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Friday, April 26, 2024

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लोकप्रियता के पैमाने पर

गांधी जयंती पर विशेष
गांधी और सुभाष के इस देश में जनता जनार्दन को साथ जोड़ते हुऐ अपने प्राणों की आहुति देने वाले या फिर स्वतंत्रता के आन्दोलन में अपना सर्वस्व निछावर करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की एक लम्बी सूची है और देश की जनता को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के एक लंबे संघर्ष के दौरान इनमें से किसी एक के भी योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता लेकिन राष्ट्रपिता की उपाधि से सुशोभित मोहन दास करम चंद गांधी को इन सबसे अग्रणी भूमिका में रखते हुऐ सारा देश ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम मुल्कों के हुक्मराॅन भी गांधी जी को विशेष सम्मान के साथ याद करते है और उनके आदर्शो, सिद्धान्तों व एक लंबे आन्दोलन का नेतृत्व करने के जज्बे को लेकर हमेशा ही चर्चाऐं होती रहती है। शायद यही वजह है कि उनके जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में इसी दिन जन्मी एक अन्य हस्ती का जिक्र कम ही हो पाता है और ऐसा महसूस होता है कि आजादी के बाद देश में बनी कांग्रेस के नेतृत्व वाली तमाम सरकारों ने गरीब परिवार में जन्में लाल बहादुुर शास्त्री को उनकी योग्यता एंव राजनैतिक कद के हिसाब से पूरी तवज्जों नहीं दी है। हांलाकि सरकारी तौर पर आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान गांधी के साथ ही साथ लाल बहादुर शास्त्री को भी पूरा सम्मान दिया जाता है और हमारे नौनिहाल स्वतंत्रता संग्राम के तमाम अन्य नायकों की तरह शास्त्री जी को भी पूरे सम्मान के साथ याद करते है फिर भी विचारधारा विशेष से जुड़े कुछ लोगों को शिकायत है कि देश की आजादी के बाद लंबे समय तक राजसत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के कुछ सर्वेसर्वा अपने नाम के आगे जुड़े गांधी उपनाम का फायदा उठाने के लिऐ राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचन्द्र गांधी के जीवनकाल से जुड़ी तमाम उपलब्ध्यिों को विशेष तवज्जों देते रहे और इसके लिऐ उनके नाम की विभिन्न योजनाऐं चलाने का ढ़ोंग करते हुऐ उन्होंने आम आदमी के दिलोदिमाग में रची-बसी गांधी की तस्वीर को ज्यादा स्पष्ट करने का पूरा प्रयास किया। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि देश की आजादी के बाद कांग्रेस को एक राजनैतिक पहचान देने के विरोधी रहे राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद्र गांधी की उपलब्धियों व लोकप्रियता का कांग्रेस ने हर दृष्टिकोण से फायदा उठाया और देश की आजादी के बाद अस्तित्व में आने वाली तमाम जनहितकारी सरकारों को सरकार बनाने के लिऐ आवश्यक बहुमत जुटाने की दिशा में गांधी के नाम का सहारा भी मिला लेकिन यह भी सत्य है कि इस दौरान विकास कार्यो को मूर्त रूप देने व सरकारी या गैरसरकारी स्तर पर चलने वाली तमाम योजनाओं को जनता के बीच लाते वक्त गांधी जी के सिद्धान्तों व नीतियों पर खरा उतरने की भी ईमानदार कोशिशें की गयी। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि देश की आजादी के आन्दोलन के दौरान या फिर आजाद भारत व वैश्विक परिवेश में गांधी जी को जो भी आदर या प्राथमिकता मिली वह उसके पूरी तरह हकदार थे और इस तथ्य को कई उदाहरणों के साथ साबित किया जा सकता है कि अपनी राजनैतिक जरूरतों को पूरा करने के लिऐ गांधी जी की नीतियों, सिद्धान्तों या जीवनशैली की खिल्ली उड़ाने वाली कई बड़ी राजनैतिक हस्तियों व विचारधाराओं ने अपनी जरूरत या जनता के रूख को देखते हुऐ न सिर्फ मजबूरीवश उनके आदर्शो व कार्यशैली को पूरी तवज्जों दी बल्कि गांधी दर्शन को समझने व उन्हें अपने जीवन में उतारने के प्रयासों के चलते उनका अनुसरण कर कई अन्य जाने माने लोग आगे चलकर महान हस्तियों के रूप में पहचाने गये जबकि गांधी जी का सैद्धान्तिक विरोध करने वाले लोग तथा भारत-पाक बंटवारे का आरोंप उनपर मढ़कर देश को कमजोर करने की साजिश रचने की तोहमत गांधी के सर रखने वाली तमाम विचारधाराऐं समय के साथ-साथ यह मानने पर विवश हुई कि कई तरह के किन्तु-परन्तु के बावजूद देश की आजादी के आन्दोलन के दौरान व उसके बाद गांधी ही एकमात्र ऐसी ताकत थे जो संकट की हर घड़ी में देश को एकजुट रखने या फिर अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिऐ जनसेलाब को तैयार कर पाने में सफल हुऐ। