असफल चुनावी प्रबन्धन के कारण सत्ता की दौड़ से बाहर होती नजर आ रही है भाजपा।
दिन व दिन रोचक होते जा रहे चुनावी मुकाबले में भाजपा के बड़े नेताओ व केन्द्रीय मन्त्रियों के आगमन का दौर शुरू हो गया है और यह साफ दिख रहा है कि अरूण जेटली जैसे बड़े नेता व केन्द्र सरकार के वित्त मन्त्री अपने हवाई दौरे से जनता पर कोई विशेष प्रभाव छोड़ने में असफल रहे है। इसलिऐं भाजपा के नीति निर्धारक इस चुनावी जंग को तेजी देने के लिऐ स्मृति ईरानी व हेम मालिनी जैसे बड़े नामो को मैदान में उतारने का मन बना चुके है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि सक्रिय राजनीति में कोई विशेष योगदान न होने के बावजूद फिल्मी पर्दे से जुड़े रह इन दोनो ही कलाकारों के उत्तराखण्ड आगमन पर ठीकठाक भीड़ जुटने की सम्भावना है और हरीश रावत के हर रोड शो में उमड़ रहे जनसैलाब का जबाब देने के लिऐ भाजपा के रणनीतिकार इस टोटके को सही भी मान रहे है लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा का यह दाॅव उन तमाम स्थानीय कार्यकर्ताओं व संघ कैडर को भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उन उम्मीदवारों के पीछे लामबन्द कर पायेगा जो हाल ही हाल में भगवा चोला पहनकर चुनावी मोर्चे पर सरकार बनानेे की जंग लड़ रहे है। हाॅलाकि भाजपा के रणनीतिकार यह मानकर चल रहे है कि चुनाव पर नजदीकी से नजर रख रहे संघ के लोग इस बचे हुऐ सप्ताह में सीमित प्रचार कर रहे भाजपा के कार्यकर्ताओ को सक्रिय करने में कामयाब हो जायेंगे और कुछ स्थानो पर बहुत ही कमजोर या फिर मुकाबले से बाहर दिख रही भाजपा एक बार फिर आमने सामने की लड़ाई लड़ने की स्थिति में आ जायेगी लेकिन हालात यह इशारा कर रहे है कि भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कई प्रत्याशियों को भी भाजपा के प्रति समर्पित माने जाने वाले इन कार्यकर्ताओं पर सन्देह है इसलिऐं प्रचार के लिऐ साथ आने को चल रहे रूठने मनाने के दौर के बावजूद इन तमाम प्रत्याशियों ने चुनाव से सम्बन्धित तमाम अहम् जिम्मेदारियाॅ चुनाव लड़ाने में माहिर मानी जाने वाली भाजपाई टीम की जगह अपने ही लोगो को देना ज्यादा सुरक्षित समझा है। नतीजतन संघ की बैठको व कैडर के हिसाब से खुद को महत्वपूर्ण मानने वाले तमाम तुनकमिजाज लोग इसे अपनी बेज्जती मानकर चल रहे है और भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ताओ की एक बड़ी लाॅबी में निराशा का माहौल है। यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओ ने इस बार संगठनात्मक स्तर पर होने वाले प्रचार की तमाम अहम् जिम्मेदारी अपने हाथो में रखते हुऐ चुनावी विज्ञापन आदि अंाबटित करने के लिऐ राजधानी स्तर पर विज्ञापन ऐजेन्सियोें को कार्य आंबटित कर दिया है और अपनी नीतियों व कमीशन के खेल में इन विज्ञापनदाता ऐजेन्सियों द्वारा डीएवीपी द्वारा निर्धारित न्यूनतम् दर से भी कम पर विज्ञापन जारी करने व मोटा कमीशन लेने के खेल ने चुनावों के दौरान भाजपा को मिलने वाली माउथ पब्लिसिटी से भी महरूम कर दिया है। डीएवीपी की शर्तो में मनचाहे परिवर्तन कर छोटे समाचार पत्रो को बन्द करने की रणनीति पर काम कर रही नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के फैसले से पहले से ही नाराज तमाम सप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक समाचार पत्रो के समूहो के अलावा सीमित दायरें तक असर रखने वाले लगभग सभी छोटे दैनिक व सांध्य दैनिक समाचार पत्र भाजपा की इस चुनावी रणनीति से हैरान व खासे नाराज बताये जाते है और कोई बड़ी बात नही है कि अगर तथाकथित रूप से बुद्धिजीवी माने जाने वाले पत्रकारों के इस तबके ने भाजपा के विरोध का फैसला ले लिया तो हरीश रावत की बल्ले-बल्ले हो सकती है। हाॅलाकि काॅग्रेस की विज्ञापन नीति भी अभी तक खुलकर सामने नही आयी है और न ही काॅग्रेस संगठन द्वारा सम्पूर्ण चुनाव को ध्यान में रखते हुऐ अभी तक कोई विज्ञापन जारी किया गया है लेकिन अपने बात करने के अन्दाज व व्यवहारिकता से सबको खुश रखने वाले हरीश रावत से छोटे समाचारपत्रो को ज्यादा उम्मीदें नजर आ रही है या फिर वह स्थानीय स्तर पर अपने सम्बन्धो व भविष्य के हितो को देखते हुऐ निर्दलीय प्रत्याशियों को मजबूती देने में जुट गये है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि काॅग्रेस में तोड़फोड़ कर बागी प्रत्याशियों के बूते चुनावी जीत हासिल करने की रणनीति बना रही भाजपा को इस बार अपनी ही गलतियों के चलते बड़ा खामियाजा भुगतान पड़ सकता है और तथाकथित सर्वेक्षणो या फर्जी आॅकड़ो के जारिये भाजपा को चुनावी दौड़ मे आगे दिखाने का खेल इस बार भी भाजपा के बड़े नेताओ को भारी पड़ सकता है लेकिन मजे की बात यह है कि प्रदेश स्तर पर सुलझे हुऐ नेताओ की एक बड़ी फौज होने के बावजूद भी भाजपा का कोई सिफहसलाहार अपने नेताओ को इस बारे में किसी भी तरह की सलाह देने की हिम्मत नही जुटा पा रहा या फिर यह भी हो सकता है कि खुद को मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर मानकर चल रहे यह तमाम नेता इस बार भाजपा के बड़े नेताओ को सबक सिखाने व चुनावों के दौर में पार्टी के टिकटो पर अतिक्रमण करने वाले बागी नेताओ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का मन बना चुके है। हो सकता है कि आने वाले हफ्तो में इन हालातों में कुछ सुधार हो और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावित दौरे से पहले इन तमाम खामियों को दुरूस्त करने की कोशिश भाजपा के रणनीतिकारों द्वारा की जाये लेकिन कहीं ऐसा न हो कि तब तक बहुत देर हो जाये।
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