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Friday, May 10, 2024

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गढ़वाल की पहली कोरोना वारियर बनी छाया

श्रीनगर गढ़वाल। श्रीनगर की डॉक्टर छाया गढ़वाल की पहली कोरोना वारियर बनी है। उनको सर्व महिला शक्ति समिति ने इस परुस्कार से नवाजा है।
जब देश भर में निजी अस्पतालों ने अपनी ओ पी डी बंद कर डाक्टरों को घरों में बिठा दिया था तो ऐसे मेें कुछ डाक्टर ऐसे भी थे जो कि डिजीटल माध्यमों से अपनी सेवायें मुफ्त में दे रहे थे। वो भी पहाड़ के गावों में रहने वाले लोगों को। हम यहां एक ऐसी ही डाक्टर की बात कर रहे हैं। ये हैं श्रीनगर की होम्योपैथिक डाक्टर छाया पैन्यूली। मण्डल मुख्यालय़ के छोटे से शहर श्रीनगर में रहने वाली ये डाक्टर पिछले लम्बे समये से यहां तोषी होम्योपैथिक क्लीनिक के नाम से अपना क्लीनिक चला रही है। साथ ही साथ ये हेमवतीनन्दन गढ़वाल विश्वविद्यालय के विड़ला परिसर में चिकित्साधिकारी (संविदा) के पद पर कार्यरत हैं। इस कारण इनके कई मरीज ऐसे हैं जिनका पिछले कई महीनों से लगातार इलाज चल रहा है।
लाक डाउन के दौरान जब सभी निजी अस्पतालो ंमें ओ पीडी नहीं चली और अधिकांश डाक्टरों ने अपने अपने मरीजों को भगवान भरोसे छोड़ दिया ऐसे में डा छाया पैन्यूली ने डिजीटल माध्यम जैसे फोन, व्टसऐप और फेसबुक मैसेन्जर या फिर जूम ऐप के जरिए कन्सलटेंसी दी वो भी मुफ्त में और उनका इलाज किया। साथ ही साथ इस दौरान इन्होंने अपने मरीजों को कई माध्यमों जैसे स्वयंसेवी संस्थाओ, पुलिस या प्रसाशन और मीडिया से जुड़े लोगों, से लगातार दवाईयां भी पहुंचायी। ऐसे में जबकि पूरी तरह से यातायात बंद था और पहाड़ के दूर दराज के इलाकों से मरीजों का अस्पतालों तक पहुंचना मुमकिन नहीं थी ऐसे में डा छाया पैन्यूली इनके लिए किसी देवदूत से कम नहीं थी। डा छाया पैन्यूली लगातार लाक डाउन के दिनों में जहां कोरानेा वारियर की भी भूमिका निभा रही थी वहीं अपने मरीजों का भी पूरा ध्यान रख रही थी। इन्होंने अपने मरीजों को लगातार सेवायें देकर मानवता का भी धर्म निभाया। लाकडाउन के दौरान इन्होंने डिजिटल माध्यमों से लगभग सो से अधिक मरीजों को सेवायें दी। इनमें से अधिकांश मरीज दूर दराज के ग्रामीण इलाकों के थे। डा छाया पैन्यूली का कहना है कि जो साधन सम्पन्न लोग है वह तो अपना इलाज किसी न किसी तरह से करवा ही रहे थे लेकिन जो ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग हैं और गरीब तबके से हैं उनके सामने इलाज की समस्या पैदा हो गयी थी। उनके पास न तो शहरों तक आने के लिए अपने वाहन हैं और न ही इतना पैसा की ये बड़े अस्पतालों का रूख कर सकें ऐसे में हमने इनको छोटी सी राहत देने की कोशिश की है। उनका कहना है कि यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा।

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