देहरादून। हर साल मानसून के दौरान उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं और तबाही की खबरें आती हैं। हर साल राज्य के मैदानी क्षेत्रों में बारिश की वजह से पानी भरने की घटनाएं होती हैं तो पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश की वजह से वेग के साथ आता पानी और मलबा तबाही मचा देता है। अक्सर इसे बादल फटने की संज्ञा दी जाती है। हालांकि मौसम विभाग इनकी पुष्टि करने से इनकार कर देता है। मौसम विभाग की डिक्शनरी में बादल फटने जैसी कोई चीज होती ही नहीं है। मौसम विभाग अतिवृष्टि की बात कहता है. किसी जगह पर अगर एक घंटे के दौरान लगातार 100 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की जाती है तो उसे अति वृष्टि माना जाता है। इतनी ज्यादा बारिश किसी भी जगह में आफत ला सकती है।
रुद्रप्रयाग में गुरुवार सुबह बादल फटने की घटना के संदर्भ में पूछे जाने पर मौसम विभाग, देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह कहते हैं कि जब तक रेन फॉल मॉनीटरिंग न हो तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि किसी जगह अतिवृष्टि हुई है या नहीं। हालांकि पहाड़ के भूगोल की वजह से 100 मिलीमीटर से कम बारिश भी तबाही ला सकती है। पहाड़ में होने वाली बारिश तेजी से नीचे आती है और ऐसी जगहों पर जहां जंगल न हों और पानी के रास्ते में निर्माण या अवरोध हों यह आफत साबित होती है।
मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि दरअसल ऐसा अक्सर मॉनसून की हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ के टकराने की वजह से होता है। उत्तराखंड में ऐसा मॉनसून सीजन के दौरान ऐसा मौसम कई बार बनता है। जब पूर्व से आने वाली मॉनसून की हवाएं और पश्चिमी विक्षोभ आमने-सामने आ जाते हैं। दोनों ही एक-दूसरे को रास्ता नहीं देते और इसलिए एक ही जगह भारी बारिश हो जाती है।