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि गांधी का विराट व्यक्तित्व स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान व उसके बाद मिली उपलब्धियों तक ही सीमित नही था बल्कि वर्तमान परिस्थितियों में भी देश व दुनिया के तमाम कोनो में होने वाले तमाम जनान्दोलनों के दौरान भी गांधी जी की नीतियाँ व लक्ष्य की प्राप्ति के लिऐ अपनाया जाने वाला उनका आक्रामक रवैय्या एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और यहाँ पर यह कहने में कोई हर्ज नही है कि गांधी के सिद्धान्तों की यहीं जीत, ताकत एवं कूटिलता के दम पर सत्ता हासिल करने वालों व उसपर कब्जेदारी बनाये रखने की मानसिकता के साथ जनता की आवाज दबाने की इच्छा रखने वाली मानसिकता को गांधी का विरोध करने के लिऐ बाध्य करती है। शायद यही वजह है कि सत्ता की राजनीति करने वाली अनेक राजनैतिक विचारधाराऐं अपनी जरूरत व समझ के आधार पर गांधी जी के जीवन पर आधारित तमाम पुस्तकों व संस्मरणों को आधार बनाकर हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कई देशों की जनता के दिलों में आज भी जीवित गांधी का विरोध करने का मार्ग तलाशने का असफल प्रयास करती हैं। नतीजतन अपने सफल राजनैतिक जीवन एवं अनुकरणीय विचारों के बावजूद गांधी शैली व उनके विचार आज भी वाद-विवाद की विषय-वस्तु है और गांधी का विरोधी पक्ष पूरी शिद्धत के साथ यह कोशिश करने में जुटा हुआ है कि वह किसी भी कीमत पर देश या दुनिया की जनता के दिलों में रचे-बसे गांधी दर्शन की तस्वीर को कुछ धुधँला करने में कामयाबी हासिल करें। यह माना जा सकता है कि देश और दुनिया की बहुसंख्य जनता के दिलोदिमाग पर राज करने वाले गांधी जी का पारिवारिक जीवन बहुत ज्यादा सफल नही था और उनकी मृत्यु के बाद उनके निकटवर्ती परिजनों या परिवारजनों के बीच से कोई भी ऐसा सफल चेहरा आगे नही बढ़ा जो उनकी विरासत को आगे बढ़ा सके लेकिन उनके जीवन के इस पक्ष को उनकी कमजोरी की तरह नही देखा जा सकता और न ही यह माना जा सकता है कि अपने इर्द-गिर्द रहने वाले तमाम लोगों के अलावा तत्कालीन समाज के लगभग हर वर्ग की समस्याओं के लिऐ चिन्तित रहने वाले गांधी जी अपने परिवार को लेकर संवेदनशाील नही रहे होंगे या फिर उनके द्वारा यह कोशिश नही की गयी होगी कि उनकी सन्तति उनके दिखाये मार्ग का अनुसरण करें। खैर वजह चाहे जो भी हो लेकिन यह कहने में कोई हर्ज नही है कि उनके हर कदम में कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी दिखने वाली कस्तूरबा गांधी जैसी पत्नी के बावजूद गांधी जी का पारिवारिक जीवन बहुत ज्यादा सफल नही रहा या फिर देश और दुनिया के हितों के लिऐ समर्पित गांधी जी ने अपने परिजनों के हितों व पारिवारिक सुख को राष्ट्र हित में कुर्बान कर दिया। ऐसे महान व्यक्तित्व पर अगर यह आरोंप लगाया जाये कि उसने एक परिवार विशेष को राजनैतिक लाभ देने के लिऐ किसी षणयंत्र के तहत अपना नाम दिया या फिर देश की आजादी के बाद भारत की सत्ता पर काबिज विचारधारा ने अपने राजनैतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिऐ गांधी के कद को इतना बड़ा बना दिया कि कोशिशों के बावजूद किसी भी अन्य राजनैतिक चरित्र को उनके समकक्ष खड़ा ही नही किया जा सके, तो यह गांधी के सम्पूर्ण राजनैतिक जीवन एवं सिद्धान्तों से एक बेमानी होगी और यहाँ पर यह कहने में कोई हर्ज नही है कि गांधी के जीवन सिद्धान्तों को नकारने वाले कई तथाकथित विचारक व राजनैतिक विचारधाराऐं समय-समय पर इस तरह की असफल कोशिश करती रही है जिसके चलते गांधी जयन्ती जैसे तमाम अवसरों पर देश की सत्ता पर लंबे समय तक काबिज रही कांग्रेस पर गांधी के राजनैतिक दर्शन को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने एवं अन्य समकालीन महापुरूषों को अनदेखा करने के आरोंप लगते रहे है।

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