हालातों के मद्देनजर | Jokhim Samachar Network

Tuesday, April 30, 2024

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हालातों के मद्देनजर

पहली ही नजर में बेदम दिखते है कि केजरीवाल पर लगे दो करोड़ की रिश्वत के आरोंप भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष और लोकपाल के गठन की मांग के साथ राजनीति में पहला कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल इस वक्त खुद भ्रष्टाचार के आरांेपो से घिरे पड़े है और उनपर ताजातरीन आरोप लगाते हुये उनके ही मंत्रीमण्डल के बर्खास्त मंत्री कपिल मिश्रा ने देश की राजनीति में सनसनी लाने की कोशिश की है लेकिन खबर का असर देखकर कहीं भी यह नही लग रहा है कि देश की जनता ने इसे बहुत ज्यादा तवज्जों दी हो। हांलाकि देश की मीडिया ने इसे हाथोंहाथ लिया है और कुछ खबरिया चैनलों ने तो खबर का विश्लेषण करने के नाम पर अपनी अदालत सजाते हुये केजरीवाल को राजनैतिक अपराधी घोषित कर उनके लिऐ सजा भी मुर्करर कर दी है लेकिन यह सारा क्यों व किसके इशारे पर हो रहा है और प्रायोजित खबरों के इस दौर में इलैक्ट्रानिक मीडिया व प्रिंट मीडिया का एक बड़ा हिस्सा किसकी भाषा बोल रहे है, यह सब जानते है। बहुत ज्यादा लंबा समय नही हुआ जब भ्रष्टाचार के खिलाफ धरने पर बैठे अन्ना के आंदोलन की कमान केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण व अन्य युवा चेहरों ने संभाली थी और तत्कालीन केन्द्र की यूपीए सरकार समेत भाजपा अथवा अन्य किसी क्षेत्रीय दल को यह उम्मीद नही थी कि इस आंदोलन की परणीति एक ऐसे राजनैतिक दल के रूप में होगी जो राजनीति में शुचिता व पारदर्शिता के सवालों को खड़ा कर देश भर के युवाओं को अपनी ओर आकृर्षित करने में सफल होगा। इसे आप के कार्यकर्ताओं की राजनैतिक लगन व निष्ठा ही कहा जायेगा जो लगभग चार वर्ष पूर्व अस्तित्व में आये एक राजनैतिक दल ने न सिर्फ पहले ही झटके में चुनाव जीतकर सरकार बनाने का दावा किया बल्कि सरकार गठन के बाद बेवजह के सुलह-समझौतों व सदन में बहुमत साबित करने के लिऐ आजमाये जाने वाले दांवपेंचों से बचने के लिऐ दोबारा चुनावों के माध्यम से जनता की बीच जाने का साहस किया। अपनी पहली ही परीक्षा में पूरे नम्बरों से पास हुई आम आदमी पार्टी जब पहली बार लोकसभा चुनावों के मैदान में उतरी तो सीमित संसाधनों व कमजोर संगठन के बावजूद उसकी धूम पूरे देश में सुनाई दी और भाजपा द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री पद के अहम् दावेदार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव मैदान में ताल ठोक केजरीवाल ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी जिसके चलते मीडिया ने उन्हें हाथोंहाथ लिया और राजनीति में नया होने के बावजूद उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाने लगा। हांलाकि इन चुनावों में आम आदमी पार्टी के कुल चार ही सांसदों को कामयाबी मिली और केजरीवाल को भी जनापेक्षाओं के अनुरूप समर्थन नही मिला लेकिन इसके कुछ ही समय बाद दिल्ली प्रदेश में हुये विधानसभा चुनावों के दौरान केजरीवाल ने एक बार फिर खुद को साबित किया। वर्तमान में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के साथ ही साथ पंजाब में मुख्य विपक्षी दल है तथा राजस्थान व गुजरात समेत कई अन्य राज्यों में खड़ा होता दिख रहा आम आदमी पार्टी का संगठन स्वतः स्फूर्त तरीके से कई प्रदेशों में नगर निगम व पंचायत चुनावों के माध्यम से सत्ता के शीर्ष पर काबिज राजनैतिक दलों को चुनौती देता दिख रहा है। यह ठीक है कि दिल्ली के तख्त पर काबिज आम आदमी पार्टी अभी पिछले ही दिनों अपने शासन वाले प्रदेश में एमसीडी का चुनाव बुरी तरह हारी है और इस चार साल के राजनैतिक जीवन में उसे कई तरह के आरोंप-प्रत्यारोंप का सामना भी करना पड़ा है लेकिन एमसीडी चुनावों में मिली हार के बाद केजरीवाल द्वारा ईवीएम मशीनों पर लगाये गये आरोंपो को देश की जनता ने गंभीरता से लिया है तथा इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि एमसीडी चुनावों के नतीजे सामने आने के बाद कुछ चुनावी क्षेत्रों में पकड़ी गयी गंभीर तकनीकी खामियों को लेकर न्यायालय की ओर रूख करने वाली आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर देश के प्रधानमंत्री व केन्द्र के साथ ही कई राज्यों की सत्ता पर काबिज एक राजनैतिक दल को सबूतों के साथ कठघरें में खड़ा करने के लिऐ प्रयासरत् है। इन हालातों में केजरीवाल पर लगाये जाने वाले भ्रष्टाचार के आरोंप तथा इन आरोंपो के खुलासे के तुरन्त बाद सूचना-संचार के विभिन्न माध्यमों से उनपर हमलावर होते दिखते भाजपा के तमाम कार्यकर्ता व मोदी समर्थक इस तथ्य को साबित करते है कि आम आदमी पार्टी के छोटे राजनैतिक कद के बावजूद केन्द्र सरकार व देश के तमाम राज्यों की सत्ता पर काबिज होने के इरादे के साथ आगे बढ़ रही भाजपा केजरीवाल से डरी हुई है और वह ऐसा कोई मौका नही चूकना चाहती जिसमें अरविंद केजरीवाल या आम आदमी पार्टी के चरित्र हनन की थोड़ी भी गुंजाइश हो। अगर हम थोड़ी देर के लिये यह भूल भी जाय कि अरविंद केजरीवाल पर आरोंप लगाने वाले कपिल मिश्रा की माताजी इन दिनों भाजपा की राजनीति में जरूरत से ज्यादा सक्रिय है तो भी यह सवाल अपनी जगह कायम रहता है कि कपिल मिश्रा को मंत्री परिषद से हटाये जाने के बाद ही एकाएक यह क्यों याद आया कि एक दिन केजरीवाल ने उनके सामने दो करोड़ रूपये की रिश्वत ली थी और अगर यह सब कुछ भाजपा के नेताओं व केन्द्र सरकार के शीर्ष पदों पर काबिज कुछ नामचीन नेताओं की शह पर नही चल रहा तो फिर भाजपा के लोगों को केजरीवाल को बेईमान साबित करने की इतनी जल्दीबाजी क्यां है कि इस घटनाक्रम के सामने आते ही केजरीवाल को अपराधी घोषित कर उनके लिये सजा के ऐलान का सिलसिला न सिर्फ शुरू हो गया है बल्कि कुछ लोग एक मुहिम की तर्ज पर आम आदमी पार्टी को तोड़ने की कोशिशों मे जुट गये है। मजे की बात यह है कि राजनीति के इस खेल में कांग्रेस या अन्य कोई भी विपक्षी दल केजरीवाल के साथ खड़ा नही दिख रहा और केजरीवाल द्वारा केन्द्र सरकार पर लगाये गये तमाम आरोंपो से सहमत होने या फिर इस तरह के आरोंपो में केन्द्र सरकार को घेरने की कोशिशों में असफल रहने के बावजूद कोई भी विपक्षी नेता या राजनैतिक दल यह नही चाहता कि केजरीवाल अपनी इस मुहिम को आगे बढ़ाये। अगर हालातों पर गौर करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल सत्तापक्ष ही नही बल्कि विपक्ष के नेताओं को भी अपने राजनैतिक भविष्य के लिये खतरा दिखाई दे रहे है और उनके द्वारा जनचर्चाओं का विषय बनाया गया जनलोकपाल विधेयक उन तमाम नेताओं को अपनी राजनीति के ताबूत में कील ठोकता हुआ सा लगता है जो देश की आजादी से वर्तमान तक सिर्फ भ्रष्टाचार के बूते ही अपनी राजनीति की दुकान चला रहे है। कितना आश्चर्यजनक है कि भारत की राजनीति में देश की आजादी के बाद यह पहला मौका है जब कोई राजनैतिक दल अपने गठन के चार-पांच वर्षों के अंतराल में ही राष्ट्रीय राजनैतिक दल के रूप में जनस्वीकार्यता पाकर एक व्यापक जनाधार के साथ सत्ता के शीर्ष पदो पर काबिज नेताओं से राजनैतिक शुचिता व ईमानदारी की अपेक्षा कर रहा है लेकिन अफसोसजनक है इस पूरे आंदोलन के प्रणेता अन्ना हजारे भी अरविंद की नीयत पर शक कर रहे है और केजरीवाल को सुलह-सफाई का कोई मौका दिये बगैर ही मुजरिम करार दे दिया गया हैं।

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