योग, प्रयोग और संयोग की सरकार। | Jokhim Samachar Network

Friday, April 26, 2024

Select your Top Menu from wp menus

योग, प्रयोग और संयोग की सरकार।

आयोजनों के ज़रिये जनता से प्राप्त करों की कमाई को अन्धाधुन्ध तरीके से खर्च कर एक बार फिर छवि निमार्ण की दिशा में आगे बढ़ती नज़र आ रही है भाजपा।

कुछ मिनटों के आयोजन के लिऐ देश की गरीब जनता का करोड़ो रूपया लुटा देने के बाद अगर कहीं कुछ हासिल होने की उम्मीद नज़र आ रही होती तो शायद हम विश्व योग दिवस (21 जून) के अवसर पर भारी तामझाम के साथ देश के प्रधानमन्त्री की मौजूदगी में किये गये इस कार्यक्रम की आवश्यकता पर उंगली नही उठाते और यह मान लिया जाता कि अपनी राजनैतिक आवश्यकताओं को देखते हुऐ भाजपा ने प्रधानमन्त्री के स्वाग्त में जो जनसैलाब एकत्र किया वह वक्त की जरूरत के हिसाब से सही था लेकिन इस योग दिवस के अवसर पर स्थानीय जनता को रात-बे -रात रोककर तथा कार्यक्रम की सफलता को सुनिश्चित करने के लिऐ सरकारी मशीनरी को दौडा़कर जिस तरह का प्रयोग किया गया उससे तो यह साफ ज़ाहिर होता है कि सत्ता की रौ में बौराये भाजपा के नेताओ को जन सामान्य के हितो की कोई चिन्ता नही है या फिर पूर्ण बहुमत का दम्भ सत्ता पक्ष के सर चढ़कर कुछ इस तरह बोल रहा है कि सरकार अपनी मनमर्जी पर उतर आयी है। हाॅलाकि देश के प्रधानमन्त्री का किसी क्षेत्र में जाना या आयोजन में शामिल होना उस क्षेत्र व वहाॅ की जनता के लिऐ सम्मान का विषय होता है और उत्तराखण्ड की अतिथि प्रेमी जनता ने प्रधानमन्त्री के इस कार्यक्रम को पूरा सम्मान देकर यह साबित करने की कोशिश भी की कि राजनैतिक विरोध व सरकार के काम करने के तरीके से असहमति के बावजूद पद का सम्मान व गरिमा अपने स्थान पर है लेकिन सरकारी तन्त्र उत्तराखण्ड की जनता के इस “अतिथि देवो भवः” के सिद्धान्त को उसकी मजबूरी समझ बैठा और सुरक्षा एंव व्यवस्था से जुड़े पहलुओ के नाम पर आम आदमी को जमकर ठगा गया। वीआईपी आगमन के नाम पर पिछले काफी अन्तराल से चल रहे रिर्हसलो के दौरान घन्टो रोका जाने वाला सड़क यातायात तथा सुरक्षा व्यवस्था को चकचैबन्द करने के नाम पर किसी भी वक्त सील की जा सकने वाली किसी भी क्षेत्र की सीमाओं के मामले में पुलिस को मिले असीमित अधिकार यह साबित करते है कि मात्र वाहनो के सर से लाल बत्ती हटाने मात्र से वीआईपी कल्चर समाप्त हुआ नही माना जा सकता और न ही यह माना जा सकता है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं के माध्यम से जनता के बीच से चुने गये जनसेवक या लोकसेवक सत्ता के शीर्ष को हासिल करने के साथ ही राजशाही अथवा सामन्तशाही की तरह व्यवहार नही करते लेकिन इस सबके बावजूद स्थानीय जनता इन तमाम विपदाओं को झेलती है और यह माना जा सकता है कि व्यवस्थाओं व जनसक्रियता से प्रसन्न होकर नेता या जनप्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर विकास को लेकर कुछ नयी घोषणाऐं करेगा। अफसोसजनक है कि यह परम्परा भी धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है