देहरादून। ऋषिकेश, आज माँ गायत्री जयंती के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने देशवासियों को माँ गायत्री जयंती दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि गायत्री महामंत्र शुद्धि, बुद्धि और सिद्धि त्रिवेणी हैय पवित्रता, दिव्यता और भव्यता का संगम है। यह मंत्र अद्भुत परिवर्तनकारी मंत्र है। मैं जब बहुत छोटी सी आयु में साधना के पथ पर आया और गायत्री मंत्र का पुरूश्चरण किया और आगे कदम बढ़े उसके बाद मेरे जीवन की पूरी दिशा ही बदल गयी। आज उसी का प्रताप है कि पूरा जीवन प्रभु सेवा के लिये है आगे भी यह जीवन संस्कृति और संस्कारों को समर्पित बना रहे यही प्रभु से प्रार्थना है।
स्वामी जी ने कहा कि गंगा के पावन प्रवाह की तरह हम सभी में राष्ट्रभक्ति का पावन प्रवाह बना रहे, समाजसेवा का पावन प्रवाह बना रहे, जब से कोरोना संकट आया और लाॅकडाउन शुरू हुआ तब से उसके समाधान के रूप में हम सभी परमार्थ निकेतन के प्रांगण में सोशल डिसंटेंसिग का गंभीरता से पालन करते हुये गायत्री महामंत्र से हवन कर रहे हैं।
प्रतिदिन यज्ञ हो रहा है आनन्द की बात तो यह है कि आज यहां से एक रश्यिन परिवार जो कि किर्गिजस्तान से आये थे (माँ सिवारा और दो प्यारे बच्चंे साशा और वोवा) आपने देश वापस जा रहा है लाॅकडाउन के कारण यहां पर रूके थे । प्रतिदिन यह परिवार हवन में सबसे पहले बैठते थे, आज यहां से जाते हुये माँ सिवारा केे आंखों में आंसू थे उन्होंने कहा कि रूके तो लाॅकडाउन के कारण लेकिन इस संकट काल में यहां से जो मिला वह अद्भुत था अब परमार्थ निकेतन हमारे घर की तरह है यहां के दिव्य प्रांगण में मेरे दोनों बच्चों ने मजे किये, यहां से दिव्य संस्कार प्राप्त किये, स्वादिष्ट भोजन, ध्यान, सत्संग और गंगा स्नान का आनन्द लिया, आज हम यहां से जा रहें हंै परन्तु हमारी जान यहीं पर है यहां आते रहेंगे, यहां से मिले संस्कार बच्चों के जीवन को हमेशा जागृत रखेंगे ऐसा मेरा विश्वास है कोरोना भले ही सजा बनाकर आया लेकिन मेरे बच्चों ने यहां ध्यान, योग और यज्ञ के साथ बहुत ही आनन्द प्राप्त किया, उनको यहां पर बहुत ही अच्छा लगा। नया वातावरण, नयी संस्कृति, सब कुछ बहुत ही दिव्य और भव्य हमेशा याद रहेगा। स्वामी जी ने गायत्री मंत्र की महिमा बताते हुये कहा कि गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है, यह हमारे मन को प्रबुद्ध करता है, इससे दिव्य प्रकाश की भव्य महिमा प्राप्त होती है, बुद्धिमत्ता का विकास होता है, गायत्री मंत्र का जीवन बदलने वाला मंत्र है। गायत्री मंत्र अनिवार्य रूप से आत्म-परिवर्तन और उच्च व्यक्तिगत विशेषताओं को विकसित करने की प्रेरणा के लिए प्रार्थना है। यह प्रबुद्ध बुद्धि, रचनात्मक ज्ञान, उच्च आदर्शों, सार्वभौमिक सद्गुणों, संतुलित दिमाग, सच्चा जीवन, जागृत चेतना और जीवन की एक सार्थक यात्रा के लिए समझदारी की कृपा के लिए प्रार्थना है। इससे आंतरिक प्रतिभा, दृढ़ संकल्प की शक्ति प्राप्त होती है। आध्यात्मिक पूर्णता तक पहुंचने का दिव्य मंत्र है। कोरोना संकट के समय गायत्री महामंत्र आत्मिक शान्ति, सद्बुद्धि और संकट से लड़ने की शक्ति देता है जो लोग इस समय घरों में है, क्वारंटाइन सेंटरों में हंै, वे इस दिव्य मंत्र का जप कर रोगों से लड़ने की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
आज निर्जला एकादशी भी है, निर्जला शब्द का शाब्दिक अर्थ है बिना जल पीये एकादशी का व्रत। निर्जला एकादशी को हम सदियों से मनाते चले आ रहे हैं, हम एक दिन जल न पी कर इस व्रत को करते हैं इससे हमें शक्ति तो मिलती ही है, साथ ही यह भी अनुभव होता है कि एक दिन जब जल नहीं पीते हंै तो हमें जल की महिमा का पता चलता है इसलिये आज के दिन हम सभी मिलकर जल बचाने का संकल्प भी ले। जल है तो जीवन है, जल है तो हम है, जल है तो सृष्टि है, व्यास जी ने वर्णन किया है कि निर्जला एकादशी व्यक्ति के सभी दोषों को दूर कर सकती है और अंतिम मोक्ष के अलावा समृद्धि, लंबी आयु और सुख की शुभकामनाएं देती है। इस उपवास के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। उपवास का जो विशेष अर्थ है उप माने नजदीक, वास माने बैठना अर्थात ईश्वर के समीप बैठना। स्वयं के समीप बैठना, स्वयं को देखना भीतर की यात्रा करना, स्वयं को जगाना, स्वयं को प्रकाशित करना और प्रकाश बन जाना। चूंकि निर्जला एकादशी मानसून की शुरुआत से पहले आती है, यह गलत खाने की आदतों के कारण संचित विषाक्त पदार्थों के शरीर को शुद्ध करने के लिए समझ में आता है। इस दौरान उपवास शरीर को एक यात्रा के लिए तैयार करता है जो मानसून के मौसम के बाद लोगों को मौसम के बदलाव का सामना करने देता है। आज सभी ने मिलकर कोरोना से मुक्ति के लिये विशेष प्रार्थना की।