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Thursday, May 02, 2024

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संगीत की शिक्षा के नाम पर

सरकारी संरक्षण में चलने वाली भातखण्डे संगीत अकादमी में हो रहा है छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ पहाड़ के सुरम्य वातावरण व यहां के स्थानीय निवासियों की प्रकृति के प्रति निकटता को देखते हुऐ इस पर्वतीय प्रदेश के जनमानस के संगीतप्रेमी होने का अंदाजा लगाया जा सकता है और यहां के स्थानीय लोकगीतो, लोकनृत्यों, जागर व होली गायन परम्परा पर एक नजर डालने मात्र से ही इस पर्वतीय आंचल की वैभवशाली संगीत परम्परा व इस परम्परा के शास्त्रीय संगीत पद्धति से जुड़ाव का अंदाजा सहज ही आ जाता है। अगर वर्तमान परिपेक्ष्य में बात करें तो राज्य गठन के बाद हमारी सरकारें इस राज्य की लोक संस्कृति, लोकविधा व वैभवशाली लोक संगीत को एक अन्र्तराष्ट्रीय पहचान देने में असफल भले ही रही हो लेकिन यहां की मेधा ने अपने प्रयासों व मेहनत के बलबूते न सिर्फ अन्र्तराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनायी है बल्कि कुछ स्थानीय कलाकारों के निजी प्रयासों से पहाड़ से जुड़ी संगीत की इन तमाम विधाओं को राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर मंच दिया जाने लगा है। उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बाद स्थानीय सरकार व लोक प्रशासन द्वारा जब भातखण्डे संगीत अकादमी को मान्यता दी गयी तो एकबारगी ऐसा लगा कि संगीत क्षेत्र की कुछ प्रबुद्ध व नामी-गिरामी हस्तियाँ इस अकादमी के माध्यम से आगे आयेंगी और स्थानीय लोक कलाकारों व लोकविधाओं को संविर्धित कर एक बड़ा मंच प्रदान किया जायेगा लेकिन अपने इस फैसले के बाद सरकार इस अकादमी से सम्बद्ध महाविद्यालयों को वेतन व अन्य व्यवस्थाओं के लिऐ धन का प्रबन्धन करने तक सीमित रही और शेष जिम्मेदारियों को उसने वक्त के भरोसे छोड़ दिया। नतीजतन वर्तमान में भातखण्डे संगीत अकादमी से सम्बद्ध तीन संगीत महाविद्यालय क्रमशः देहरादून, पौड़ी व अल्मोड़ा में चलाये जा रहे है और इन महाविद्यालयों में प्रतिवर्ष सैकड़ों छात्र अपने उज्जवल भविष्य की कामना के साथ संस्थागत् अथवा निजी विद्यार्थी के रूप में संगीत की शिक्षा ले रहे है जिन्हें विधिवत् रूप से भातखण्डे संगीत अकादमी द्वारा लिखित व प्रयोगात्मक परीक्षा लेने के बाद कई तरह की डिग्रियां दी जाती है। अब असल मुद्दे की ओर आते हुऐ हम यहां पर चर्चा करते है भातखण्डे द्वारा दी जाने वाली डिग्रियों की, तो संक्षेप में यह कहना ज्यादा उचित होगा कि उत्तराखंड की राज्य सरकार द्वारा भातखण्डे संगीत अकादमी द्वारा दी गयी मध्यमा की डिग्री को (10़2) शिक्षा पद्धति में दी गयी इन्टरमीडिएट की तथा विशारद व निपुण की शिक्षा कोू क्रमशः स्नातक व परास्नातक के समकक्ष की मान्यता दी गयी । यहां तक तो सबकुछ ठीक था और स्थानीय युवाओं व संगीत की शिक्षा मे ही अपना भविष्य तलाशने वाले छात्रों के लिऐ यह हर्ष का विषय था कि सरकार उनकी अभिरूचि के अनुसार उन्हें संगीत शिक्षा देने के उचित प्रबन्ध के लिऐ प्रयत्नशील थी लेकिन इधर पिछले कुछ समय से जानकारी में आ रहा है कि भातखण्डे संगीत अकादमी को यूजीसी द्वारा मान्यता नही दी गयी है। आश्चर्य का विषय है कि देश भर मे संगीत महाविद्यालय के सैकड़ों सेन्टर चलाने वाली भातखण्डे संगीत अकादमी देश-विदेश में ख्याति अर्जित करने व पूर्णतः सरकारी नियन्त्रण में होने के बावजूद यूजीसी की नियमावली का अनुपालन करते हुये इस मान्यता दिये जाने के संदर्भ में किसी भी तरह के प्रयास करने के मूड में नही है और अगर गंभीरता से मनन किया जाय तो यह उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर के संगीत पे्रमी व संगीत के माध्यम से अपना भविष्य संभालने को इच्छुक युवा पीढ़ी के साथ अन्याय व धोखा है। गौरेतलब है कि उत्तराखंड अथवा उत्तर प्रदेश समेत तमाम राज्य सरकारों द्वारा संचालित शिक्षा परिषद में संगीत की शिक्षा को सीमित ही महत्व दिया गया है तथा कुछ गिने-चुने