अराजकता की ओर | Jokhim Samachar Network

Friday, April 26, 2024

Select your Top Menu from wp menus

अराजकता की ओर

जनप्रतिनिधियों की बेरूखी से त्रस्त जनता अपनी समस्याओं को खुद उठाने की नीयत से आगे आने की कर रही है कोशिश।
सत्ता पक्ष के एक विधायक को स्थानीय जनता द्वारा उसके ही विधानसभा क्षेत्र से भगाये जाने की खबर ने एक बार फिर राजनैतिक चर्चाओ का बाज़ार गर्म कर दिया है और इस ताज़ा घटनाक्रम के बाद तथाकथित रूप से जनता के बीच से चुनी गयी एक पूर्ण बहुमत सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठने स्वाभाविक है। हाॅलाकि सत्तापक्ष इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को विपक्ष द्वारा कूटरचित राजनैतिक प्रोपेगण्डा बता रहा है और इस घटना पर चर्चा करने से बचते नज़र आ रहे उत्तराखण्ड के भाजपा नेताओं के तेवर यह इशारा कर रहे है कि वह राजनीति में किये जा रहे इस तरह के प्रयोगो से भयक्रान्त है लेकिन यह भी सच है कि स्थानीय जनता अपने नेताओ व जनप्रतिनिधियों द्वारा किये जाने वाले चुनावी वादे पूरे न होने के कारण त्रस्त है और अपने गुस्से का इजहार करने के लिऐ वह जुलूस, आम हड़ताल या फिर बन्द जैसे चितपरिचित तरीको का इस्तेमाल करने की जगह नये विकल्पो पर विचार कर रही है। यह माना कि भारी वर्षा या फिर आपदा जैसी स्थितियोें के कारण उपजे हालातो के आगे जनप्रतिनिधि भी असहाय नज़र आते है और बेलगाम नौकरशाही के काम करने के अपने एक अलग अन्दाज़ का खामियाज़ा जनता व नेताओ को कई तरह की फजीहते झेलकर चुकाना पड़ता है लेकिन इस प्रशासनिक नाकामी या चूक को हल्के में लेना या फिर जनाक्रोश को दरकिनार करते हुऐ नेताओ का अपनी मनमर्जी के हिसाब से फैसले लेना अन्ततोगत्वा लोकतान्त्रिक व्यव्स्थाओं पर भारी पड़ सकता है। हम यह देख व महसूस कर रहे है कि घर-घर मोदी जैसे नारो और राजनैतिक कुटिलता अथवा डबल इंजन के दावे के साथ सत्ता के शीर्ष को हासिल करने में कामयाब रही भाजपा को कई स्तरों पर असुविधा व राजनैतिक अपमान का सामना करने पर विवश होना पड़ रहा है तथा सदन से लेकर सड़क तक विपक्ष की गैर मौजूदगी के बावजूद सरकार राज्य के विकास को लेकर किये गये अपने दावो एंव वादो को पूरा करने में पूरी तरह असफल है जिस कारण चुनावो के वक्त एक राजनैतिक दल पर जनता द्वारा जताया गया भरोसा और अपने भविष्य के मार्ग को निष्कंटक करने के लिऐ विपक्ष को नेस्तनाबूद कर देने की सत्तापक्ष की रणनीति अब भाजपा के नेताओं पर ही भारी पड़ती प्रतीत हो रही है लेकिन सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र में इस किस्म की अराजकता को सही ठहराया जा सकता है और चुनावी मोर्चो पर अपना राजनैतिक वर्चस्व कायम रखने के लिऐ सत्ता पक्ष द्वारा शासन की मदद से विपक्ष का गला घोट देने वाले अन्दाज़ में आन्दोलनों को दबाये जाने या फिर मीडिया के एक हिस्से को अपने प्रभाव में लेकर सरकार विरोधी खबरो को जस का तस रोक दिये जाने की रणनीति सत्तापक्ष पर ही भारी नही पड़ रही है। हो सकता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह मानता हो कि सत्ता हासिल करने अथवा उसपर अपनी कब्जे़दारी बरकरार रखने के लिऐ राजनैतिक चरित्रो को इस तरह की अराजकता का सामना करना ही पड़ता है और सत्ता के शीर्ष पदो पर कब्जेदारी के बाद सुरक्षा व्यवस्थाओं को कड़ा कर इस किस्म के विरोध से आसानी के साथ निपटा जा सकता है लेकिन अगर सही मायने में देखा जाये तो देश के प्रधानमन्त्री की सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करना या फिर मुख्यमन्त्री के जनता दरबार में फरियादी की समस्या को सार्वजनिक होने से बचाने के लिऐ गोपनीय सुनवाई के तरीके व मीडिया पर रोक जैसे प्रावधान अक्सर व लम्बे समय तक कारगर नही रहते। लोकतन्त्र में विपक्ष स्वाभाविक प्रक्रिया का एक हिस्सा है और जनता की आवाज़ सरकार तक पहुॅचाने के लिऐ आन्दोलन व अन्य माध्यमों से प्रतिकार करने वाला विपक्ष अक्सर जनाक्रोश को एक दिशा देते हुऐ ज्वलन्त समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकृर्षित करने का काम करता है लेकिन काॅग्रेस मुक्त भारत का नारा देते-देते विपक्ष मुक्त सरकार, की हद तक जा पहुॅची