लगातार आगे बढ़ रहे हरीश रावत के कांरवा को देखकर भाजपा बदली रणनीति।
इकलौते सवार की तरह चुनावी रण में घूम-घूम कर विपक्ष को त्रस्त करने में कामयाब दिख रहे हरीश रावत को एक क्षेत्र विशेष में घेरकर रखने की भाजपाई कोशिश बार-बार नाकाम होती दिख रही है। इसे मुख्यमंत्री की रणनैतिक सफलता माने या फिर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का गलत अन्दाजा लेकिन यह सच है कि विपक्ष वर्तमान तक हरीश रावत की रणनीति का अन्दाजा लगाने में असफल साबित हुआ है। हाॅलाकि भाजपा ने आचार संहिता लागू होने से पहले ही सरकार विरोधी माहौल को हवा देकर चुनावी बढ़त बनाने की कोशिश की और कर्मचारियों के आन्दोलन व दायित्वों के लिऐ लालायित काॅग्रेस कार्यकर्ताओ की बड़ी भीड़ को देखकर एक बारगी ऐसा लगा कि मानो सरकार बस इसी में उलझकर रह जायेगी लेकिन हरीश रावत ने पूरी मेहनत और कुशलता के साथ हर समस्या का तार्किक समाधान निकाला। नतीजतन पीडीएफ समेत अन्य कई मुद्दो पर आमने-सामने दिखा सत्ता पक्ष व संगठन चुनावी मोर्चाे पर एकजुटता से खड़ा दिखा और सरकार व संगठन से इस्तीफा देने वाले बागी नेताओ के साथ पार्टी छेाड़कर जाने वाले कार्यकर्ताओ व संगठन के पदाधिकारियों की संख्या सीमित ही रही। यह ठीक है कि टिकट वितरण के मोर्चे पर काॅग्रेस को कई जगह बगावत का सामना करना पड़ा तथा टिकट देने में हुई चूक के चलते आर्येन्द्र शर्मा जैसे कई मजबूत दावेदार निर्दलीय रूप से मैदान में उतर काॅग्रेस के प्रत्याशियों को चुनौती देते दिखे लेकिन प्रत्याशियों के चयन के बाद अपने फैसले पर अडिग रहकर काॅग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओ को यह सन्देश देने की कोशिश भी की कि चुनाव की इस बेला में हाईकमान का आर्शीवाद उनके साथ है। शुरूवाती दौर में यह माना जा रहा था कि काॅग्रेस के कई बड़े नेताओ को तोड़ने में कामयाब रही भाजपा चुनावी मौके पर जब जनता के बीच जायेगी तो इन तमाम बड़े नेताओ के साथ ही साथ भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेताओ का आभामण्डल हरीश रावत की चारो ओर से घेराबन्दी करते हुऐ काॅग्रेस के कार्यकर्ताओ पर मानसिक दबाब डालेगा लेकिन चुनाव प्रचार व बड़ी जनसभाओ के लिऐ पूरी तरह मोदी व उनकी टीम पर निर्भर दिख रही भाजपा द्वारा इन तमाम नेताओ की भीड़ का राज्यस्तर पर कोई उपयोग नही किया गया और न ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भाजपा में एकाएक ही अवतरित हुऐ काॅग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेताओ के नामो को लेकर स्थानीय स्तर पर कोई सामजस्य बैठा पाया जिसके चलते भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता आज भी अनिश्चय की स्थिति में है और धॅुआधार प्रचार के जरिये बनती हुई बतायी जा रही भाजपा की वर्तमान सरकार में उसकी कोई रूचि नही है जबकि इसके ठीक विपरीत अपनी रणनीति का खुद ही निर्धारण कर रहे हरीश रावत के सघनता से चल रहे विभिन्न विधानसभाओ के दौरे, कार्यकर्ताओ में लगातार जान फूंक रहे है और इस चुनावी जंग में काॅग्रेसी खेमें में बड़े नेताओ की भारी कमी के बावजूद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हरीश रावत ने मतदाताओ की नब्ज पहचान ली है। यह ठीक है कि काॅग्रेस भी इन्दिरा ह्रदेश, प्रकाश जोशी, रंजीत रावत जैसे तमाम बड़े नामो का खुलकर उपयोग करने से बच रही है तथा अन्तिम दौर तक चुनाव प्रचार की बागडोर अपने ही हाथ में रखकर चलने की रणनीति पर काम कर रहे हरीश रावत ने इस बार अपने निकटवर्ती सहयोगियों व खास सिपाहसलाहारों को भी अपने प्रचार कार्यक्रमो से एक निश्चित दूरी बनाऐ रखने के आदेश दिये मालुम हेाते है लेकिन मजे की बात यह है कि इस बार यह कमी आसानी से महसूस नही की जा सकती है बल्कि ऐसा मालुम होता है कि इन तथाकथित खास लोगो को कुछ समय तक के लिऐ दूर रहने का आदेश दे हरीश रावत जन सामान्य के बीच से उत्साहित युवाओ व समर्पित कार्यकर्ताओ को इस जगह को भरने का सन्देश देना चाहते है। शायद यही वजह है कि हरीश रावत के हर रोड शो के दौरान भारी जनसैलाब उमड़ता दिख रहा है जबकि प्रोटोकाॅल से बॅधे नजर आ रहे भाजपा के तमाम केन्द्रीय मन्त्री व प्रधानमंत्री मंशा गलत ने होने के बावजूद कार्यकर्ताओ को उस स्तर पर तबज्जों नही दे पा रहे। उम्मीद नही है कि भाजपा हरीश रावत बनाम नरेन्द्र मोदी हो चुके इस चुनाव में अब किसी प्रदेश स्तरीय नेता का नाम आगे कर मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदारों को नाराज करना चाहेगी या फिर चुनाव प्रचार के लिऐ सीमित क्षेत्रो में ही नजर आ रहे प्रदेश भाजपा के तमाम बढ़े नामो को अपना दायरा बढ़ाने की सलाह राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा दी जायेगी। इस हालत में हरीश रावत के लगातार बढ़ रहे कारवा को रोकने के लिऐ भाजप क्या रणनीति बनाती है, यह देखना दिलचस्प होगा और लगातार रोचक होते जा रहे इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष के बदलने को आतुर दिख रहे बागी हालातों को किस हद तक अपने पक्ष में मोड़ पाते है, इससे ही सारा चुनावी फैसला तय होगा लेकिन हालातों के मद्देनजर एक बात तय दिखती है कि तमाम रूकावटो के बावजूद खुद को सिद्ध करने में कामयाब रहे हरीश रावत ने एक फिर यह दिखा दिया है कि वह भी राजनीति के मॅझे हुऐ खिलाड़ी है।
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