उत्तरप्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा को मिली बढ़त से साबित हुई योगी की लोकप्रियता
उ.प्र. के स्थानीय निकायों में हुए चुनावों के परिणाम भाजपा के लिए उत्साहवर्धक साबित होने चाहिए या नहीं, इस विषय पर चर्चाओं का दौर जारी है लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा के तमाम नेता व कार्यकर्ता इन नतीजों से उत्साहित है जबकि राष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा दल कांग्रेस इन चुनावों की चर्चा करने से भी बच रहा है क्योंकि इन चुनाव नतीजों ने यह चेता दिया है कि उ.प्र. में कांग्रेस की हालत वाकई में पतली है और सामान्य परिस्थितियों में अपनी परम्परागत् सीट अमेठी लोकसभा क्षेत्र के आस-पास भी कांग्रेस का प्रभाव समाप्त होता दिख रहा है। हालांकि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल सत्ता पक्ष पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के इन हालिया चुनावों में भाजपा को मिली सफलता का श्रेय ईवीएम मशीनों को ही है और जिन नगर निगम के चुनाव नतीजों के आधार पर वह उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की कार्यशैली पर जनता की मोहर लगाए जाने की बात कर रही है उन सभी के लिए हुए चुनावों में ईवीएम मशीनों का उपयोग किया गया है लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर जनता के बीच से कोई हलचल नहीं है और न ही विपक्ष इस स्थिति में दिख रहा है कि वह इस गंभीर विषय को लेकर कोई आंदोलनात्मक कदम उठा सके। यह माना कि नोटबंदी व जीएसटी लागू होने के बाद बाजार में मची त्राहि-त्राहि तथा सब्जियों समेत गैस सिलेन्डर के दाम में हुई भारी वृद्धि से जनसामान्य का एक हिस्सा कुछ हैरान व थोड़ा परेशान है लेकिन उ.प्र. से प्राप्त चुनाव नतीजों पर एक नजर डालने मात्र से हम आसानी से इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि इन तमाम परेशानियों या बाजार में चल रही उथल-पुथल का भाजपा के वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ा है और अगर उ.प्र. से प्राप्त आंकड़ों पर एक नजर डालें तो हम पाते हैं कि तमाम पंचायतों व नगरपालिकाओं में भी भाजपा का वोट बैंक बढ़ा हुआ दिख रहा है जो आश्चर्यचकित करने वाला है। कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल भले ही इस तथ्य को खुले मन से स्वीकार न करे लेकिन इन तमाम राजनैतिक दलों की मौजूदा गतिविधियां यह इशारा कर रही हैं कि उनके नीति-निर्धारकों व शीर्ष नेतृत्व ने भी यह स्वीकार किया है कि भारत का बहुसंख्यक मतदाता वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर एकजुट हुआ है और बाजार में जारी तमाम तरह के उतार-चढ़ाव व सामान्य जनजीवन में हो रही छोटी-बड़ी परेशानियों के बावजूद मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा विपक्ष के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष एजेण्डे के खिलाफ एकजुट होता नजर आ रहा है। यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों में चुनावों के दौरान गोल टोपी पहनकर मुस्लिम धर्मगुरूओं की मजार या अन्य धार्मिक स्थलों पर जाने वाले नेताओं की संख्या में न सिर्फ भारी कमी देखी गयी है बल्कि विपक्ष के तमाम छोटे-बडे़ नेता हिंदू मंदिरों व अन्य धर्म स्थलों की ओर रूख करते देखे जा रहे हैं और देश की जनता ने इसे बड़े बदलाव की संज्ञा देते हुए इसका पूरा श्रेय देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी सहयोगी टीम को दिया है। जहां तक उत्तरप्रदेश का सवाल है तो यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि सत्ता के शीर्ष पद को संभालने के बाद अपनी आक्रामक शैली के साथ काम कर रहे योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ जनता को प्रभावित किया है बल्कि प्रदेश में चल रहे गुण्डाराज के खिलाफ सख्त हुई पुलिस व्यवस्था भी आम आदमी का दिल जीतने में कामयाब रही है। यह माना कि उग्र हिन्दुत्व की छवि वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अभी राम मंदिर निर्माण समेत कई मोर्चाें पर परीक्षा होनी बाकी है और आगामी लोकसभा चुनावों के मोर्चे पर ही यह साबित हो पाएगा कि वह उस प्रचण्ड बहुमत को संभालकर रखने में कामयाब रहे भी हैं अथवा नहीं जो उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विरासत में दिया गया था लेकिन अगर जनभावनाओं के नजरिये से बात करें तो हम पाते हैं कि उ.प्र. समेत तमाम हिन्दी भाषी राज्यों की जनता का एक बड़ा हिस्सा उन्हें देश के प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानकर चल रहा है और अगर वाकई में ऐसा है तो हाल-फिलहाल उ.प्र. में भाजपा की लोकप्रियता के कम होने की कोई संभावना नहीं दिखती। वैसे भी योगी आदित्यनाथ एक सन्यासी की भूमिका से राजनीति में आए हैं और भाजपा शासित अन्य राज्यों की तुलना में वह एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनकी लोकप्रियता व जनस्वीकार्यता सत्ता के शीर्ष पद को हासिल करने के बाद बढ़ी है और अगर इस नजरिये से गौर करें तो हम पाते हैं कि उ.प्र. की सत्ता पर अपनी कब्जेदारी को बरकरार रखने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा मेहनत या बदलाव करने की जरूरत नहीं है लेकिन इस सबके बावजूद योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के प्रशासनिक ढांचे में एक बड़ा बदलाव लाने के पक्षधर दिखते हैं और उनका भगवा प्रेम देशभर में फैले उनके प्रशंसकों व मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को भाजपा की ओर आकर्षित करने में कामयाब दिखता है। इसलिए यह कहना न्यायोचित होगा कि उत्तरप्रदेश के हालिया नगर निगम व नगरपालिकाओं के चुनाव नतीजे योगी आदित्यनाथ की अब तक की कार्यशैली व प्रदर्शित की गयी कार्यक्षमताओं पर जनता की सहमति का ठप्पा है और इनका ईवीएम से छेड़छाड़ या फिर सत्ता के शीर्ष द्वारा डाले गए दबाव से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे भी तमाम छोटे-बड़े चुनावों में ईवीएम के उपयोग से पूर्व की जाने वाली तथाकथित सेटिंग या फिर इस प्रकार के मैकेनिज्म को लेकर विपक्ष के पास कोई मजबूत तर्क नहीं है और न ही किसी मजबूत पक्ष द्वारा इस संदर्भ में कोई मजबूत तर्क जनता की अदालत में रखा गया है। इसलिए यह कहना गलत है कि सरकार अथवा कोई अन्य पक्ष जनता की इच्छा के विरूद्ध उसका मत अपने पक्ष में लेने की साजिश कर रहा है और एक बार सत्ता के शीर्ष को हासिल कर चुकी भाजपा देश की जनता के लोकतांत्रिक हितों पर कुठाराघात करते हुए बार-बार सत्ता पर काबिज होने की साजिश रच रही है। यह जरूर आश्चर्यचकित कर देने वाला तथ्य है कि कांग्रेस समेत देश के तमाम विपक्षी दल पूरी जद्दोजहद के साथ उन समस्याओं व मौजूदा दौर में आम आदमी के घरेलू बजट को हिला देने वाली परेशानियों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन जनता इन तमाम विषयों पर खामोश है और कतिपय संगठनों को छोड़ दिया जाय तो कहीं कोई ऐसा आंदोलन नहीं दिखाई देता जिसे जनान्दोलन की संज्ञा दी जाय। लिहाजा यह साफ है कि देश की जनता को मोदी और योगी जैसे नेताओं पर पूरा भरोसा है या फिर वर्तमान में विपक्ष उन्हीं समस्याओं को उठा रहा है जो कि उसके सत्ता में रहने के दौरान भी बनी हुई थी और जिनका तत्कालीन सरकार के पास भी कोई समाधान नहीं था। खैर वजह चाहे जो भी हो लेकिन एक बार फिर उत्तरप्रदेश से मिले चुनावी रूझान यह इशारा कर रहे हैं कि वर्तमान में जनता को भाजपा राज पर पूरा भरोसा है और वह मोदी-योगी जैसे नेताओं को सत्ता के शीर्ष पदों पर बनाए रखने का मन बना चुकी है या फिर महंगाई व मंदी जैसी तमाम छोटी-बड़ी समस्याओं से जूझ रही जनता इस बार किसी भी कीमत पर एक बड़ा बदलाव लाने का मन बना चुकी है और इसके लिए वह कुछ समय तक राजनैतिक स्थायित्व लाकर मोदी और योगी सरकारों को काम करने का पूरा मौका देना चाहती है। जनता का असल उद्देश्य क्या है और मोदी सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल को लेकर उसका रूझान क्या कहता है, यह अंदाजा तो आगामी लोकसभा चुनावों का परिणाम सामने आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन राजनीति के मैदान में चल रहे द्वंद को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान में हिमांचल में हो चुका मतदान और गुजरात के मतदाताओं का अपनी सरकार को लेकर प्रकट किया गया रूख आगामी लोकसभा चुनावों की एक बानगी प्रस्तुत करेगा लेकिन अगर उत्तर प्रदेश के हालिया स्थानीय निकायों में सामने आए परिणामों को इससे जोड़ दिया जाये तो हम यह कह सकते हैं कि जनता ने अपना इशारा कर दिया है और अब यह देखना भर बाकी है कि योगी व मोदी जैसे नेता अपनी पुरानी विश्वसनीयता को किस हद तक कायम रख पाते हैं।