लाख असुविधाओं के बावजूद कांवड़ यात्रियों के प्रति एक विशेष प्रकार की श्रृद्धा एवं समर्पण प्रदर्शित करती है स्थानीय जनता सावन के इस पवित्र माह में हरिद्वार के अलावा ऋषिकेश से लेकर गंगोत्री तक विभिन्न स्थानों से कावड़ के माध्यम से गंगाजल लाने तथा इस गंगाजल से अपनी आस्था के अनुसार मन्दिरों का जलाभिषेक करने का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप विशेष मार्गो पर एक निश्चित समयान्तराल के लिऐ सड़क यातायात समेत अनेक दैनिक जीवन की गतिविधियाँ बिल्कुल रूक सी गयी प्रतीत होती है लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद स्थानीय स्तर पर जनता न सिर्फ कांवड़ियों का सम्मान करती है बल्कि इन तमाम शिव भक्तों को शिव का स्वरूप जान इनके मार्ग में रूकने व भोजन आदि की व्यवस्था अधिकांशतः श्रद्धालुओं द्वारा ही की जाती है। यहाँ पर यह कहने में भी कोई हर्ज नही है कि कांवड़ियों के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले तथा सेवा भाव से तमाम तरह की व्यवस्थाओं को संभालने वाले यह स्वंयसेवक किसी एक धर्म, जाति या फिर व्यवसाय से नहीं होते बल्कि स्थानीय परिस्थितियों व आपसी भाई-चारे के आधार पर कावड़ियों को सेवा देने वाले स्वंयसेवकों में भी सभी जातियों, धर्माे व विभिन्न व्यवसाय से जुड़े लोगों का समावेश होता है। हम देख रहे है कि सावन के इस उमस व बरसात भरे मौसम में कंधे पर छोटी-बड़ी कांवड़ उठाये लगभग दौड़ने वाले अंदाज में चले जा रहे कावड़ियों का अपना एक उद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिऐ शेष दुनिया के प्रति लापरवाह दिखते कावड़ियें एक अजब सी एकता व अनुशासन का परिचय देते है जिसके कारण भोले के इन भक्तों को नियन्त्रित रखने व इनकी सुरक्षा व्यवस्थाओं को लेकर स्थानीय स्तर पर पुलिस-प्रशासन ने भी ज्यादा मशक्कत का सामना नही करना पड़ता और हर साल करोड़ो की संख्या में कावंड़ यात्री न सिर्फ हरिद्वार, ऋषिकेश से बल्कि गंगोत्री समेत अन्य तमाम गंगा के तटवर्ती तीर्थो से गंगाजल लेकर अपने-अपने नगरों व कस्बाई इलाकों की ओर प्रस्थान करते है लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों में एकाएक ही बड़े आंतकवादी वारदातों के मामले ने स्थानीय स्तर पर पुलिस प्रशासन व खुफिया ऐजेन्सियों को मजबूर किया है कि वह कावड़ यात्रियों की सुरक्षा व अन्य विषयों का ध्यान रखते हुऐ कुछ इस तरह के इंतजामात करें कि कावड़ियों के भेष में अराजक तत्व किसी हिंसक वारदात या फिर अराजकता को जन्म न दें। कांवड़ियो को चाहिएं कि वह नियम, कानूनों का पालन करें तथा सरकार द्वारा स्थानीय स्तर पर की गयी व्यवस्थाओं के अनुसार यात्रा कर सरकारी कर्मियों का सहयोग करें लेकिन इधर देखने में आया है कि कुछ लोग इस तरह की व्यवस्थाओं को प्रतिबन्धों का नाम देकर मामले को संवेदनशील बनाने का काम कर रहे है और कुछ स्तरों पर यह कोशिश भी की जा रही है कि इस कांवड़ यात्रा के बहाने एक सम्प्रदाय विशेष के मन कावड़ यात्रियों का खौफ पैदा किया जाय। हमने देखा कि केन्द्रीय सत्ता पर भाजपा के काबिज होने के बाद खुद को देश के प्रधानमंत्री का प्रशंसक व उग्र हिन्दूवादी कहने वाले एक छोटे वर्ग ने धर्म निरपेक्षता की बात करने वाले तमाम विपक्षी दलो की घेराबंदी करने के नाम पर भारत के नागरिकों के ही एक हिस्से पर हिंसक होना या फिर अभद्र टिप्पणी करना शुरू कर दिया है और इस वर्ग की कोशिश है कि वह किसी भी धार्मिक आयोजन या गतिविधि को इस तरह का रूप दें कि इसके बहाने अन्य धर्मालम्बियों पर हिंसक हुआ जा सके। हांलाकि इस तरह की विचारधारा रखने वले तथा मौका-बमौका भड़काऊ बयान देने वाले लोग हर धर्म और