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Friday, April 26, 2024

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याचना नही, अब रण होगा

कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में फिर से त्रिकोणीय संघर्ष की उम्मीद, गाजे-बाजे के साथ नामांकन कर महेश शर्मा ने बनायी बढ़त।

(नैनीताल), कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन कर महेश शर्मा ने आज चुनावी जंग का ऐलान कर दिया और उनके इस फैसले के बाद यह तय हो गया कि कालाढूंगी विकास मंच इस लड़ाई में अहम् किरदार निभाऐगा। यूं तो काॅग्रेसी मानसिकता के माने जाने वाले महेश शर्मा के दलित नेता यशपाल आर्या से नजदीकियों के किस्से किसी से छिपे नही है और न ही उन्हे काॅग्रेस का प्रत्याशी बनाये जाने के संदर्भ में पिछले बार भी स्थानीय स्तर पर किसी तरह का विरोध हुआ था लेकिन हाईकमान से नजदीकियों के चलते एकाएक ही मैदान में आने वाले प्रकाश जोशी ने पिछली बार उनका पत्ता साफ कर दिया था और वह बिना किसी पूर्व तैयारी के निर्दलीय मैदान में उतरकर तीसरे नम्बर पर रहे थे। इस बार मौके की नजाकत भाॅपते हुऐ उन्होने समय रहते कालाढूंगी विकास मंच के नाम का स्थानीय संगठन बना जनता को जोड़ने व निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी शुरू कर ली और उनकी राजनैतिक सक्रियता भी लगातार इस क्षेत्र में बनी रही। पूर्व में छात्र नेता रहे महेश शर्मा ने ग्राम प्रधान के रूप में अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों की शुरूवात की तथा तिवारी सरकार में फिल्म बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे महेश शर्मा काॅग्रेस के अनेक पदो पर रहते हुए अपनी पत्नी को महिलाओं के लिए आरक्षित सीट से नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष भी बनाने में कामयाब रहे। स्वाभाविक रूप से मृदुभाषी माने जाने वाले महेश शर्मा का जिला नैनीताल में काॅग्रेस नेता के रूप में सक्रिया होने के बावजूद किसी विशेष गुट से सम्पर्क नही रहा लेकिन तत्कालीन काॅग्रेस के बड़े नेता प0 नारायण दत्त तिवारी से इनकी स्वाभाविक नजदीकी रही जो बाद में यशपाल आर्या के साथ व्यक्तिगत् सम्बन्धो तक सिमटकर रह गयी। इन सम्बन्धो के आधार पर अगर गौर करे तो हम कह सकते है कि निर्दलीय रूप से जीतने के बाद महेश शर्मा, भाजपा के भी ज्यादा नजदीक जा सकते है क्योकि वर्तमान में इनके पुराने सहयोगी यशपाल आर्या व राजनैतिक गुरू एनडी तिवारी भाजपाई हो चुके है लेकिन यहाॅ पर यह सवाल उठना वाजिब है कि भाजपाई होने के बाद यशपाल आर्या अपने ही दल के एक निवर्तमान विधायक के खिलाफ महेश शर्मा की क्या मदद कर सकते है। इसके ठीक विपरीत कुमाॅऊ में काॅग्रेस की राजनीति की दूसरी धुरी मानी जाने वाली इन्दिरा ह्रदेश भी महेश शर्मा की शुभेच्छु रही है और काॅग्रेस के एक राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रकाश जोशी से उनकी तकरार के किस्से किसी से छुपे नही है। हाॅलाकि इन्दिरा ह्रदेश को इतनी छोटी सोच का व्यक्तित्व नही माना जा सकता कि वह इस तकरार को निजी रूप से लेकर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करे और सरकार बचाने के लिऐ जद्दोजहद कर रही काॅग्रेस की एक सीट पर दाॅव लगायें लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान उनके द्वारा लालकुॅआ क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी हरीशचन्द्र