असमंजसता भरे माहौल में-देश में लागू हुई एकल कर व्यवस्था लेकिन कई सवालों के जवाब अनुत्तरित। | Jokhim Samachar Network

Saturday, April 27, 2024

Select your Top Menu from wp menus

असमंजसता भरे माहौल में-देश में लागू हुई एकल कर व्यवस्था लेकिन कई सवालों के जवाब अनुत्तरित।

नोटबंदी के बाद आर्थिक सुधारों के क्रम में दूसरा बड़ा फैसला लेते हुये देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में एकल कर व्यवस्था लागू कर दी और जीएसटी के विरोध में उठ रहे सुरों, आधी अधूरी तैयारियों को लेकर आ रही खबरों व विपक्ष द्वारा किये गये बहिष्कार के बावजूद सरकार ने तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार जीएसटी लागू करने की घोषणा कर दी। नतीजतन अब देश में एक समान कर प्रणाली लागू है और यह माना जा रहा है कि उपभोक्ता सामग्रियों के साथ ही अन्य तमाम तरह की खरीद-फरोख्त में अब सारे देश में एक समान व्यवस्था व समान मूल्य लागू होगा लेकिन जीएसटी को लेकर अभी तमाम तरह के संशय है और व्यापारी वर्ग डरा हुआ है क्योंकि उसे एक बार फिर इंस्पेक्टर राज कायम होने के खतरा सता रहा है। उपरोक्त के अलावा चुंगी जैसी तमाम तरह के कर व्यवस्थाओं के बदले नाम से लागू होने का डर तथा बार-बार टैक्स जमा करने व हिसाब रखने के लिऐ नये कर्मचारियो की नियुक्ति का बोझ देश में एक अलग तरह की लूट-खसोट व कृत्रिम मंहगाई की ओर इशारा कर रहा है। हालातों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी माना है कि जनता को जीएसटी लागू करने के शुरूवाती दौर में कुछ परेशानियाँ होगी और इसका असर देश की लगातार बढ़ रही मुद्रास्फीति व बेरोजगारी पर भी पड़ सकता है लेकिन सरकार को यह भी मालुम है कि कुछ कड़े फैसले लेने लिऐ यहीं उचित समय है क्योंकि अभी लोकसभा चुनावों में दो वर्षो का समय है और मोदी सरकार को उम्मीद है कि आगामी दो वर्षों में इन तमाम फैसलों के सकारात्मक परिणाम जनता के सामने आने शुरू हो जायेंगे। वैसे भी भाजपा की रणनीति अपने कामों या चुनावी वादों को पूरा कर अगली बार फिर जनता के बीच जाने की नहीं है बल्कि भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि देश के मतदाताओं को आसानी के साथ धर्म व जाति के नाम पर धु्रवीकृत कर चुनाव जीता जा सकता है और इसकी प्राथमिक तैयारी के तौर पर गाय व गंगाजल जैसे तमाम मुद्दों को आगे कर सामाजिक कटुता व वैमनस्यता बढ़ाने के प्रयास जारी है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक माना जाने वाला शहरी व कस्बाई क्षेत्र का छोटा व्यापारी जिसे स्थानीय भाषा में बनिया वर्ग भी कहा जाता है, इस वक्त केन्द्र सरकार के निर्णय से खुश नही है क्योंकि उसे यह महसूस हो रहा है कि नोटबंदी व जीएसटी लागू किये जाने के फैसले के बाद सबसे ज्यादा नुकसान व परेशानी उसे ही हो रही है लेकिन इस तथ्य को दावे से नही कहा जा सकता कि आगे होने वाले तमाम छोटे-बड़े चुनावों में यह तबका भाजपा को वोट नही देगा क्योंकि इस वर्ग के पास भाजपा का कोई विकल्प नही है। दरअसल में भाजपा व संघ के रणनीतिकारों ने पिछले कुछ वर्षो में समाज की सामान्य सी समस्याओं को भी धर्म व जाति से जोड़ दिया है और पिछले तीन वर्षोें में तो हालात इतने बदतर हो गये है कि समाज का एक तबका दूसरे तबके को हर हमेशा ही शक भरी निगाहों से देख रहा है। हांलाकि