• कौशलेश भट्ट की रिपोर्ट
उत्तराखंड सरकार द्वारा 14 जुलाई 2020 को अल्मोड़ा की सोबन सिंह जीना कैंपस को विश्वविद्यालय का दर्जा देने बाद सीमांत पिथौरागढ़ ज़िले के युवाओं में आक्रोश उत्पन्न हुआ है। युवाओं ने इसे सीमांत की अनदेखी और सीमांत के युवाओं के लिए एक छलावा बताया है।सरकार द्वारा अल्मोड़ा में विश्वविद्यालय बनाने की स्वीकृति के बाद से ही पिथौरागढ़ के युवा सड़कों पर उतर गए और कलक्ट्रेट के पास जाकर अपना विरोध दर्ज कराया।छात्रों ने इसे गलत निर्णय बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की।
गौरतलब है किअल्मोड़ा में विश्वविद्यालय बनने की बाद पिथौरागढ़ का महाविद्यालय भी अब अल्मोड़ा विश्वविद्यालय के अंतर्गत ही आएगा और इसे कैंपस के दर्ज़ा मिलेगा परंतु फिर भी युवा इस फैसले से नाखुश नज़र आये।
● सीमांत में विश्वविद्यालय के लिए आंदोलन का इतिहास*
पिथौरागढ़ के युवा सन 1972 से ही पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय की मांग करते हुए आये हैं। तब पिथौरागढ़ का महाविद्यालय आगरा विश्वविद्यायल से सम्बद्ध था, आंदोलन के फलस्वरूप अविभाजित उत्तरप्रदेश की सरकार ने 1973 में कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में दो अलग अलग विश्वविद्यालय बनाने की मंजूरी दे दी, परंतु तब भी कुमाऊं विश्वविद्यायल का निर्माण पिथौरागढ़ में न करा कर नैनीताल में कराया गया। इसके उपरांत पिथौरागढ़ में फिर से कुछ समय अंतराल में आंदोलन किये गए जिस कारण सीमन्त के युवाओं में नए विश्वविद्यालय की उम्मीद जाग रही थी , उनकी मांग थी का कुमाऊं क्षेत्र के प्रस्तावित केंद्रीय विश्वविद्यायल का निर्माण पिथौरागढ़ में ही हो , समय के कुछ -कुछ अंतरालों पर उठने वाली इन मांगों को तेजी तब मिली जब पिथौरागढ़ के एक स्टडी सर्किल ” आरम्भ” द्वारा बड़े स्तर पर फरवरी 2019 में सीमन्त क्षेत्रों में जागरूकता एवम हस्ताक्षर अभियान चलाया गया 10000 हस्ताक्षर होने के उपरांत इन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुँचाया गया ताकि मुख्यमंत्री भी सीमांत की जन भावनाओं को समझें। इस अभियान के बाद बहुत से जनप्रतिनिधियों ने भी इस मुहिम को अपना समर्थन दिया।
परंतु सरकार ने इन जनभावनाओं को दर किनारा कर अल्मोड़ा में नए विश्वविद्यालय पर स्वीकृति दे दी।
● छात्रों की परेशानी
पिथौरागढ़ के ही एक युवा महेंद्र रावत ने फेसबुक पर एक लाइव वीडियो पोस्ट की जिसमें उन्होंने पिथौरागढ़ में कैंपस और अल्मोड़ा में विश्वविद्यालय बनने के बाद सीमांत की युवाओं के लिए उत्पन्न चुनौतियों को बताया उन्होंने कहा कि ” पिथौरागढ़ का कॉलेज पहले से ही भारी छात्र संख्या का सामना कर रहा है ,अधिक छात्र और अध्यापकों की कमी के कारण उच्च शिक्षा पर जो प्रभाव पड़ रहा है वह अनेक युवाओं के लिए हानिकारक हो सकता है , शिक्षा में उत्पन्न इन समस्याओं के कारण सभी छात्र ठीक से पूरी पढ़ाई नहीं कर पाते और कॉलेज से बाहर ट्यूशन पर ही निर्भर रहते हैं, जिले की खस्ताहाल शिक्षा व्यवस्था के कारण लोग अपने बच्चों को दिल्ली, देहरादून या हल्द्वानी पढ़ने के लिए भेजते हैं जिस कारण गरीब जनता की जेब पर अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा है।
यदि पिथौरागढ़ में कैंपस बनता हैं तो प्रत्येक कोर्स में सीटें भी कम हो जाएंगे जिस कारण पहले से ही भारी छात्र संख्या वाले इस कॉलेज पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और जिन्हें प्रवेश नहीं मिलेगा उनकी उच्च शिक्षा का क्या प्रबन्ध होगा ,उनका यह भी कहना था कि अगर सरकार को पिथौरागढ़ में कैंपस बनाना ही है तो महाविद्यालय को इसके स्वरूप में ही रहने दे कर नये कैंपस का निर्माण किया जाए जिस कारण छात्रों को अधिक अवसर मिल सकें”। उनका मानना है कि सीमांत की बदहाल शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन तब हो पाता जब पिथौरागढ में नए विश्वविद्यालय का निर्माण होता , नये विश्वविद्यालय के कारण आस पास के अन्य महाविद्यालयों की भी स्थिति में सुधार आता जिस कारण स्थानीय क्षेत्र के युवा भी लाभान्वित होते, जिस कारण सीमांत की शिक्षा और आर्थिक दोनों रूप से विकास होता।
● विशेषज्ञों का मत
क्षेत्र के शिक्षाविद भी इस बात पर छात्रों के साथ हैं , उनका कहना है कि चीन और नेपाल सीमा से लगे धारचूला, मुनश्यारी , पिथौरागढ़ और चम्पावत के युवाओं के नाम के विश्वविद्यालय को अल्मोड़ा में बना देना सीमान्त की अनदेखी करना है।
पिथौरागढ़ के बहुत से छात्र संगठन भी इस फैसले की खिलाफ हैं। अब यह देखना होगा कि आगे इस फैसले के क्या परिमाण देखने को मिलेंगे , हालांकि कोरोना संक्रमण के बावजूद भी छात्राओं ने सोशल डिस्टेंसिनग अपनाते हुए शान्ति पूर्ण प्रदर्शन किया है।