और अपनी मौज- मस्ती व प्रचार तक सीमित रहने वाले इन तथाकथित लोकसेवको के स्वागत् कार्यक्रमों अथवा अन्य आयोजनो के दौरान जनता को बेवकूफ बनाने के लिऐ फर्जी़ आकड़ो व झूठे दस्तावेजा़े का सहारा लेकर मतदाताओं को सब्ज़बाग दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में आयोजित इस तथाकथित योग शिविर को लेकर भी कुछ ऐसा ही है और इस कार्यकाल में प्रधानमन्त्री की भागीदारी तय होने के साथ ही इसे अवस्मरणीय स्वरूप देने की दिशा में प्रारम्भ की गयी कोशिशों के तहत यह स्पष्ट दिखता है कि सरकार योग को आध्यात्म से जोड़ते हुऐ न सिर्फ इस बहाने धार्मिक पयर्टन बढ़ने की बात करने लगी है बल्कि बातो ही बातो में आम आदमी को यह भरोसा भी दिलाया जा रहा है कि प्रधानमन्त्री के इस कार्यक्रम के बाद उत्तराखण्ड को योग की दिशा में वैश्विक मानचित्र पर अलग पहचान मिलेगी तथा पयर्टन को उद्योग का दर्जा़ दे चुकी राज्य सरकार इस अवसर का उपयोग कर स्थानीय स्तर पर आय व रोज़गार के अतिरिक्त संसाधन जुटाने में सफल होगी। यह तर्क मनमोहक तथा आशान्वित करने वाला जरूर है लेकिन सवाल यह है कि क्या जा़ेर-जबरदस्ती के जुगाड़ और चटाई के लालच से एकत्र की गयी एक भीड़ के आगे माननीय प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये पैतीस-चालीस मिनट के योग प्रदर्शन व भाषण मात्र के ज़रिये इस प्रदेश को अध्यात्मिक पयर्टन की दिशा में एक नई पहचान दी जा सकती है और बिना अवस्थापना सुविधाऐं जुटाये देश-विदेश के पयर्टको को किस प्रकार उत्तराखण्ड आने व यहीॅ लम्बे समय तक रूकने के लिऐ मजबूर किया जा सकता है। सरकार का मानना है कि पर्यटन को रोज़गार से जोड़ते हुऐ “होम स्टे” जैसी योजनाओ को बढ़ावा देकर योग, आध्यात्म व हीलिंग सेन्टरो की स्थापना आदि के माध्यम से रोजगार के नये संसाधन जुटाये जा सकते है तथा देश-विदेश के पर्यटको को इस ओर आकृर्षित करने के लिऐ उत्तराखण्ड की देवभूमि को योगभूमि के रूप में भी प्रचारित करने के लिऐ माननीय नरेन्द्र मोदी के आगमन व इस आयोजन से जुड़ी खबरों को प्रमुखता व प्राथमिकता देकर एक नये अध्याय की शुरूवात की जा सकती है लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ प्रचार के ज़रिये किसी व्यवसाय को स्थापित किया जा सकता है या फिर तीस-चालीस मिनट के एक कार्यक्रम भर से यह साबित किया जा सकता है कि उत्तराखण्ड की यह पावन धरती योग व इससे जुड़ी अन्य प्राकृतिक चिकित्सा के लिऐ अनुकूल है। हमने देखा और महसूस किया है कि योग और आर्युवेद को देश के मध्यमवर्ग के बीच अलग पहचान देने वाले बाबा रामदेव ने अपने कारोबार को नई ऊचाईयाॅ देने के शुरूवाती दौर में कई योग प्रशिक्षकों को मैदान में उतारा तथा उस वक्त यह माना व प्रचारित किया गया कि इन योग प्रशिक्षकों के दम पर उत्तराखण्ड को एक नई पहचान व स्थानीय युवाओं को रोज़गार के नये संसाधन मिलेंगे लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि इन दो दशकों में लाला रामदेव बन चुके योगगुरू का कारोबार नित् नई ऊचाईयाॅ छू रहा है जबकि