इसके लिऐ भाजपा ही अकेली दोषी नही है बल्कि देश के अन्य राजनैतिक दलों द्वारा समय-समय पर प्रदर्शित किये गये मुस्लिम तुष्टिकरण के रवैय्ये तथा देश-विदेश में लगातार सामने आ रहे तमाम आंतकवादी मामलों में स्पष्ट रूप से शामिल दिखने वाले कुछ मुस्लिम बिरादरी के युवाओं ने ऐसा माहौल बनाया है कि समाज का एक हिस्सा मुस्लिम समाज को भय व घृणा की नजरों से देखने लगा है और इसमें रही सही कसर भाजपा के उन उत्साही समर्थकों ने पूरी कर दी है जो धर्म व जाति के आधार पर उदंडता की सभी हदों को पार कर जाना चाहते है। हमने देखा कि कुछ तथाकथित मोदी भक्तों द्वारा अभी पिछले दिनों एक मुस्लिम युवक को रेल की बोगी में पीट-पीट कर मार दिया गया तथा खुले में शौच करने के मुद्दे पर महिलाओं से अभ्रदता करने से रोकने पर भी मोदी बिग्रेड के कुछ कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के गाँव के ही एक मुस्लिम युवा को पीट-पीट कर मारा डाला लेकिन देश के प्रधानमंत्री अथवा भाजपा के किसी अन्य बड़े नेता ने इन तमाम घटनाओं पर खेद व्यक्त नही किया बल्कि बयानों एवं इशारों के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि सत्तापक्ष की नीतियों व सिद्धान्तों के विरोध में उठने वाली आवाजों को इस अंदाज से चुप कराने में कोई बुराई नही है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय समाज इस वक्त खुद को डरा व सहमा महसूस कर रहा है और उसे डर है कि सरकार के विरोध में उठने वाले स्वरों या फिर सरकार द्वारा लिये जा रहे जन विरोधी फैसलों का प्रतिकार करने की स्थिति में उसे सामाजिक रूप से देशद्रोही, पाकिस्तानी दलाल या फिर विदेशी ऐजेन्ट समेत कुछ भी संज्ञा देकर प्रताड़ित किया जा सकता है लेकिन इतना सबकुछ सहने के बावजूद भी वह अगर भाजपा के पक्ष में राजनैतिक रूप से लामबंद नही दिखता तो फिर सत्ता परिवर्तन की स्थिति में उसे यह गारन्टी भी नही है कि अगली आने वाली सरकार बलवाई मुस्लिमों या फिर हालियाँ ज्यादती का हवाला देकर आंतकी वारदातों को अंजाम देने वाले जेहादी संगठनों से उसकी रक्षा करेगी। कितना आश्चर्यजनक है कि आज हमारे बुद्धिजीवी जीएसटी के देश की आर्थिकी पर प्रभाव या फिर देश में लगातार बढ़ रही पढ़े-लिखे बेरोज़गारों की संख्या पर बहस करने की जगह इतिहास को बदल डालने की हिमाकत के साथ गाँधी व नेहरू के महिला प्रेम, की चर्चा करते हुये गोडसे द्वारा उठाये गये गांधी वध के कदम को सही साबित करने का प्रयास कर रहे है और ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि मानो भारत माता की जय का नारा लगाने या फिर राष्ट्रगान गाने मात्र से ही देश की समस्त समस्याओं का समाधान हो जायेगा। नमो-नमो के उद्घोष के साथ देश को एक बार फिर विश्व गुरू बनाने का दावा करने वाले कुछ उत्साही नौजवानों को भले ही जीएसटी के मायने या अन्य एबीसीडी समझ में आये या न आये लेकिन वह मोदी राज में लागू की जा चुकी इस व्यवस्था के विरूद्ध एक शब्द भी सुनने को तैयार नही है और यही मोदी का मीडिया मेनेजमेन्ट है कि वह अपने हर फैसले को अंजाम देने से पहले मीडिया के एक छोटे किन्तु सशक्त हिस्से को विज्ञापन के माध्यम से आर्थिक रूप से संतुष्ट कर अपने चीयर लीडर्स की टीम को हर छोटे-बड़े मसले पर हल्ला मचाने के लिऐ तैयार रखते है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *