देहरादून। विश्व पर्यावरण दिवस के पूर्व संधया पर फि़क्की फ्लो के उत्तराखंड चौप्टर ने आज प्रकृति के साथ संगत स्थायी आजीविका बनाने की जरूरत पर जोर देने के लिए वेबिनार‘ बैक टू नेचर‘ काआयोजन किया। सामाजिक कार्यकर्ता, वनस्पति विज्ञानी, हिमालयी पर्यावरण अधययन और संरक्षण संगठन के संस्थापक और पद्मश्री अवार्डी डॉ- अनिल प्रकाश जोशी वेबिनार के मुख्य अतिथि थे। इस वेबिनार में देशभर के 17 फि़क्की फ्लो चौप्टर और 4 ल् फ्लो चौप्टर ने भाग लिया। इस वेबिनार में चर्चा के मुख्या विषय महिलाओं द्वारा आजीविका चलने के लिए पर्यावरण और प्रकृति को साथ लेकर कैसे चलना है । जो की परिवार में मुख्या भूमिका निभाती है। इसके साथ है पर्यावरण की रक्षा कैसे करे और साथ ही साथ अधिाक से अधिाक पेड़ लगाने है और जल का संचय प्राकृतिक रूप से कैसे किया जाय आने वाले समय में फि़क्की फ्लो का लक्ष्य है की कुछ गाँवो को एडोप्ट करके वहाँ रहने वाली महिलाओं को ये अधिाकार दिए जाए की पर्यावरण का सरंक्षित करने हेतु उनके द्वारा ही कायदे कानून बनाये जाय।
जाह्नबी फ़ूकन, राष्ट्रीय अधयक्ष फ्लो ने वेबिनार में भाग लेते हुए कहा, ‘‘ मैं उत्तराखंड चौप्टर के इस स= का हिस्सा बनकर खुश हूं क्योंकि यह विषय पूरी तरह से वर्ष 2020-21 के मेरे विजन के अनुरूप है, जो महिलाओं के आर्थिक उत्थान के लिए बहुत आवश्यक है। जैसा कि हम जानते हैं, मार्च 2020 में, दुनिया बदल गई और इस वैश्विक महामारी के समय में, वैश्विक आर्थिकी रुक गयी है गई है । वास्तव में, केवल महिलाओं की स्थायी आजीविका के जरिये ही उनका सशक्तीकरण हो सकता है और केवल महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण से ही समाज में समानता आ सकती है।अब समय है कि हम प्रकृति में वापस जाएं और आजीविका की उपलब्धाता और विकल्पों दोनों को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक और स्थानीय रूप से उपलब्धा संसाधानों का प्रयोग करे । समुदायों में शामिल हुए बिना कोई भी कोशिश प्राकृतिक संसाधानों के प्रबंधान को संभवनहीं बना सकती है और यही पर स्थायी आजीविका की भूमिका आती है। प्राकृतिक संसाधानों के संरक्षण के कई तरीके हैं और स्थायी आजीविका उनमें से एक है।‘‘
किरण भट्ट टोडरिया, अधयक्ष, फि़क्की फ्लो, उत्तराखंड चौप्टर ने कहा, ‘‘यह सही समय है कि हम प्रकृति के अनुरूप स्थायी आजीविका पर एक नेशनल वेबिनार का आयोजन करें। मैं आज के परिदृश्य में दृढ़ता से विश्वास करती हूं कि स्थायी आजीविका और कार्य हमारे समय में एक प्रमुख अवधाारणा बन गई है, यह आज भी एक आदर्श दृष्टिकोण है जिसमें समाज आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों का उद्देश्य रखता है और उत्तराखंड में हमारे लिए दृमहिलाएं अपने राज्य की बैक बोन रही हैं और मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमें अर्थव्यवस्था में इकोलॉजी के तरीकों की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। वास्तव में, समुदायों के शामिल हुए बिना कोई भी कोशिश प्राकृतिक संसाधानों के प्रबंधान को संभव नहीं बना सकती है और यही पर स्थायी आजीविका की भूमिका आती है।‘‘ डॉ- अनिल प्रकाश जोशी ने कहा, ‘‘ वैश्विकस्तर पर, 50 प्रतिशत से ज्यादा जीडीपी प्राकृतिक संसाधानों पर निर्भर है। 153 क्षे= ऐसे हैं जहां संसाधान जीडीपी का विकासकरने के लिए इन क्षेत्रें का समर्थन करते हैं। इन में से 0-37 प्रतिशत आंशिक रूप से निर्भर हैं लेकिन 15 प्रतिशत पूरी तरह से संसाधानों पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, हमारे पास इकोसिस्टम या प्राकृतिक संसाधानों के विकास का सिस्टम नहीं है जिसके कारण स्थिरता नहीं बन पा रही है। इकोलॉजी समावेशी अर्थव्यवस्था ही हमारे विकास में स्थिरता ला सकती है। हाल के दिनों में, हमने अपने प्राकृतिक संसाधानों की अनदेखी की है और आखिरकार, इसका परिणाम प्रकृति को भुगतना पड़ा है। विभिन्न प्रकार के तफ़ूान जिनका सामना हम कर रहे हैं और न जाने कितनी ही अज्ञात बीमारियां इंसानी सेहत पर हमला कर रही हैं,यह असलमें प्रकृति के सि)ांत की अभिव्यक्तियां हैं। वे सभी प्रकृति के साथ हमारे पिछले व्यवहार से संबंधिात हैं । इकोसिस्टम को समझने का सही समय है।’’इस वेबिनार में सुश्री कोमल बत्र, सीनियर वाइस चेयर पर्सन, फि़क्की फ्लो, उत्तराखंड चौप्टर, डॉ- नेहा शर्मा, वाइस चेयर पर्सन, फि़क्की फ्लो, उत्तराखंड चौप्टर और सभी पदाधिाकारी और कार्यकारी समिति के सदस्य शामिल थे।