इन तथाकथित योग प्रशिक्षकों का कहीं कोई चर्चा ही नही है और न ही एक अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तित्व बन चुके रामदेव से उत्तराखण्ड की स्थानीय जनता को किसी भी तरह का अन्य फायदा ही हुआ है। ठीक इसी तरह मोदी के नाम से प्रचारित इस सहज योग के माध्यम से न जाने कितने ठेकेदारो और सत्ता के दलालो का बेड़ा पार होने की सम्भ्भावना है और संसाधनो की लूट व व्यवस्थाओं के इन्तजा़मात के नाम पर नौकरशाहों की फौज भी बिना गड़बड़झाला किये मानने वाली नही है लेकिन इस सारी जद्दोज़हद में ठगा सिर्फ आम आदमी ने ही जाना है और उसे बताये गये योग के फायदे व योग की इस सहज प्रक्रिया के व्यवसायीकरण से उत्तराखण्ड की जनता को मिलने वाले संभावित लाभ की लम्बी फहरिस्त के आधार पर यह कहा जाना मुश्किल नही है कि बयानवीर प्रधानमन्त्री मोदी की टीम उनके आगमन से पूर्व ही अपने उद्देश्यो को अंजाम तक पहुॅचाने में कामयाब रही है। योग दिवस के अवसर पर हुऐ इस एक दिवसीय आयोजन में होने वाले खर्च को लेकर प्रदेश सरकार का बयान है कि इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु खर्च किया गया लगभग तीन-साढ़े तीन करोड़ रूपया केन्द्र के आयुष मन्त्रालय से प्रदेश सरकार को प्राप्त हो चुका है लेकिन अगर वास्तविक खर्च पर नज़र डाले तो प्रदेश सरकार इन पिछले कुछ दिनो में इससे कहीं ज्यादा अधिक पैसा चन्द अखबारों व टीवी चैनलो को योग दिवस के इस कार्यक्रम हेतु प्रचार-प्रसार करने के नाम पर दिये जाने वालें विज्ञापनो में खर्च कर चुकी है और इस खर्च के साथ ही इस आयोजन में दिन-रात एक कर जुटी सरकारी मशीनरी व सुरक्षा कर्मियों का वेतन भी जोड़ लिया जाये तो यह रकम कई गुणा बढ़ जाती है लेकिन सरकारी संसाधनो पर मौज लेने वाली मानसिकता को इन तमाम तथ्यों की चिन्ता ही कहाॅ है और सरकार चलाने का अर्थ येन-केन-प्रकारेण अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने से जोड़कर चलने वाली राजनैतिक विचारधारा को इन तथ्यों से क्या लेना-देना कि बेवजह के इस आयोजन में चन्द मिनटो के दिखावे के लिऐ खर्च की गयी बेपनाह दौलत से सुविधाओ के आभाव को झेल रहे पहाड़ी जनजीवन के लिऐ कितने स्कूल, अस्तपताल, सड़क या पेयजल व्यवस्थाओं का निर्माण किया जा सकता था। मज़े की बात यह है कि सरकार यह भी अच्छी तरह जानती है कि इस पहाड़ी राज्य में सड़क,स्वास्थ्य, शिक्षा व पेयजल जैसी अवस्थापना सुविधाओ को पटरी पर लाये बिना पलायन को रोकना व पर्यटक को पहाड़ पर चढ़ा पाना अंसभव है लेेकिन इस संदर्भ में चलायी जाने वाली तमाम योजनाओ व परियोजनाओ के लिऐ धन की कमी का रोना रोने वाली सरकार राजस्व की प्राप्ति के लिऐ दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रो व देवस्थलो के नज़दीक शराब की दुकानो को खोलने पर जा़ेर देते हुऐ जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा अपने नेताओ के स्वागत् व इस संदर्भ में किये जाने वाले आयोजनो में उडा़ रही है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *