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Monday, May 06, 2024

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सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट रिस्पना नदी पर प्रशासन का पलीता

नदियों को प्रदुषण मुक्त बना चुनौती
देहरादून। मुख्य मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट रिस्पना नदी को प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली के चलते प्रदुषण मुक्त बनान आज भी चुनौती बना हुआ है। उपर से प्रशासन हाईकोर्ट के नदियो को प्रदुषण मुक्त बनाने के आदेशो को भी पलीता लगाने का काम कर रहा है। नदी किनारे बसी अवैध बस्तियां शासन प्रशासन की मुहिम को मुह चिढ़ाती दिख रही है।
प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली के चलते प्रदेश की राजधानी देहरादून की नदियों को प्रदुषण मुक्त बनाना चुनौती बना हुआ है। जहां नदी किनारे बसी अवैध बस्तियों के कारण नदियों में गंदगी का सामराज्य स्थिापित हो रहा है। वहीं रिस्पना व बिंदाल पुल में खुले में शौच के कारण भाजपा सरकार के स्वच्छ भारत मिशन को भी गहरा झटका लगा है। जबकि नदियों को प्रदुषण मुक्त बनाने के लिए हाईकोट ने भी प्रशासन को आदेश दिए थे। किन्तु प्रशासन हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाने से भी बाज नही आ रहा है। हाई कोर्ट के आदेश और प्रदूषण के बढ़ते ग्राफ के बावजूद रिस्पना और बिंदाल की सूरत बदलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इन नदियों के किनारे बसी लगभग दो लाख की आबादी का पुनर्वास प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। रिस्पना और बिंदाल नदी आज मानक से करीब 76 गुना ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है। हाल ही में नैनीताल हाई कोर्ट ने एक याचिका पर आदेश देते हुए इन नदियों पर बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर सरकार और प्रदूषण कंट्रोल करने वाली एजेंसी से 7 दिन में जवाब भी मांगा है। इस मामले में जिलाधिकारी एसए मुरुगेशन बताते हैं कि रिस्पना और बिंदाल में कब्जाधारियों को पहले ही चिन्हित किया जा चुका है। उनके पुनर्वास को लेकर भी विचार किया जा चुका है। जिसके बाद अब इन अतिक्रमणकारियों को दूसरी जगह बसाकर कार्ययोजना को आगे बढ़ाया जाएगा। पर प्रशासन अपनी गतिविधियों को कब तक अंजाम दे पाएगा। यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। किन्तु वर्तमान हालात देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दो लाख लोगों का पुर्नवास प्रशासन कहीं खुद प्रशासन के गले की हड़डी न बन जाए। गौरतलब है कि रिस्पना और बिंदाल में करीब 129 बस्तियां हैं, जिन्हें पुनर्वासित किए जाने की बात कही जा रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रिस्पना को पुनर्जीवित करने के कई दावे किए और कई कार्यक्रम भी चलाए। लेकिन हालात नहीं सुधरे.बता दें कि हाई कोर्ट ने इन बस्तियों को हटाए जाने का आदेश कर चुका था। लेकिन सरकार ने वोट बैंक के चलते अध्यादेश लाकर कोर्ट के आदेश पर तीन साल तक के लिए रोक लगा दी।

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