-कारगिल शहीद सतीश चंद्र सती के नाम पर की गई घोषणाओं से स्पष्ट
चमोली। नेताजी की घोषणाओं पर इसीलिए समझदार तबका एकदम भरोसा नहीं करता कि वे अक्सर झूठ का पुलिंदा भी साबित हो जाती हैं। इसका उदाहरण देश के खातिर प्राणों की आहुति देने वाले कारगिल शहीद सतीश चंद्र के नाम पर की गई घोषणाओं से स्पष्ट हो जाता है। उनके नाम पर मोटर मार्ग, स्मारक, स्कूल की घोषणाएं आज भी धरातल को नहीं छू पाई है। चमोली जिले के नारायणबगड़ विकासखंड के सिमली गांव निवासी सतीश चंद्र सती 23 साल की उम्र में ही 30 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। वे सेना की 17 वीं गढ़वाल राइफल में तैनात थे। उनकी शहादत के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने एक कार्यक्रम में उनके नाम पर नारायणबगड़ परखाल मोटर मार्ग की घोषणा की। इसके लिए बाकायदा बोर्ड भी लगाया गया। बाद में इस सडक़ के लिए बजट का आवंटन तो हो गया, लेकिन कागजों से शहीद का नाम हटा लिया गया। इसके अलावा शहीद के नाम पर इंटर कॉलेज का नाम रखने की भी घोषणा हुई थी। घोषणा के बाद शहीद के परिजनों ने यहां पर अपने खर्चे से स्कूल गेट का निर्माण भी कराया, लेकिन अभी तक स्कूल का नाम शहीद के नाम पर नहीं हो पाया है। शहीद स्मारक की घोषणा को भी अभी तक अमलीजामा नहीं पहुंच पाया है। हैरानी की बात तो ये है कि शहीद के 84 वर्षीय बुजुर्ग पिता महेशानंद सती कई सालों से शासन प्रशासन के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई भी इसकी सुध नहीं ले रहा। महेशानंद का कहना है कि प्रत्येक वर्ष शहीद दिवस पर जिला प्रशासन द्वारा उन्हें बुलाकर सम्मानित किया जाता है, लेकिन उनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। कहा कि यह उनके शहीद बेटे की शहादत का अपमान है। बीएस रावत (जिला सैनिक कल्याण अधिकारी, चमोली) का कहना है कि कारगिल शहीद सतीश चंद्र सती के नाम को लेकर हुई घोषणाओं में से एक योजना पर ही उनका नाम जुडऩा है। नारायणबगड़ परखाल सडक़ को अभी स्वीकृति ही नहीं मिली है। असेड़ सिमली इंटर कॉलेज को शहीद के नाम करने के लिए पत्राचार किया गया है। यह मामला अब शिक्षा विभाग के निदेशक स्तर पर लटका हुआ है। हमारी कोशिश है कि स्कूल का नाम जल्द ही शहीद के नाम पर हो।