स्कूलों व कन्या पाठशालाओं में अगर संगीत शिक्षक के पद है भी तो वह वर्षो से खाली ही रखे गये है। इसके ठीक विपरीत केन्द्र सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालयों अथवा सीबीएससी व आईसीएससी बोर्ड के आधीन चलाये जाने वाले तमाम निजी अथवा मिशनरी स्कूलों में संगीत की शिक्षा को विशेष अभिरूचि के तौर पर मान्यता दी गयी है जिसके चलते इन तमाम स्कूलों व कालेजों में संगीत शिक्षक के पद पर कार्य करते हुऐ इस दिशा में नये प्रयोग करने व युवा छात्रों के माध्यम से स्थानीय लोककलाओं व संस्कृति को आगे बढ़ाने की अपार संभावनाएं है लेकिन अफसोसजनक है कि भातखण्डे संगीत अकादमी को यूजीसी से मान्यता न दिये जाने के चलते भातखण्डे संगीत अकादमी से सम्बद्ध तमाम महाविद्यालयो से संगीत की शिक्षा ग्रहण करने वाले युवाओं की शैक्षिक योग्यता व रोजगार हेतु पात्रता को लेकर शक की स्थिति उत्पन्न हो गयी है और स्थानीय स्तर पर इन संगीत महाविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने वाला युवा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। कितना आश्चर्यजनक है कि सरकारी तंत्र के आधीन और सरकारी खर्च से चल रही इन संगीत शिक्षा की दुकानों में धड़ल्ले से फर्जी डिग्री बांटी जा रही है और स्थानीय राज्य सरकारें इसे अपनी उपलब्धि बता रही है जबकि हकीकत यह है कि यूजीसी से मान्यता न मिलने के कारण भातखण्डे संगीत अकादमी से डिग्री लेने वाले छात्रों को मध्यमा के बाद बी.ए. में, विशारद के बाद एम.ए में या फिर निपुण के बाद पीएचडी में प्रवेश देने संबधी कोई प्रावधान ही नही है। जाहिर है कि भातखण्डे संगीत महाविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों का भविष्य अंधकारमय है और इन छात्रों के बूते स्थानीय संस्कृति, लोककला व लोक परम्पराओं को बचा कर रखने का दावा करने वाली सरकार व्यवस्था खुद से ही झूठ बोल रही है। यह ठीक है कि संगीत शोध व आत्मसंतुष्टि का विषय है और इसकी विधिवत् शिक्षा-दिक्षा की तुलना स्कूली पाठ्यक्रमों से करना भी बेमानी है लेकिन व्यवसायिकता के इस दौर में रोजगार के समुचित संसाधनों के बिना संगीत की साधना करना नामुमकिन नही तो मुश्किल जरूर है और भातखण्डे संगीत अकादमी के संचालक मण्डल की छोटी सी चूक अथवा निहित स्वार्थो को ध्यान में रखकर उठाये गये यूजीसी के दायरे से बाहर रहने सम्बन्धी इस कदम ने युवाओं के भविष्य को अंधकारमय बना दिया है। हांलाकि सरकारी कारकूनों से इस संदर्भ में प्रश्न पूछे जाने पर वह प्रदेश सरकार द्वारा भातखण्डे संगीत अकादमी को हर तरह से सहयोग करने की बात करते हुऐ संस्कृति निदेशालय के माध्यम से नवोदित कलाकारों को अपनी प्रतिभा के मंचीय प्रदर्शन के लिये प्लेटफार्म उपलब्ध कराने की बात भी करते है लेकिन वास्तविकता में देखा जाये तो इस संदर्भ में हालात और भी ज्यादा बुरे है। न्यूनतम् मजदूरी वाले अंदाज में ही निर्धारित मानदेय के साथ विषम परिस्थितियेां में काम करने वाले लोक कलाकारो का इस्तेमाल सम्बन्धित विभागों व सरकारी अधिकारियों द्वारा बन्धुआ मजदूरों की तरह ही किया जाता है तथा स्थानीय संस्कृति, लोककला व लोकगायन परम्पराओं के बेहतर प्रतिनिधि होने के कारण जनता के बीच इनकी लोकप्रियता को देखते हुऐ सत्तापक्ष के नेता व जनप्रतिनिधि इनका उपयोग चारण-भाट कलाकारों की तरह भीड़ एकत्र करने के लिऐ करने से नही चूकते। वर्तमान में हालत यह है कि एक अदद मंत्री या छुटभय्यै नेता के सफल कार्यक्रम के लिऐ कुछ अदद सांस्कृतिक कला क्षेत्र के कलाकारांे की उपस्थिति अनिवार्य सी मानी जाने लगी है और इस उपस्थिति के बाद उसे मिलने वाला मानदेय कितने समय बाद उसे प्राप्त होगा भी या नहीं, इसकी कोई गारंटी सरकार के पास नही है। हालातों के मद्देनजर लोककला, लोकसंस्कृति एवं भारतीय संगीत परम्परा का संवाहक, संरक्षक एवं शिक्षिक होने का दावा करने वाली भातखण्डे संगीत अकादमी युवाओं व छात्रों का शोषण कर उन्हें धोखे के अलावा कुछ और दे पाने में पूरी तरह असफल नजर आ रही है।

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