देहरादून। प्रदेश में लागू ट्रांसफर एक्ट पर अमल करना शिक्षा विभाग को भारी पड़ रहा है। उत्तराखण्ड सूबे के पहाड़ी इलाकों में जहां सैकड़ों की तादाद में शिक्षक दुर्गम से सुगम ट्रांसफर हो गए हैं, उन पर इसका खासा असर पड़ रहा है। सुगम इलाको से इन दुर्गम इलाकों में कोई शिक्षक नहीं भेजा गया है, जिस कारण कई स्कूलों में ताला लटकना तय हो गया है। ऐसे में लकीर का फकीर बनना कितना भारी पड़ सकता है, यह पिथौरागढ़ के शिक्षा महकमे से बेहतर भला कौन जान सकता है। चीन और नेपाल की सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले में पहले से ही शिक्षकों का भारी टोटा पड़ा था। ऐसे में नए ट्रांसफर एक्ट ने यहां नीम पर करेला चढ़ाने का काम किया है. बता दें कि जिले में कुल 215 हाईस्कूल और इंटर कॉलेज हैं, जिसमें केवल 19 ही सुगम हैं। ऐसे में यहां से 13 प्रिंसिपल, 34 प्रवक्ता और 133 एलटी के शिक्षक जिले से बाहर ट्रांसफर कर दिए गए हैं। इनकी जगह मात्र 2 एलटी के शिक्षक को ही यहां भेजा गया है।
पिथौरागढ़ में शिक्षा विभाग का यह हाल तब है जब 673 प्रवक्ता और 390 एलटी पद पहले से ही खाली पड़े हैं। इससे भी बुरा हाल यहां प्रिंसिपल का है। 73 प्रिंसिपल हाईस्कूल और 88 इंटरमीडिएट में पद वर्षों से खाली पड़े हैं। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि जिस जिले में पहले से ही शिक्षा व्यवस्था राम भरोसे चल रही हो, वहां से सैकड़ों शिक्षकों के ट्रांसफर होने पर हालात क्या होंगे। हालांकि विभागीय अधिकारियों की मानें तो उन्होनें सिर्फ ट्रांसफर एक्ट का ही पालन किया है.वहीं स्थानीय लोगों ने कॉलेजों से शिक्षकों के तबादले पर नाराजगी जाहिर की है। इसी के साथ सरकार से उन्होंने शिक्षकों के तबादलों को जल्द से जल्द निरस्त करने की मांग की है. साथ ही रिक्त पदों को भरने की मांग की है। हाईकोर्ट का निर्देश है कि पहाड़ों से किसी भी विभाग में तब तक ट्रांसफर नहीं किया जा सकता, जब तक वहां 70 फीसदी पद भरे न हों. साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं। कि जिस किसी का भी ट्रांसफर होगा उसका प्रतिस्थानी (टीसी) भेजा जाएगा, लेकिन लगता है कि सूबे के शिक्षा महकमे ने सिर्फ ट्रांसफर एक्ट पर अलम करना जरूरी समझा है। इसकी कीमत भले ही सैकड़ों स्कूलों में ताला लटकाकर चुकानी पड़ रही हो।