माँ, ईश्वर का सबसे सुन्दर सिग्नेचरः स्वामी चिदानन्द सरस्वती | Jokhim Samachar Network

Saturday, April 27, 2024

Select your Top Menu from wp menus

माँ, ईश्वर का सबसे सुन्दर सिग्नेचरः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आज का दिन माँ, मातृभूमि, मातृभाषा और माता धरती को समर्पित किया। परमार्थ प्रांगण में मातृदिवस के अवसर पर रूद्राक्ष का पौधा रोपित किया। स्वामी जी ने कहा कि माँ, बच्चे को जन्म तो देती है साथ ही पोषण भी करती है। इस प्रकार हम सभी अपनी माँ के साथ मातृभूमि, माता धरती और मातृभाषा से पोषित हुये हंै, इनके अभाव में हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते इसलिये माता के लिये एक दिन नहीं बल्कि पूरा जीवन समर्पित हो। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत की संस्कृति में तो हर दिन ही, हर पल ही माँ के लिये है। वह कौन सा पल है, जब माँ समर्पित नहीं होती है। बच्चों के लिये माँ ही उसकी जन्नत होती हैय बच्चे का पूरा संसार होती है।
 दुनिया का सबसे ताकतवर शब्द है माँ। ’माँ’ केवल एक शब्द नहीं बल्कि अपने आप में पूरा महाकाव्य हैय जीवन का सर्वोत्तम विश्वविद्यालय है। माँ का स्वरूप असीम प्रेम, त्याग, समर्पण, सेवा, सहनशीलता, और अपार श्रद्धा की परिपूर्ण है। माँ के जीवन का आधार ही सहजता, वात्सल्य और प्रेम है। माँ, ममता की मूर्ति है, जिसने माँ को जान लिया उसने मानों पूरे जगत को जान लिया। माँ ही तो बच्चों को असली उड़ान देती है और एक नई पीढ़ी का निर्माण करती।  एक अबोध बालक के लिये माँ ही सम्पूर्ण सृष्टि होती है जहां बालक निर्भय होकर पलता रहता है। वर्तमान समय में क्या हम उसी माता के स्वरूप को भय रहित दुनिया उपलब्ध कराने में सक्षम है?
’जननी जन्म भूमिश्चस्वर्गादपि गरियसी’ अर्थात माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। किसी ने कहा था कि ’’आप किसी राष्ट्र में महिलाओं की स्थिति देखकर उस राष्ट्र के हालात बता सकते हैं।’’ आज भारत में कई स्थानों पर नारियों पर हो रहे दुव्र्यवहार हमारी संस्कृति पर प्रश्नचिहृ लगा रहे हंै, क्या आज हमारे ही समाज में नारी शक्ति सुरक्षित या सम्मानित है?
स्वामी जी ने कहा कि कोरोना वायरस के कारण लोग अपने घरों में बंद हंै, परन्तु बाहर प्रकृति खुल कर मुस्करा रही है। माँ गंगा सतयुग की गंगा की तरह स्वच्छ और निर्मल प्रवाहित हो रही है। हम चाहे तो लाॅकडाउन के बाद भी हमारी नदियांे को इस तरह स्वच्छ बनाये रख सकते हंै। माँ गंगा, नदियों और पर्यावरण ने यह बात कुछ सप्ताह में ही सिद्ध कर दी है कि जैसे मैं बहती थी वैसे मुझे बहने दो। अविरल, निर्मल हर दम मुझे वैसे ही बहने दो। हमें अपने कल्चर, नेचर और फ्यूचर के संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा। हमारी संस्कृति और प्राकृतिक सम्पति बचेगी तो ही हमारी संतति बचेगी। आज के दिन हमें एक और संकल्प लेना होगा वह कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को हम अपनी मातृभाषा से जोड़े रखेंगे। मातृभाषा और मातृभूमि से जुड़ना मतलब अपनी जड़ों से जुड़े रहना। हमें अपने बच्चों को मातृभाषा से समृद्ध और सम्पन्न बनाना होगा। दुनिया भर में बोली जाने वाली 40 प्रतिशत भाषायें आज विलुप्त होने की कगार पर हंै, उसका प्रमुख कारण है नई पीढ़ी द्वारा उसे न अपनाना। विविध भाषाओं का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है परन्तु अपनी भाषा को भूलना भी तो बुद्धिमानी नहीं है। यूनेस्कों द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार भारत में 1950 से लगभग 5 भाषायें विलुप्त हो गयी है और 42 भाषायें गंभीर रूप से संकटग्रस्त हंै। आईये संकल्प लें कि अपने घर में अपनी मातृभाषा को हमेशा जीवित रखंेगे। गांधी जी ने कहा था कि ’’बच्चों के मानसिक विकास के लिये मातृभाषा उतनी ही जरूरी है जितना कि शारीरिक विकास के लिये माँ का दूध।’’ स्वामी जी ने कहा कि हमारी मातृभूमि हमारी पहचान है व हमारी शान है। हमारी पहचान हमारे राष्ट्र से है, भारत भूमि से है और इस माटी से है। मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा कि ’’उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जायेंगे। होकर भव-बंधन मुक्त हम आत्म रूप बन जायेंगे।’’इसकी रक्षा करना केवल हमारे सैनिकों का काम नहीं बल्कि हम सभी 135 करोड़ देशवासियों का कर्तव्य है। वर्तमान कोरोनाकाल उस कर्तव्य के निर्वहन का काल है। आईये अपने घरों में रहंे-सुरक्षित रहें और अपने देश को सुरक्षित रखने में योगदान प्रदान करंे। स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशांे का पालन करें तथा माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बतायी गयी सप्तपदी एवं निर्देशों पर अमल करे।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *