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Sunday, April 28, 2024

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राजनैतिक गहमागहमी के बीच

चुनावी कार्यक्रम जारी होने के बाद उत्तराखंड में रिक्त हो रही एकमात्र राज्यसभा सीट के लिए जोड़-जुगाड़ में जुटे राज्य के भाजपाई दिग्गज
उत्तराखंड के राज्यसभा सदस्य महेन्द्र सिंह महरा का कार्यकाल पूरा होने के कारण रिक्त हुई राज्यसभा सीट के लिए चुनाव कार्यक्रम का निर्धारण किया जा चुका है और राज्य की विधानसभा में भाजपा की मजबूत स्थिति को देखते हुए यह तय दिखता है कि सत्ता पक्ष बिना किसी विरोध के इस सीट पर अपनी कब्जेदारी सुनिश्चित करने में सफल होगा। हालांकि राज्यसभा सदस्य के लिए निर्धारित चुनाव कार्यक्रम में मतदान का प्रावधान है और इसके लिए तेईस मार्च की तिथि निर्धारित भी की गयी है लेकिन हालात यह इशारा कर रहे हैं कि मतदान की नौबत आने की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि राज्य की विधानसभा में भाजपा को मिला दो-तिहाई से भी अधिक बहुमत विपक्ष को यह इजाजत नहीं दे रहा कि वह इस चुनाव में सक्रिय भागीदारी का मन बनाये और शायद यही वजह है कि भाजपा के वरीष्ठ नेताओं में उत्तराखंड कोटे से राज्यसभा जाने के लिए मारामारी वाली स्थिति है तथा एक के बाद एक कर कई नाम आगे आ रहे हैं। यह ठीक है कि भाजपा के संघीय अनुशासन व पूर्व से चली आ रही परम्पराओं के अनुपालन के क्रम में प्रत्याशी का चयन व उसके नाम की घोषणा केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा ही की जानी है और केन्द्रीय नेतृत्व के किसी भी निर्णय अथवा घोषणा के विरोध में स्थानीय स्तर पर विरोध की कोई संभावना भी नहीं है लेकिन इस संदर्भ में जोड़-जुगाड़ व अपना नाम आगे करने के लिए जोर-आजमाईश का दौर शुरू हो चुका है। अगर केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा राज्यसभा भेजने के लिए किसी बड़े केन्द्रीय नेता अथवा वर्तमान में अपना कार्यकाल पूरा कर रहे किसी राज्यसभा सदस्य का नाम आगे नहीं बढ़ाया जाता तो अगले कुछ दिनों में राज्यसभा जाने के लिए उत्तराखंड के भाजपाई नेताओं की गहमागहमी तेज हो सकती है और इस संदर्भ में कोई स्पष्ट सा निर्णय सामने आने के बाद यह भी लगभग तय हो जाएगा कि राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर भाजपा की ओर से किन-किन नेताओं की दावेदारी मजबूत मानी जाएगी। उत्तराखंड कोटे से राज्यसभा की दावेदारी के लिए सबसे मजबूत नाम प्रदेश के वर्तमान संगठन अध्यक्ष अजय भट्ट का सामने आ रहा है और यह माना जा रहा है कि अपना विधानसभा चुनाव हार जाने के कारण राज्य का मुख्यमंत्री बनने से चूके अजय भट्ट को राज्यसभा की सदस्यता के रूप में बेहतरीन तोहफा देकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके इस बेहतर कार्यकाल की अनुशंसा कर सकता है लेकिन उनकी इस राह में भाजपा के एक अन्य दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी रोड़ा अटका सकते हैं क्योंकि लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए संगठन द्वारा अघोषित रूप से निर्धारित की गयी पिचहत्तर वर्ष की उम्र की सीमा को पार कर चुके भगत सिंह कोश्यारी वर्तमान में सक्रिय राजनीति में बने रहना चाहते हैं और हाल ही के दिनों में कोश्यारी व अजय भट्ट के बीच में बनी नजदीकियों को अगर आधार माना जाये तो ऐसा भी हो सकता है कि अजय भट्ट की सहमति से कोश्यारी का नाम राज्यसभा के लिए प्रस्तावित कर दिया जाये जिसके बदले भगत सिंह कोश्यारी अजय भट्ट को पूरी ताकत के साथ नैनीताल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का आश्वासन दे। अगर ऐसा होता है तो शीर्ष नेतृत्व के लिए यह एक आसान फैसला होगा और इसका लाभ भाजपा संगठन को आगामी लोकसभा चुनावों समेत स्थानीय निकायों व अन्य तमाम छोटे-बड़े चुनावों में मिलना निश्चित है क्योंकि भगत सिंह कोश्यारी के लंबे समय से भाजपा की राजनीति में सक्रिय रहने तथा मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष समेत अन्य तमाम महत्वपूर्ण पदों में रहने के कारण उनके साथ जुड़े हुए कार्यकर्ताओं व समर्थकों का अपना एक अलग वर्ग है जो अपने नेता की राजनीति से इस सम्मानजनक विदाई को दृष्टि में रखते हुए पूरी जी-जान से आगे आने वाले हर चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों के प्रचार में उतरेगा लेकिन अजय भट्ट की इस आसान राह में एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से हालिया विधानसभा चुनावों के वक्त किया गया वादा रोड़े अटका सकता है और यहां पर यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं है कि उत्तराखंड की सत्ता के शीर्ष पर भाजपाई कब्जेदारी के बाद सदन में साबित किए जा चुके दो-तिहाई बहुमत के बावजूद सत्तापक्ष के विधायकों के बीच उठते दिख रहे