भाजपा साम-दाम-दण्ड-भेद की नीतियों को उपयोग में लाते हुऐ विरोध के सुरो को किसी भी कीमत पर शान्त करने में लगी है। नतीजतन जनता का गुस्सा अनियमित रूप से फूटता दिख रहा है और अपनी शिकायतों के निस्तारण अथवा समस्याओं के समाधान को लेकर पहले संगठन के माध्यम से पहल करने वाले लोग अब खुद ही अपनी समस्याओं को सरकार के सामने रखने का प्रयास कर रहे है जिस कारण कुछ अवसरोें पर स्थितियाॅ अराजक होती नज़र आ रही है। हमने देखा कि कुछ ही समय पूर्व उत्तराखण्ड में भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित जनता दरबार में एक परेशान ट्रासपोर्ट व्यवसायी ने ज़हर खाकर अपनी इहलीला को समाप्त कर दिया तथा हाल ही के दिनो में एक परेशान व शासन तंत्र की कारगुजा़रियों के चलते हताश अध्यापिका ने सीधे मुख्यमन्त्री दरबार में न सिर्फ कोहराम मचाया बल्कि अपने संक्षिप्त उद्बोधन में उसने सरकार की कलई खोलकर सामने रख दी। ठीक इसी प्रकार सरकार के तेज़-तर्रार नेता व उच्च शिक्षा मन्त्री धन सिंह रावत का उनके ही विधानसभा क्षेत्र में हुआ विरोध या फिर एक सड़क दुघर्टना के दौरान मारे गये यात्रियों के परिजनो को सांत्वना देने गये मुख्यमन्त्री को भाग जाने की चेतावनी देते हुऐ पत्थरो से हमला करने की धमकी यह साबित करती है कि जनपक्ष में सरकार की कार्यशैली को लेकर आक्रोश है लेकिन यह आक्रोश राजनैतिक तौर-तरीके से बाहर न आना कुछ खतरनाक घटनाक्रमों का संकेत भी दे रहा है और यह तय है कि अगर सरकार इसी प्रकार विपक्ष के साथ तालमेल करके चलती रही या फिर मीडिया के एक बड़े हिस्से ने जनसमस्याओं व सरकार की नाकामियों को विस्तृत चर्चा का विषय नहीं बनाया तो यह आक्रोश इसी प्रकार गाहे-बगाहे दिखता रहेगा। यह माना कि संसाधनो की कमी से जूझ रही उत्तराखण्ड सरकार की अपनी मजबूरियाॅ है और खुले बाज़ार से कर्ज लेकर अपने कर्मचारियों को वेतन दे रही सरकारी व्यवस्था चाह कर भी अपने समर्थकों व मतदाताओं की उम्मीदों को पूरा नही कर सकती लेकिन यह सब सोचना सरकार का काम है और जनता द्वारा इन तमाम तरह की व्यवस्थाओं के लिऐ टैक्स वसूला जाता है। इसलिऐं जनता का आक्रोश स्वाभाविक है और इस आक्रोश के प्रदर्शन को लेकर लोकतात्रिंक व्यवस्थाओं में किये गये तमाम प्रावधानों पर चुप्पी देखकर ही जनता ने यह नया मार्ग तलाशा है। नेताओ की गलतफहमी है कि वह यह मानते है कि एक बार चुनाव जीतने के बाद वह हर तरह की चिन्ता से मुक्त है या फिर उन्हे चुनकर सत्ता के उच्च सदनों में भेजने वाली जनता एक नियत समय तक उनका कुछ नही बिगाड़ सकती लेकिन माहौल तेज़ी से बदले रहा है और जनता यह महसूस कर रही हैै कि चुनाव जीतने के बाद नेता उसे व अपने निर्वाचन क्षेत्र को पूरी तरह अनदेखा कर रहा है। लिहाज़ा सरकार व नौकरशाही का ध्यान अपनी ओर आकृर्षित करने के लिऐ कुछ कड़े कदम उठाये जाने आवश्यक भी है क्योंकि सिर्फ चुनावी मौको पर सत्ता का तख्त पलट कर देना इस तरह की समस्याओं का कोई समाधान नही है। यह ठीक है कि अराजकता ही हर समस्या का समाधान नही है और न ही जनप्रतिनिधियों का इस किस्म का अपमान किया जाना चाहिऐ लेकिन जब पानी सर के उपर से गुज़र रहा हो ओर सत्ता की बागडोर सम्भाल रहे नेता व नौकरशाह नीति निर्धारण व योजनाओ का प्रारूप बनाते वक्त आम आदमी की जरूरतो व परेशानियों पर तबज्जो देने को तैयार ही न हो तो फिर किया भी क्या जा सकता है? हम यह महसूस कर रहे है कि अपने गठन के बाद से ही शराब बिक्री व खनन पर पूरी तवज्जो दे रही टीएसआर सरकार व सरकार को जनाधार देने वाले सम्मानित विधायक यह मान रहे है कि जनता की जिम्मेदारी मतदान करने के उपरान्त पूरी हो चुकी है और सरकार व नेताओ को उनकी मर्जी के हिसाब से काम करने देना चाहिऐ लेकिन विचारधारा, मोदी लहर या फिर उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर मतदाताओं को बरगलाने में सफल रहे भाजपा के लोग यह भूल रहे है कि आन्दोलनों के धनी इस प्रदेश में जनसामान्य को बहुत ज्यादा लम्बे समय तक टरकाया या बहलाया नही जा सकता है और अगर सरकार ने यह परिपाटी चालू रखने की कोशिश की तो आने वाले कल में हालात और भी ज्यादा खराब हो सकते है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *