देहरादून। बाबा केदारनाथ मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। इसे महाभारत काल से जोड़कर भी देखा जा सकता है। पुरानी कहावत है कि महाभारत युद्ध के बाद अपने ही परिवार की तबाही से शुब्ध पांडव अपना राजकाज छोड़कर स्वर्ग की ओर निकल पड़े थे। बताया जाता है कि उत्तराखण्ड के वर्तमान के जौनसार क्षेत्र के रास्ते से होकर ही वे हिमालय तक पहंुचे थे। कहावत यह भी है कि पांडवों के इस क्षेत्र में आने से जौनसार क्षेत्र में निवास करने वाले लोग खुद को पाडवों के वंशज मानते है। वैसे भी जौनसार क्षेत्र में लाखा मंडल जहां पांडवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया था वह आज भी विराजमान है। जोकि इस बात को साबित करता है कि पांडवों का जौनसार बावर क्षेत्र से वास्ता रहा है। बताया जाता है कि अपने पूर्वजों की याद में पाण्डव वंश के जनमेजय प्रारभ में केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। आधुनिक काल में इस जीर्णोद्धार हिन्दुओं के धर्मगुरू आदि शंकराचार्य ने किया था।
बाबा केदारनाथ स्थान पर मौजूदगी के पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा है यह भी है, जिसका उल्लेख केदारखंड में हुआ है।
इस कथा का संबंध महाभारत और उसके बाद की घटनाओं से है। कथा के अनुसार महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था और पांचों पाण्डव भगवान श्री कृष्ण के साथ युद्ध की समीक्षा कर रहे थे।
कृष्ण ने पाण्डवों से कहा कि युद्ध में भले ही जीत तुम्हारी हुई है, लेकिन तुम लोग गुरू और अपने बंधु-बांधवों को मारने के कारण पाप के भागी बन गये हो। इन पापों के कारण मुक्ति मिलना असंभव है। इस पर पाण्डवों ने पाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछा।
कृष्ण ने कहा कि इन पापों से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं, अतः महादेव की शरण में जाओ। महादेव को जब इस बात की जानकारी मिली की पाण्डव उनके पास आ रहे हैं तो वह सतर्क हो गए।
पाण्डवों के सामने आने से बचने के लिए बार-बार स्थान परिवर्तन करने लगे क्योंकि महादेव पाण्डवों द्वारा राज्य पाने हेतु बंधु-बांधवों का वध करने के कारण उनसे नाराज थे। शिव जी को जैसे ही लगा कि पाण्डवों ने उनहें पहचान लिया है है वह बैल रूप में ही धरती में समाने लगे। भीम ने आव देखा न ताव झट से बैल बने महादेव का कुल्हा पकड़ लिया।
महादेव को विवश होकर प्रकट होना पड़ा और पाण्डवों की दृढ़ भक्ति और इच्छाशक्ति को देखते हुए उन्हें पाप से मुक्त करना पड़ा। आज भी इस घटना के प्रमाण शुरू केदारनाथ का शिवलिंग बैल के कुल्हे के रूप में मौजूद है।
शिव जब बैल रूप में धरती में समा रहे थे उस समय उनके सिर का भाग नेपाल में निकाला जिसकी पूजा पशुपतिनाथ के रूप में होती है। शायद इस पौराणिक कथा को जानने के बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस बार बाबा के दर्शन करने के लिए उस समय के पारमपरिक परिधानों का इस्तेमाल किया। जिससे कि वे पांडवों की भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रकट कर सकें।