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Friday, April 26, 2024

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मुसीबतों के पहाड़ तले दबा आंदोलकारी का परिवार

ढाबे में झूठे बर्तन धोकर हो रहा परिवार का गुजारा
18 सालों से अपने हक के लिए लड़ रहा है आंदोलकारी
रुद्रप्रयाग। राज्य आंदोलन के समय अपने प्राण न्यौछावर करने वाले आंदोलनकारी आज हाशिए पर हैं। दो वक्त की रोटी के लिए होटल में बर्तन मांझने तक को मजबूर हैं। जब राज्य आंदोलन की लड़ाई चरम पर थी, उस समय जिले के आंदोलनकारियों ने अपनी जांव को दांव पर लगा दिया। मगर आज उनकी स्थिति ऐसी है कि परिवार के गुजर-बसर के लिए होटल में कार्य करना पड़ रहा है। आंदोलन के लिए सुरेंद्र सिंह सिंधवाल प्राइवेट नौकरी कर रहे थे। राज्य के लिए नौकरी छोड़कर सिंधवाल आन्दोलन में कूद पड़े, लेकिन आज अपने ही राज्य में गुमनामी की जिंदगी गुजारने को मजबूर है। जेल में यातनाएं सहने के बाद आज तक उन्हें उनका हक नहीं मिल पाया। सुरेंद्र की माने तो वह छह दिन जेल में रहा और सरकार से 18 वर्षों से नौकरी की मांग कर रहे हैं। कई बार मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायकों के चक्कर काट चुके हैं। आखिर में थक-हारकर परिवार के भरण-पोषण के लिए बर्तन धोने को मजबूर है। उनके साथ अन्याय किया गया है।
उनका कहना है कि भले ही राज्य की कई सरकारें गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाने की बात कर रही हो, लेकिन यह सपना भी पूरा नहीं हो पाया। राज्य आन्दोलन में अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले आन्दोलनकारी आज भी ऐसे हैं। जिन्होंने राज्य की लड़ाई के लिए कई यातनाएं सही, उन्हीं को सरकारों ने पराया कर दिया। विकासखण्ड अगस्त्यमुनि के तूना निवासी सुरेन्द्र सिंह सिंधवाल ने राज्य आन्दोलन के दौरान अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़ दिया और आंदोलन में कूद पड़े। राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ने के बाद सरकार उन्हें भूल गई। रोजगार के नाम पर सिर्फ उन्हें बेवकूफ ही बनाया गया। उनका कहना है कि राज्य स्थापना दिवस पर राज्य के आन्दोलनकारियों को सम्मानित करने का ढकोसला तो रचा जाता है, लेकिन असल में जो इसके हकदार हैं उनके बारे में नहीं सोची जा रही है।
गौर करने वाली बात है कि जब राज्य के निर्माताओं का ही यह हाल है तो फिर आम उत्तराखंडी के क्या हाल होंगें? गौरतलब है कि लम्बे संघर्ष और आन्दोलनकारियों के बलिदानों के बाद ही राज्य का गठन नौ नवम्बर 2000 को भारत के सत्ताइसवें राज्य के रूप में हुआ, लेकिन जिन उद्देश्यों के लिए आंदोलनकारियों ने अपना बलिदान दिया, वह सपना आज भी अधूरा ही है। पहाड़ के युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं और महिलाओं को यातनाएं सहनी पड़ती है। गैरसैंण को राजधानी बनाने के ख्वाब हर सरकार दिखाती है, लेकिन पूरा करने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। ऐसे में राज्य आंदोलनकारियों को अपनी पीड़ा के साथ ही राज्य की पीड़ा भी सता रही है। वहीं जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि आंदोलनकारियों की जो भी समस्याएं हैं, उसे दूर करने का प्रयास किया जाएगा। शासन स्तर पर आंदोलकारी की पत्रावलियां भेजी जाएंगी, जिससे आंदोलकारी को न्याय मिल कसे।
फोटो: राज्य आंदोलनकारी सुरेन्द्र सिंह सिंधवाल (11आरडीपी3)

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