‘जोर-जुर्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है’ और बतोलेबाजी के पीछे छुपे पूरे सच को सामने लाना हमारा पेशा। | Jokhim Samachar Network

Sunday, April 28, 2024

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‘जोर-जुर्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है’ और बतोलेबाजी के पीछे छुपे पूरे सच को सामने लाना हमारा पेशा।

उत्तराखण्ड चुनाव में ‘जोर लगाके हाईसा’ वाले अन्दाज में अखाड़ा पूरी तरह सज गया है और सत्ता के शीर्ष की घेराबन्दी करने के लिऐ भाजपाई सूरमा अपनी पूरी ताकत के साथ हाॅका लगाने में जुट गये है। जुमलेबाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी फिसलती जुबान के साथ स्कूटर में डीजल डला एक बार फिर उत्तराखण्ड की ओर रूख कर गये है तथा लोकसभा के गलियारे से उत्तराखण्ड में आने वाले भूकम्प व भूकम्प पीड़ितो का मजाक बनाने के बाद अब उत्तराखण्ड की राजनीति में भूकम्प लाने के लिऐ हरिद्वार से उन्हांेने अपना ‘हरीश रावत’ हटाओं अभियान नये सिरे से शुरू कर दिया है। अब प्रधानमंत्री आये है तो उनके स्वागत् में भीड़ जुटना तो स्वाभाविक है और अगर भीड़ न भी हो तो अखबार के पहले पन्ने में विज्ञापन छापकर माहौल बनाने की गारन्टी लेने वाले मीडिया का फर्ज बनता है कि प्रधानमंत्री की रैलियों को सफल बताते हुऐ भाजपा के पक्ष में माहौल बनाये वरना ‘मजीठिया आयोग’ के डण्डे के बाद अब अगर डीएवीपी की नजर भी टेड़ी हो गयी तो फिर झूठे-सच्चे सर्कुलेशन के आधार पर खुद को देश और दुनिया का नम्बर वन चैनल या अखबार बताने वालो के धन्धे की वाट लगना तो तय है लेकिन जनता का वोट तो प्रत्याशी को ही मिलना है और प्रत्याशी के नाम पर चुनाव मैदान में खड़ी बागियों की फौज भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं को मुॅह चिढ़ा रही है जबकि भाजपा से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे निर्दलीय आम जनता के साथ ही साथ जमीनी कार्यकर्ताओं के आगे भी अपने साथ हुई नाइंसाफी का दुखड़ा रो-रोकर सुना रहे है। ऐसी हालत में चुनावों का दिलचस्प होना तो जायज है ही और चुनाव आयोग भी मुख्यमंत्री के हैलीकॅाप्टर की भी तलाशी लेकर आम जनता की दिलचस्पी बढ़ा रहा है लेकिन क्या वाकई में सरकार के इन कारिन्दों में इतनी हिम्मत है कि वह अपने शाह जी या फिर देश की सत्ता के सर्वोच्च प्रधान से यह पूछने का हिम्मत जुटा सके कि इतनी बड़ी-बड़ी रैलियों और चुनावी मंचो के लिऐ पैसा किस प्रत्याशी की आयोग द्वारा तय खर्च की अधिकतम् सीमा में से खर्च किया जा रहा है। वैसे भी भाजपा के यह गुरू-घंटाल करिश्माई है और इनके करिश्मों से समय-समय पर वाकिफ होती रही जनता यह अच्छी तरह जानती व समझती है कि नोटबन्दी के दौरान तय की गयी दो-चार हजार के नोटो की सीमा में रहते हुऐ भी यह लोग करोड़ो के नये नोट इक्कठें कर सकते है। खैर, नतीजा जो भी हो लेकिन मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद नजर आ रही है और एक शेर की घेराबन्दी के लिऐ भाजपाई सूरमाओं द्वारा पिछले लगभग एक साल से लगाये जा रहे ‘हाॅके’ के बावजूद शेर का फिर इधर-उधर से निकलकर खुद को राजा घोषित कर देना जनता के बीच कौतहुल पैदा किये हुऐ है। हाॅलाकि शेर का शिकार करने निकले तमाम बड़े शिकारियों का दल इसे आदमखोर घोषित करने में कोई कसर नही छोड़ रहा और शेर की बिरादरी के कुछ सियार व लूमड़ो को अपने साथ मिलाकर पूरी मुस्तैदी के साथ इस बात की मुनादी भी पीटी जा रही है कि आदमखोर शेर पहाड़ के लिऐ नुकसानदायक साबित हो