हल्द्वानी।इस बार के चुनावोंमव कई नेताओं का राजनैतिक भविष्य लगा है दाव पर,कुछ की राजनैतिक शुरुआत है तो कुछ की अंतिम चुनाव।वैसे तो सभी उम्मीदवार अपनी जीत का दावा कर रहे है,लेकिन वास्तविक स्थिति उनको मालूम है,लेकिन क्या करे जब ओखली में सर दे ही दिया है।
नैनीताल जिले की बात की जाए तो यहां पर। हल्द्वानी,कालाढूंगी,लालकुंआ विधानसभा क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमा रहे प्रताशियो को शायद इस बार किसी दैवीय चमत्कार की उम्मीद है।कालाढूंगी से दो बार विधायक बने बीजेपी के नेता बंसीधर भगत इस बार हैट्रिक लगाने के लिए बेताब नजर आरहे है।जो हमेशा यही कहते आये है कि मेरी किस्मत में राजयोग है इस लिए मैं हर बार जीत जाता हूं,माननीय जब जनता का चाबुक चलता है तो राजा को रंक बनते देर नही लगती, इसलिए किस्मत के साथ साथ जनता पर भी भरोसा करें।
हल्द्वानी विधान सभा में भारतीय जनता पार्टी से दो बार महापौर रह चुके और एक बार विधायकी का चुनाव लड़ चुके जोगेंद्र रौतेला और कांग्रेस की कद्दावर नेता स्व इंदिरा ह्रदयेश के सुपुत्र सुमित हरदेश्य के बीच हार और जीत की जबरदस्त जंग है।सुमित भी अपनी राजनीति पारी का शुभारंभ कर रहे है,वो बात अलग है कि कांग्रेस राज में यह मंडी समिती के अध्यक्ष रह चुके है और एक बार मेयर का चुनाव भी लड़ चुके है। सुमित का इस बार का चुनाव जीतना मान सम्मान से ज्यादा अपनी माँ के लंबे चौड़े राजनीतिक जीवन को आगे लेजाने की परीक्षा है। वही दूसरी तरफ रौतेला को टिकट दे कर कई और टिकट के दावेदारों को नाराज कर पार्टी भीतरघात से बचने के लिए रूठे हुए पार्टी कार्यकर्त्ताओं को मनाने का प्रयास कर रही है।हल्द्वानी विधानसभा में जनता किसके पक्ष में फैसला करेगी यह कह पाना मुश्किल है।
अब बात कर लेते है सबसे हॉट व वीईपी विधानसभा की,जी मैं बात कर रहा हूं लालकुआं की जहां कांग्रेस,बीजेपी के साथ निर्दलीय प्रत्यशियों ने दिग्गजो की नींद उड़ा रखी है। कांग्रेस ले लिए यह सीट इसलिए भी महत्यपूर्ण है क्योंकि यहां से प्रदेस के पूर्व मुख्यमंत्री पार्टी के वरिष्ठ नेता सरकार बनने पर मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार हरीश रावत मैदान में है,वो बात अलग है कि रावत जी पार्टी के कई लोगो को नाराज करके लालकुआं से पैरासूट प्रत्याशी बने है।यहां से कांग्रेस की वरिष्ठ व पार्टी प्रत्याशी संध्या डालाकोटी का टिकट फाइनल होने के बाद उनको कटवा कर हरीश रावत खुद यहां से उम्मीदवार बन गए है।अब डालाकोटी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर चुकी है इतना ही नही उनको जानता का जो समर्थन मिल रहा है,उसको देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि रावत जी अपनी सीट बचा पाते है कि नही।और यह भी सत्य है पिछली बार दो विधानसभाओं में करारी हार उनके अतिविश्वास और आपनो की नाराजगी ही थी। अब जनता के मन मे एक ही सवाल आरहा है अगर रावत जी इस बार भी पास नही हुए तो क्या यह उनके राजनैतिक सफर का दी ऐंड होगा या अभी और खेला होवे।