पहाड़वासियों को नहीं मिल रहा लाभ
.देहरादून। उत्तराखंड में पलायन रोकने और पहाड़ पर रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने होमस्टे योजना की शुरुआत की थी। लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी योजना घरातल पर नहीं उतरी है। इसकी वजह कुछ और नहीं बल्कि योजना के लिए बनाये गए सरकार के तमाम नियम हैं जो इसके आढ़े आ रहे हैं। इसलिए अभी भी योजना पर होमवर्क ही किया जा रहा है। दरअसल, सरकार की इस योजना के लिए बैंक लोन लेने के लिए बनाये गए मानक ऐसे है कि लोगों को ऋण नहीं मिल पा रहा है। लोगों का कहना है कि होम स्टे योजना के तहत सरकार ने कहा था कि ग्रामीण अपने गांवों के पुश्तैनी घरों को व्यवस्थित या फिर पर्यटकों के रहने लायक बनाया जाएगा। इससे शहरों से दूर प्रकृति की तलाश करते पर्यटकों को समय बिताने के लिए एक बेहतर विकल्प मिलेगा और क्षेत्रवासियों को रोजगार मिलेगा। लेकिन आलम ये है कि होम स्टे योजना के लिए ग्रामीण अधिकारियों के चक्कर काट-काटकर परेशान हो गये हैं।
पलायन रोकने और पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर खुद की पीठ थपथपाने वाली सरकार भी आज इस बात को स्वीकार रही है कि होम स्टे योजना के धरातल पर उतरने में व्यावहारिक तौर पर काफी दिक्कतें हैं। पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने हामी भरते हुए कहा कि कुछ दिक्कतें जरूर इस योजना के धरातल पर उतरने पर आ रही है लेकिन सरकार उन सभी खामियों को दूर करने के लिए प्रयासरत है।
दिलीप जावलकर ने बताया कि लाभार्थियों को होम स्टे योजना के लिए बैंकों से लोन मिलने में और अन्य मानकों में जो दिक्कतें आ रही है उनका जल्द से जल्द स्थाई तौर पर समाधान निकाला जा रहा है और जल्द ही इसका असर धरताल पर भी देखने को भी मिलेगा।
बता दें कि इसके देहरादून में होमस्टे के नाम पर कई भव्य कार्यक्रम भी किये गए लेकिन जिस तरह से होमस्टे के नाम पर घोस्ट विलेज को गुलजार करने का दावा किया गया था वो पहाड़ों पर पहुंचने से पहले ही हवा हो गया है।