सकता है लेकिन इस शेर के पीछे चल रहा जनता का हुजूम और आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ ठीक छलावे की तरह इसके जहाॅ-तहाॅ प्रकट होने का अन्दाज यह गवाही दे रहा है कि स्थानीय जनता इसे सिर्फ शेर या आदमखोर नही बल्कि इस प्रदेश के स्थानीय देवी-देवताओ का वाहन मान रही है और इस शेर के रोजाना एक-एक साथ कई विधानसभा क्षेत्रो में प्रकटीकरण के अन्दाज को इसके साथ चल रहे देवताओ के आर्शीवाद का प्रतिफल मात्र ही माना जा रहा है। यह अकारण नही है जो शेर के विपक्ष में माने जाने वाले तमाम स्थानीय सूरमाओं ने अपने-अपने हथियार उल्टे कर अपने कोठरो तक सीमित रहने का संकेत दे दिया है और कुछ ही समय पहले तक सत्ता पर काबिज हो जंगलराज कायम करने का दावा कर रहे बयानवीर अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रो में उलझे हुऐ है। नमो-नमो का जाप कर गंगाजल तक का सौदा राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय बाजारो में करने वाले चिन्दी चोर, स्थानीय ब्राहमणों व वेदपाठी पण्डा-पुरोहितों को शराब से आचमन करने वाला बता पहाड़ की गरीबी व बदहाली के सौदागर बनना चाहते है लेकिन इस पहाड़ी प्रदेश की दशा व दिशा में सुधार करने के कौन से उपाय उनके खाकी नेकरो से तब्दील हुई पैन्टों में रखे है, यह बताकर केाई राजी नही है। एक मदारी की तरह डुगडुगी बजाकर लोकसभा में बहुमत पाने के बाद आपने इस पहाड़ी राज्य को पूरे पाॅच सांसदो के समर्थन के बदले क्या तोहफा दिया है, यह बताने को आप तैयार नही है क्योकि आप सिर्फ अपने ‘मन की बात’ करना चाहते है, जनता के मन में क्या चल रहा है इससे आपको कोई लेना-देना नही है और न ही सत्ता के मद में चूर रहते हुऐ आपको ‘आम आदमी की बात’ सुनने की फुर्सत ही है। यह ठीक है कि चुनाव मैदान में उतरे एक राष्ट्रीय दल का बड़ा नेता होेने के नाते आपको अपनी बात जनता के बीच रखने का पूरा हक है और तमाम चुनावी राज्यों में आपके सीधे मैदान में उतरने से भी जनता को कोई ऐतराज नही है लेकिन क्या आप यह घोषणा कर सकते है कि इन पाॅच चुनावी राज्यों में मिली जबरदस्त पराजय के बाद इन राज्यों में बतौर आपके प्रतिनिधि कार्य कर रहे तमाम सांसद अपने पदो से इस्तीफा देंगे। आप ऐसा नही कर सकते क्योंकि आप यह अच्छी तरह जानते है कि इन तीन वर्षो में आपके इन तथाकथित पिट्ठुआं ने अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रो में कोई काम नही किया है और सिर्फ आपकी जुमलेबाजी के दम पर इनका सत्ता में वापस आना अब सम्भव नही है। यह माना कि आप और आपके लोग अपने नारो व आपके जुमलो को आकर्षक चाॅसनी में लपेटकर प्रस्तुत करने में माहिर है और मीडिया के एक छोटे किन्तु प्रभावी हिस्से को मैनेज कर अपनी मनपंसन्द का सर्वे प्रस्तुत करना भी आपको बहुत अच्छी तरह से आता है लेकिन आपको यह ध्यान रखना चाहिऐ कि आपकी सरकार ने डीएवीपी की नीतियो में बड़ा उलटफेर कर तमाम छोटे-छोटे किन्तु सच को बेहतर ढंग से जानने वाले पत्रकारों व सम्पादको की रोटी छीनी है और अब चुनावों के दौरान विज्ञापन देने की बात करने वाले आपके ही लोग इन छोटे व मझोंले अखबारों से तीस-चालीस फीसदी कमीशन माॅग रहे है। इस हालत में हमारी कलम अब जो भी आग उगलेगी, निश्चित मानियें वह आपके खिलाफ ही होगी और हम आपको विश्वास दिलाते है कि हमारी प्रसार संख्या भले ही सीमित हो लेकिन हमारी जुबान व कलम में बहुत ताकत है और हम जैसे तमाम लोग भूखे पेट अपने अस्तित्व की इस अन्तिम जंग को लड़ रहे है।

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