सम्प्रदाय में है और इस तथ्य से भी इनकार नही किया जा सकता कि देश की आजादी के बाद से वर्तमान तक भारत के राजनीतिज्ञों द्वारा तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दिखलाये जाने वाले मुस्लिम आबादी के प्रति प्रेम ने भारत की शेष जनता को कई मोर्चो पर नुकसान पहुँचाया है लेकिन अपने इस तथाकथित उग्र हिन्दुत्व का सड़कों पर प्रदर्शन कर अथवा कांवड़ या अन्य मेलो के आयोजन के दौरान हुड़दंग कर हम अपने ही लोगों को नुकसान पहुँचा रहे है और कावड़ियों की पवित्र वेशभूषा में हमारे बीच घुसपैठ करते दिख रहे अपराधी व नशेड़ी इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों को हमपर उंगली उठाने का मौका दे रहे है। कावड़ यात्रा के माध्यम से गंगाजल साथ में लेकर हिन्दुत्व की एकता एवं धर्म के प्रति समर्पण की भावना का संदेश देने का यह तरीका कतई गलत नही कहा जा सकता बल्कि अगर गंभीरता से गौर करें तो शिव की भक्ति में रमें कांवड़ियें गंगाजल का सम्मान कर प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन का संदेश देते प्रतीत होते है लेकिन जाने-अनजाने में इन कांवड़ियो द्वारा गंगा में बहाये जाने वो तमाम फूल-पत्ते या अन्य प्लास्टिक की सामग्री तथा यात्रा के दौरान स्थान-स्थान पर एकत्र किया जाने वाले तमाम तरह का कूड़ा, व्यवस्थाओं के आभाव में प्रकृति के साथ ही साथ स्थानीय स्तर पर मानव जीवन को भी नुकसान पहुँचा रहा है। यह ठीक है कि इस सबके लिऐ अकेले कांवड़ियें दोषी नही है लेकिन अगर इस तरह की यात्राओं के संचालक अगर चाहे तो इन यात्राओं के माध्यम से इस तरह के संदेश प्रसारित कर समाज में एक नई चेतना लायी जा सकती है लेकिन अफसोसजनक है कि धर्म के नाम पर डाक कांवड़ जैसी व्यवस्थाओं को प्रोत्साहित कर हालातों को सुधारने के जगह बिगाड़ने की दिशा में काम किया जा रहा है और कांवड़ के नाम पर कान फोडू़ संगीत के साथ मदमस्त नांचते युवाओं के कुछ टोले धर्म के पूरे ठेकेदार बने बैठे है। स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा लगायी जाने वाली तमाम तरह की आपत्तियाँ व प्रतिबंध कांवड़ियों की जिद के आगे बौने साबित होते है और कंधे पर कांवड़ का बोझ रखते ही शिवभक्तों की कुछ टोलियों द्वारा की जाने वाली मनमानी अक्सर स्थानीय प्रशासन को भारी पड़ती है। बिना हैलमेट दो पहिया वाहन में तीन सवारी चलते कांवड़ियें, डाक-कांवड़ के नाम पर तेज रफ्तार वाहनों से कूदते-फांदते और दौड़ते कांवड़ियें या फिर नशे की गिरफ्त में आकर ऊल-जलूल हरकतें करने वाले कांवड़िये कब, कहाँ और किस दुघर्टना का शिकार न हो जाये और कौन सी दुघर्टना मानवीय संवेदनाओं को भड़काकर दंगे या हिंसा का रूप न ले लें, स्थानीय पुलिस-प्रशासन को यह भय हमेशा बना रहता है लेकिन इन सबके बावजूद पुलिस बल के तेज-तर्रार सिपाही अपने लाठी-डण्डे एक तरफ रखकर विनती व आदर के साथ ही भोले को मनाने में लगे रहते है। हमारी कोशिश होनी चाहिऐं कि जनता व पुलिस प्रशासन के बीच भोले का यह आदर हमेशा बना रहे और कांवड़ियों का वेश धरकर अराजकता फैलाने की कोशिश करने वाले अराजक तत्वों, अपराधियों व नशेड़ियों को हम खुद अपने बीच से निकाल बाहर फेंके। साथ ही साथ कांवड़ के इस पावन अवसर पर सृष्टि के संरक्षक एवं संहारक बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते वक्त हमें यह प्रतिज्ञा भी लेनी चाहिऐं कि आगामी वर्षों में कांवड़ यात्रा के वक्त अपनी छोटी बचत करने के चक्कर में हम प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाले प्लास्टिक उत्पादों व अन्य खतरनाक किस्म के रसायनों से युक्त पूजा सामग्री आदि का उपयोग नहीं करेंगे और न ही किसी को करने देंगे।