जंग लगी बन्दूको के सहारे चुनावी मोर्चे पर जाने की तैयारी में है भाजपाई नेतृत्व
उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पं0 नारायण दत्त तिवारी का अपने पुत्र के साथ भाजपा में शामिल होना राजनैतिक उलटफेर के हिसाब से एक बड़ी खबर माना जा सकता है तथा यशपाल आर्या के बाद तिवारी का भी भाजपा की ओर बढ़ा यह कदम प्रथम दृष्टया यह अहसास कराता है कि चुनावी समीकरणों के हिसाब से कुॅमाऊ में मजबूत माने जा रहे हरीश रावत के नेतृत्व वाली काॅग्रेस से ब्राह्मण व दलित मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग इन दोनो नेताओ के साथ ही छिटक जाने की वजह से अब भाजपा का चुनावी गणित मजबूत हो गया है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि एक क्षत्रिय नेता के रूप में राजनीति शुरू करने वाले हरीश रावत का नारायण दत्त तिवारी व उनके खेंमे के माने जाने वाले सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, यशपाल आर्या व इन्द्रिरा हृदयेश आदि से छत्तीस का आॅकड़ा रहा है और अल्मोड़ा-पिथोरागढ़ संसदीय क्षेत्र से अपनी राजनैतिक पारी शुरू करने वाले हरीश रावत काफी मेहनत के बाद भी नैनीताल संसदीय क्षेत्र में अपना जनाधार बनाने में असफल रहे है लेकिन यह तमाम आॅकड़े वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड राज्य के गठन व हरीश रावत की उत्तराखण्ड प्रदेश काॅग्रेस के रूप में मनोनयन तक ही विश्वसनीय माने जा सकते है जबकि काॅग्रेस की संगठनात्मक कमान सम्भालने के बाद हरीश रावत की कार्यशैली व राजनैतिक सोच में इतने परिवर्तन आये है कि सहजता से उनपर विश्वास नही किया जा सकता और एक मुख्यमंत्री के रूप में अपने इस तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने जन सामान्य के बीच एक सुलझे हुए बुजुर्ग व सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करने वाले सरल राजनीतिज्ञ की जो पहचान बनाई है, वह अपने आप में काबिले तारीफ है। यह अकारण नही है कि उनकी धुर विरोधी मानी जाने वाली व काॅग्रेसी खेमे से मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार इन्दिरा हृदयेश कई कारणो के चलते हरीश रावत से नाराज होने के बावजूद सरकार पर आसन्न संकट के दौरान न सिर्फ मोर्चा बाॅधकर रावत का बचाव करती रही है बल्कि काॅग्रेसी खेमे के बुद्धिजीवी व्यक्तित्व माने जाने वाले नवप्रभात भी अपनी तमाम कानूनी जानकारियों के साथ हरीश रावत पर होने वाले हर प्रहार को नेस्तनाबूद करने के लिए सजग दिखाई देते है। अगर यह तमाम दल-बदल के घटनाक्रम वर्तमान से दस वर्ष पूर्व अंजाम दिये गये होते तो शायद भाजपा को इस सब जद्दोजहद का राजनैतिक फायदा मिल सकता था लेकिन पिछले दस वर्षो के राजनैतिक सन्यास के बाद प0 नारायण दत्त तिवारी की हालात उस सीलन भरे पटाके की तरह हो गयी है जिसके फटने से किसी भी तरह के धमाके की उम्मीद करना भी बेमानी है। इन हालातों में नारायण दत्त तिवारी का अपने परिजनो समेत भाजपा की सदस्यता लेना या फिर यशपाल आर्या व उनके पुत्र को भाजपाई खेमें में शामिल कर चुनाव लड़ाया जाना, कुॅमाऊ की राजनीति को बहुत ज्यादा प्रभावित करेगा, ऐसा प्रतीत नही होता।