आखिरी छोर पर खड़े लोगों के जीवनस्तर को ऊपर उठाया जा सके। न्यूनतम आय गारंटी स्कीम कोई जादू नहीं है लेकिन ये पूरी कहानी को बदल सकता है।
इसके बाद जब उनसे पूछा गया कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा तो उन्होंने कहा कि 72 हजार रुपये प्रतिवर्ष आय गारंटी के लिहाज से हम उसी आंकड़े पर पहुंचे हैं जो आंकड़ा कांग्रेस पार्टी ने दिया है। बल्कि ये थोड़ा कम है। इसकी कीमत भारत की जीडीपी का 1.3 फीसदी होगा। लेकिन अगर एक लाख रुपये न्यूनतम आय गारंटी की घोषणा की जाती तो वह भारतीय जीडीपी का 2.6 फीसदी होता। चांसेल ने राहुल गांधी के इस धनराशि को हासिल करने की प्रक्रिया पर भी अपनी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय लिहाज से भारत में कराधान कम है और मौजूदा इनकम टैक्स कंप्लाएंस बढ़ाकर और देश के सबसे अमीर लोगों पर टैक्स लगाकर इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। भारत की 0.1 फीसदी की आबादी (ढाई करोड़ से ज्यादा की संपत्ति रखने वाले) पर 2 फीसदी वार्षिक पूंजी कर लगाया जाए तो इससे जीडीपी का 1.1 फीसदी हिस्सा हासिल किया जा सकता है. और इस कराधान से भारत की 99.9 फीसदी आबादी पर कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा।

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