दुर्गापाल पर खेला गया सफल दांव तथा उनके पुत्र सुमित ह्रदेश की कालाढूॅगी विधानसभा में बढ़ती दिख रही राजनैतिक गतिविधियां यह उम्मीद जगाती है कि अगर महेश शर्मा कोशिश करें तो इंन्दिरा ह्रदेश का आर्शीवाद उन्हे मिल सकता है। अभी तक प्रत्याशियों के क्रम में देखे तो इस क्षेत्र के स्थानीय विधायक व भाजपा के उम्मीदवार वंशीधर भगत अभी भी महेश शर्मा व अन्य को टक्कर देते महसूस होते है और उनका सरल व मिलनसार व्यक्तित्व सब पर भारी पड़ता दिखाई देता है लेकिन उनके कार्यक्षेत्र में उनके पुत्र की अतिसक्रियता इस बार उन्हे नुकसान पहुॅचा सकती है और यह तय दिखता है कि अगर वंशीधर भगत स्थानीय स्तर पर उठ रहे अन्र्तविरोध के सुरो को शान्त नही कर पाये तो इस चुनाव में निर्दलीय खड़े होने का माहौल बना रहे दर्मवाल उनकी मुश्किले बढ़ा सकते है। युवा प्रत्याशी के रूप में बसपा के वरूण प्रताप भाकुनी भी इस बार इस चुनावी जंग में अपना दांव आजमाने की कोशिश कर रहे है और यह तय दिखता है कि उन्हे अपने पिता डा0 भूपाल सिह भाकुनी के अनुभवो का लाभ निश्चित मिलेगा लेकिन इस क्षेत्र में बसपा का कोई बड़ा जनाधार न होने के चलते उनसे अभी बहुत उम्मीदें नही की जा सकती और न ही वरूण के अन्दाज में वह तल्खी नजर आ रही है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि वह जीतने के लिए चुनाव लड़ रहे है। इन सबके अलावा मुख्य मुकाबले में मानी जा रही काॅग्रेस ने अभी तक अपन प्रत्याशी ही तय नही किया है। हाॅलाकि काॅग्रेस के लोग प्रकाश जोशी को ही सर्वसम्मत व तय प्रत्याशी मानकर चल रहे है लेकिन एक चुनाव में हार का स्वाद चख लेने के बावजूद प्रकाश जोशी ने अभी तय अपना अन्दाज नही बदला है और न ही वह अपना अकड़ को कम करना चाहते है। पिछले चुनावों में अन्तिम क्षणों तक प्रत्याशी को लेकर बनी असंमजसता व प्रकाश जोशी के बड़े कद का उन्हे फायदा मिला था लेकिन इधर अपने व्यवहार शून्य अन्दाज व अपने वीआईपी तौर तरीके के चलते प्रकाश जोशी ने जनता का विश्वास व लोकप्रियता को खोया है। मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल में कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में हुऐ विकास कार्यो का श्रेय लेने वाले प्रकाश जोशी अभी तक इस तथ्य को समझनेें की कोशिश नही कर रहे है कि चुनावी जीत के लिए संगठन केे बड़े नेताओं की अपेक्षा कार्यकर्ताओ का साथ व स्थानीय जनता का सहयोग ज्यादा आवश्यक है। इसलिऐ कालाढूंगी के चुनावी समीकरणों को देखते हुऐ हम यह दावे के साथ कह सकते है कि इसलिऐं कालाढूंगी के चुनावी समीकरणों को देखते हुऐ हम यह दावे के साथ कह सकते है कि अगर प्रकाश जोशी इस बार भी अपने पुराने तौर-तरीके से ही चुनाव मैदान में उतरते है तो काॅग्रेस इस बार मुख्य मुकाबले से बाहर हो सकती है। हाॅलाकि काॅग्रेस के पास कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में प्रयाग दत्त भट्ट और दीप चन्द्र सती जैसे तमाम मजबूत नेता है जो इस इलाके का चुनावी गणित बदल सकते है लेकिन राहुल बाबा की मर्जी पर चलने वाली काॅग्रेस में प्रकाश जोशी का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। इन हालातों में इस बार मुख्य चुनावी मुकाबला महेश शर्मा व वंशीधर भगत के बीच होता दिख रहा है और महेश शर्मा द्वारा नामाकंन के लिए जुटायी भीड़ को देखकर ऐसा लग रहा है कि वह इस बार कोई चूक नहीं करना चाहते ।

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