देहरादून। पूर्व मंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता मंत्री प्रसाद नैथानी ने अपने निवास स्थान पर श्रीदेव सुमन जयंती मनाई। उन्होंने अपने परिजनों के साथ श्रीदेव सुमन के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उन्हें याद किया। इस मौके पर श्री नैथानी ने कहा कि जब पूरे भारत में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद था देश की जनता के नेतृत्व में आजादी की अंतिम लड़ाई लड़ी जा रही थी, पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहा था तब टिहरी रियासत की जनता दोहरी लड़ाई लड़ रही थी, पहली अंग्रेजों से दूसरी रियासत के राजा के खिलाफ। इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे श्रीदेव सुमन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 25 मई 1916 को श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौल गांव में हुआ। तारा देवी और हरीराम बडोनी के परिवार में जन्मे श्रीदेव सुमन के दो भाई और एक बहिन थे। श्रीदेव सुमन तीन बरस के थे जब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। उनके पिता एक वैद्य थे और इलाके में अपनी सेवा के लिये लोकप्रिय रहे। इसके बाद परिवार का लालन-पालन उनकी माता ने ही किया। श्रीदेव सुमन की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव और चम्बाखाल में हुई. वह पहली बार जेल सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान गये थे. दोस्तों की सहायता से उन्होंने दिल्ली में देवनागरी महाविद्यालय की स्थापना भी की यहीं से ‘सुमन सौरभ’ नाम से उन्होंने अपनी कवितायें भी प्रकाशित कराई। दिल्ली में उनके द्वारा गढ़देश सेवा संघ (1937) की स्थापना भी की गयी यही बाद में हिमालय सेवा संघ कहलाया। 1938 में सुमन ने गढ़वाल की यात्रा की और जवाहरलाल नेहरु को रियासत की दुर्दशा के बारे में बताया। इसी साल उनका विवाह विनय लक्ष्मी के साथ हुआ, विनय लक्ष्मी देवप्रयाग विधानसभा से दो बार विधायक भी चुनी गयी।