त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार विरोधी स्वर रह-रहकर विजय बहुगुणा के इर्द-गिर्द ही घूमते दिखाई देते हैं क्योंकि विजय बहुगुणा कांग्रेसी पृष्ठभूमि के तमाम भाजपाई विधायकों का अघोषित रूप से नेतृत्व करते हैं। वैसे भी राज्य का मुख्यमंत्री बनने से पूर्व टिहरी लोकसभा क्षेत्र के सांसद रह चुके विजय बहुगुणा अगर राज्यसभा नहीं भेजे जाते हैं तो उनकी अपने या अपने पुत्र के लिए इस लोकसभा क्षेत्र से दावेदारी निश्चित मानी जा रही है और आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा के पूर्व प्रदर्शन को बरकरार रखते हुए नये कीर्तिमान स्थापित करने की जुगत में लगी दिख रही मोदी सरकार यह कभी नहीं चाहेगी कि आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा की ओर से किसी भी कमजोर प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा जाये। इसलिए विजय बहुगुणा को राज्यसभा भेजा जाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है या फिर यह भी हो सकता है कि केन्द्र लोकसभा चुनावों के लिए जाने से पूर्व विजय बहुगुणा को कहीं राज्यपाल के रूप में मनोनीत किए जाने का आश्वासन दें लेकिन टीएसआर सरकार की बेहतरी के लिए यह तय है कि केन्द्रीय नेतृत्व यथासंभव जल्दबाजी के साथ कांग्रेस से भाजपा में आए विधायकों के इस गुट की एकजुटता पर हमलावर दिखाई देगा। राज्यसभा की इस सीट के लिए आगे आ रहे अन्य प्रमुख नामों में सतपाल महाराज व पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की भी चर्चा है और यह माना जा रहा है कि केन्द्रीय नेतृत्व की इन दोनों ही नेताओं की कार्यशैली व महत्वाकांक्षाओं पर पूरी नजर बनी हुई है। चैम्पियन के रूप में पिछले दिनों सामने आए टीएसआर सरकार के खिलाफ उग्र तेवरों व इससे पूर्व आयोजित हुई चाय पार्टी की चर्चाओं के बाद यह माना जा रहा है कि राज्य सरकार की सेहतमंदी व लंबे समय तक टिके रहने के लिए इन दोनों ही दिग्गज नेताओं को सम्मानजनक तरीके से राज्य सरकार के मसलों में हस्तक्षेप से रोकना राज्य में भाजपा की सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है। हालांकि पहले यह माना जा रहा था कि अपनी वर्तमान लोकसभा सीट छोड़कर पौड़ी की ओर रूख करने का इरादा बना रहे निशंक व महाराज के बीच तालमेल हो चुका है और महाराज हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से दो-दो हाथ करने में अपनी मूक सहमति दे चुके हैं लेकिन इधर राज्य सरकार के एक अन्य मजबूत मंत्री मदन कौशिक के साथ दो-एक मसलों पर हुई गरमागरम नोंकझोंक व जूतमपैजार के बाद सतपाल महाराज को भी बाजरिया हरिद्वार, लोकसभा तक पहुंचने की राह आसान नहीं लग रही है और अपने राजनैतिक कद व अहमियत को समझते हुए वह मुख्यमंत्री पद अथवा सांसद निर्वाचित होने के बाद केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी से नीचे कोई समझौता नहीं चाहते। इसलिए मुख्यमंत्री न बनाये जाने अथवा पौड़ी लोकसभा से दावेदारी की राह में मुश्किलें दिखाई देने की स्थिति में उन्हें बाजरिया राज्यसभा, केन्द्रीय सत्ता में हस्तक्षेप की स्थिति तक पहुंचने से भी कोई ऐतराज नहीं है और यही समान समीकरण निशंक पर भी लागू होते हैं। इन तमाम बड़े व दबंग नामों के अलावा अन्य कई द्वितीय श्रेणी के नेताओं के नाम भी चर्चा के इस बाजार में गाहे-बगाहे लिए जा रहे हैं और इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण व चर्चित नाम भाजपा के केन्द्रीय नेताओं के बहुत ज्यादा नजदीक बताये जाने वाले अनिल बलूनी का है। यह ठीक है कि अनिल बलूनी भाजपा की चुनावी राजनीति के सक्रिय चेहरे नहीं हैं और न ही उन्होंने इस राज्य से कोई चुनाव लड़ा है लेकिन राज्य की विधानसभा के लिए दावेदारी से लेकर मुख्यमंत्री के चयन तक उनके नाम की चर्चा गाहे-बगाहे होती ही रहती है और इस बार राज्यसभा के लिए उनके नाम की पुख्ता दावेदारी के वक्त से ही यह तय माना जा रहा है कि अगर राज्यसभा के लिए उनके चयन को लेकर कोई कोताही भी है तो आगामी लोकसभा चुनावों में नैनीताल लोकसभा सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाये जाने की संभावनाओं को नकारना मुश्किल होगा। खैर यह तो वक्त ही बतायेगा कि आने वाले कल में क्या नये समीकरण सामने आते हैं और राज्यसभा के लिए प्रत्याशी का चयन करते वक्त शीर्ष नेतृत्व द्वारा किन तथ्यों व योग्यताओं को प्राथमिकता पर रखा जाता है लेकिन इतना तय है कि प्रत्याशी का चयन करते वक्त केन्द्रीय नेतृत्व के लिए स्थानीयता के समीकरणों को नकारना मुश्किल हो सकता है और अगर भाजपा द्वारा राज्य में खाली हो रही इस एकमात्र सीट पर केन्द्रीय नेताओं या अन्य राज्य के नामचीन चेहरों को थोपने का प्रयास किया जाता है तो आने वाले कल में भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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