भारतीय संस्कृति, सहिष्णुता और मानवता पर आधारितः स्वामी चिदानन्द सरस्वती | Jokhim Samachar Network

Friday, April 26, 2024

Select your Top Menu from wp menus

भारतीय संस्कृति, सहिष्णुता और मानवता पर आधारितः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश । वेद को ज्ञान का परम स्रोत मानने वाले स्वामी विवेकानन्द के महानिर्वाण दिवस पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि विवेकानन्द जी ने वेदांत और योग से युक्त भारतीय दर्शन का पश्चिमी दुनिया को परिचय कराया तथा भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित एवं हर जाति का निर्धन मनुष्य है।’’ स्वामी विवेकानन्द जी के इस सूत्र को कोरोना महामारी के समय में आत्मसात करने की नितांत आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान समय में पीड़ित मानवता को अपनेपन, सेवा और सहायता की जरूरत है। भले ही हम आज स्वामी विवेकानन्द जी का महानिर्वाण दिवस मना रहे हों परन्तु स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों का कभी मरण नहीं होता। ऐसी दिव्य आत्मायें मृत्यु के बाद भी सदियों तक जीवित और अमर रहती हैं तथा उनके विचार और शिक्षाओं से हमेशा प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता रहता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति और दर्शन सहिष्णुता और मानवता पर आधारित है तथा मतभेद के बजाय सद्भाव एवं शांति का संदेश देती है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अनैतिकता बढ़ती जा रही है और नैतिक मूल्यों में कमी आ रही है ऐसे में युवा पीढ़ी को मानवता और नैतिकता युक्त सशक्त विचारों की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है “विचार व्यक्तित्त्व की जननी है, जो आप सोचते हैं बन जाते हैं” आज समाज को ’श्रेष्ठ विचारों-श्रेष्ठ संस्कारों’ से जोड़ना जरूरी है।
स्वामी जी ने कहा कि मानवता युक्त समाज के निर्माण के लिये युवा पीढ़ी को “वसुधैव कुटुंबकम” अर्थात पूरा विश्व एक परिवार है इस सूत्र के साथ पोषित करना नितांत आवश्यक है। उन्हें अर्थ और स्वार्थ के पीछे भागने के बजाय परमार्थ की ओर बढ़ने की शिक्षा देना जरूरी है। कोरोना महामारी ने अनेक लोगों से उनके अपनों को छीना है ऐसे में उनके जीवन को आगे बढ़ाने के लिये प्रेम और अपनेपन की जरूरत है। प्रेम जीवन को विस्तार देता है और स्वार्थवृति से जीवन संकुचित हो जाता है। मानवता और प्रकृति से प्रेम हमें जीवन देता है और स्वार्थ मृत्यु की ओर ले जाता है, इसलिये प्रेम के विस्तार के साथ जीवन जीना यही एक मात्र सिद्धांत है। आईये स्वामी विवेकानन्द के महानिर्वाण दिवस पर उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करें और जीवन में आगे बढ़ते रहें। स्वामी विवेकानन्द जी का सम्पूर्ण जीवन तथा उनके विचार हर युग के लिये प्रासंगिक है तथा हम सभी के लिए अनुकरणीय है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *