यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को देना ही पड़ेगा हर्जाना | Jokhim Samachar Network

Thursday, May 09, 2024

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यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को देना ही पड़ेगा हर्जाना

देहरादून। राज्य उपभोक्ता प्रतितोश निवारण आयोग ने सर्वे ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त महिला को बैंक द्वारा उसके फिक्स्ड डिपॉजिट के भुगतान में बेवजह किये गए विलम्ब एवंइस कारण हुए उत्पीड़न को आधार मानते हुए किये महत्वपूर्ण निर्णय में बैंक की अपील खारिज कर दी। जिसके उपरांत अब बैंक को जिला उपभोक्ता फोरम देहरादून का आदेश मानते हुए पीड़िता को बीस हजार रुपये के हर्जाने के साथ साथ उसको वाद व्यय के रूप में पांच हजार रुपये भी अलग से देने होंगे इसके साथ ही अब तक कि अवधि 8 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी देना पड़ेगा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बल्लुपुर रोड निवासी सिनियर सिटिजन महिला शैल बाला ने जिला उपभोक्ता फोरम देहरादून के समक्ष यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की  सर्वे ऑफ इंडिया शाखा के विरुद्ध 09 सितंबर 2011 एक वाद दायर करते हुए कहा था कि उपरोक्त बैंक में उन्होंने दस दस हजार रुपये की तीन एफ डी आर बनवाई थी जिनका वो समय समय पर नवीनीकरण करवाती रही किन्तु 2004 में उन्हें ब्रेन हैमरेज ही गया था एवं उन्हें सामान्य होने में बहुत वक्त लगा इसी बीच वो इन एफ डी आर के सर्टिफिकेट कही रख के भूल गयीं। नवंबर 2011 में अचानक अपने कागजों में उन्हें यह तीनों सर्टिफिकेट मिल गए तो उन्होंने तुरंत बैंक की शाखा में उन्हें प्रस्तुत करते हुए उन्हें फिर से नवीनीकृत करने का निवेदन किया। जिस पर बैंक अधिकारियों ने पुराना मामला हो जाने और फिर रिकॉर्ड नहीं मिलने और फिर रिकार्ड खो जाने के बहाने महिला को चक्कर पे चक्कर कटवा रहे है जिससे उनका मानसिक एवं आर्थिक उत्पीड़न हो रहा है। वहीं बैंक ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि महिला की अपनी  जमा राशि के प्रति उदासीनता के कारण ही विलम्ब हो रहा है। लगभग साढ़े चार साल तक चले इस मामले में उपभोक्ता फोरम ने बैंक की दलीलो को आधारहीन मानते हुए 03 फरवरी 2016 को पारित अपने आदेश में यूनियन बैंक को भुगतान में देरी करने और ग्राहक सेवाओँ में कई गयी कमियों का जिम्मेदार मानते हुए बैंक पर बीस हजार रुपये का हर्जाना और पांच हजार रुपये वाद व्यय के रूप मे महिला को देने का आदेश दिया था। इस आदेश के विरुद्ध बैंक ने स्टेट कमिशन में मई 2016 अपील दायर की थी। राज्य कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस बीएस वर्मा एवं सदस्य वीना शर्मा ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद बैंक के तर्को को खारिज करते हुए उनकी अपील को निरस्त कर दिया और माना कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का महिला के प्रति व्यवहार ठीक नही था और बैंक ने उन्हें बेवजह अनेक चक्कर कटवा कर उनका उत्पीडन किया जबकि बैंक को अपने ही नियमानुसार खुद ग्राहक को उसकी जमा राशि के परिपक्व होने पर उसे सूचित करना चाहिये था।

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